एससी-एसटी आरक्षण में वर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को भी पसंद आया है। संघ कोटे में कोटा के समर्थन में है। इतना ही नहीं, संघ इस फैसले को सरकारी नौकरी में ही नहीं राजनीतिक क्षेत्र में भी आजमाने का पक्षधर है। संघ की आंतरिक बैठकों में लंबे विमर्श और मंथन के बाद संघ ने अपनी राय बनाई है। संघ ने इस संबंध में कुछ राज्यों में पूर्व में किए अपने अध्ययनों को आधार बनाया है। संघ ने पाया कि आरक्षण व्यवस्था जातीय भेद समाप्त करने और वंचितों को आर्थिक और सामाजिक तौर पर बराबरी पर लाने के लिए प्रारंभ की गई। वर्षों बाद अब यह देखा जा रहा है कि वंचित वर्गों में भी कुछ परिवार तो मुख्य धारा में शामिल होकर सक्षम हो गए और अनेक परिवार वहीं के वहीं हैं। सूत्रों के अुनसार संघ का मानना है कि इससे वंचित वर्ग में भी भेद हो गया, अब पढ़ाई और नौकरी में आरक्षण का चुनिंदा परिवार ही लाभ उठा रहे हैं। इसी कारण क्रीमिलेयर की बात वाजिब हो जाती है। अनौपचारिक चर्चाओं में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि नौकरियों के साथ ही आरक्षित अनुसूचित जाति व जनजाति की सीटों से विधानसभा और लोकसभा में चुने जाने वालों का अध्ययन भी आवश्यक है। संघ ने कुछ राज्यों में पाया कि इन सीटों पर वर्षों से एक ही परिवार के लोगों को चुनावी मैदान में उतारा जाता है इससे वहां उसी वर्ग के दूसरे परिवार राजनीतिक दृष्टि से पिछड़ रहे हैं। मध्यप्रदेश के भी कुछ उदाहरण संघ के ध्यान में आए हैं। संघ ने अब पंच परिवर्तनके सूत्र पर कार्य प्रारंभ कर दिया है। संघ अपने शताब्दी वर्ष पर तय कर रहा है कि समाज में पर्यावरण, छूआछूत, परिवार, भारतीयता और नागरिक बोध पर काम किया जाए। इसके लिए संघ के सभी प्रकल्पों को व्यवस्थित व ठोस प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सरकार के एक पेड़ मां के नामअभियान को पर्यावरण के मार्ग की शुरुआत माना जा रहा है।