भारत के इतिहास में 14 अगस्त का दिन सबसे मुश्किल दिनों के तौर पर दर्ज है। इसी दिन भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था। लाखो की तादात में लोगो को अपने घर, जमीन जायदात, संपति, व्यापार सब कुछ छोड़ना पड़ा। करीब डेढ़ करोड़ लोगों को विस्थापित हुए। दंगे में लूट, खून खराबा बलात्कार जैसी घटनाओं ने इंसानियत को शर्म सार कर दिया। छोटी-छोटी बेटियां भी दंगाइयों की हैवानियत का शिकार हुई। बंटवारे का दर्द सहने वाले परिवार इसे कभी नही भूल पाए। सिर्फ एक फैसले ने रातो रात लोगो की जिंदगी ही बदल दी।
कुन्हाड़ी निवासी आरपी कपूर रिटायर्ड एसई केटीपीएस उन्ही विस्थापित परिवार में से एक है। जिनके पूर्वजो ने विभाजन में बहुत कुछ खोया है। विभाजन के दर्द को उन्होंने बया करते हुए बताया कि मेरे पिताजी शिवदत्त मल माताजी निहाली बाई, चाचा लेखराज मल व बुआ भागवंती बाई के साथ प. पंजाब में झंग जिले के महामदी में रहते थे जो विभाजन के बाद अब पाकिस्तान में है। यहां उनका बहुत बड़ा पुश्तेनी मकान था जिसमे हमारे पूर्वज सदियों से रह रहे थे। पिताजी पेशे से सुनार थे। उनका सोना चांदी के आभूषण का काम था। पूरे इलाके में उनका बहुत बड़ा रुतबा था। पिताजी की एक बहन वीरा की शादी सर्वोदा जिले में हुई थी। आजादी के बाद विभाजन का समय आया। लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। मुस्लिम समुदाय के लोगो गेर मुस्लिम समुदाय के लोगो को पाकिस्तान छोड़ने की धमकियां दी रहे थे। दंगो में हजारो महिलाओ के साथ बलात्कार और बदसलूकी हुई। पिताजी के एक दोस्त जो बुआ वीरा के ससुराल के गाँव मे रहने वाले थे उन्होंने बताया की दंगाइयों ने वीरा व उसके परिवार तथा गांव के सभी हिंदुओ को मार दिया। ये सुनते ही पुरा परिवार दहशत में आ गया। दंगाइयों के हमले को देखते हुए आस-पास के सारे हिन्दू परिवारों ने गांव छोड़कर निकलने का निर्णय लिया। रात को गांव के गुरुद्वारा पहुचे वहां से गुरुग्रंथ साहिब को लेकर चुनार नदी में बहा दिया। जिसके बाद पिताजी शिवदत्त मल ने दंगाइयों से इज्जत बचाने के लिए मां निहाली बाई ओर बुआ (5) को मारकर दंगाइयों से लड़ते हुए मरने का निर्णय लिया। उन्होंने माताजी व छोटी बुआ को खाट पर बांधा ओर सर काटने के लिए तलवार उठाई तो बुआजी जोर जोर से रोने लगी। जिसे देख पिताजी का दिल पसीज गया। उन्होंने सब भगवान भरोसे सब छोड़ते हुए माताजी ओर बुआजी को लेकर अनगिनत कष्ट उठाते हुए किसी तरह जान बचाकर अटारी बॉर्डर पहुचे यहां से अम्बाला, रोहतक, करुक्षेत्र आदि कम्पो में रहते के अंत मे राजस्थान के भरतपुर में बलदेव बास के कस्बे में आकर बस गए। यहां उन्होंने जीवन की नई शुरुआत की। परिवार को पालने के लिए हर प्रकार की मजदूरी शादियों में पानी भरने, मिट्टी खोदने, सायकल पर दूध बेचने का काम किया। जिसके बाद 3 अगस्त 1958 को मेरा जन्म हुआ। पिताजी ने दिन रात मेहनत पढ़ाया लिखाया।
डॉ कृष्ना रानी की बुआ की भी दंगाइयों ने की थी हत्या:
आरपी कपूर बताते है कि उनके ससुरजी कुन्दनलाल जहां भी सर्वोदा जिले से आये थी। उनकी बुआजी की भी दंगाइयों ने हत्या कर दी थी। जिसके बाद वह भी भरतपुर आये थे। हमारी शादी 11 अक्टूबर 1986 को हुई जो वर्तमान में प्रिंसिपल गवर्मेंट कॉमर्स कॉलेज से रिटायर्ड है। सही मायने में आज परिवार ठहराव की स्थिति में है। लेकिन आज भी कई परिवार स्थायित्व के लिए संघर्ष कर रहे है।