5 अगस्त 2024 की सुबह से लोग ढाका की तरफ पैदल और रिक्शों से मार्च कर रहे हैं। हजारों प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना के सरकारी आवास पर धावा बोल दिया। बेडरूम और गार्डन में प्रदर्शनकारी टहल रहे हैं। सेना सड़कों पर तैनात है, लेकिन वो मार्च करने वालों को रोक नहीं रही है। इस बीच शेख हसीना ने अपनी बहन के साथ सेना के हेलिकॉप्टर से देश छोड़ दिया। फिलहाल वे भारत में हैं।
49 साल पहले 15 अगस्त 1975 को शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की उनके घर पर ही हत्या कर दी गई थी। उस दिन शेख हसीना ने सिर्फ अपने पिता ही नहीं, बल्कि परिवार के 17 लोगों को खोया था। हसीना और उनकी बहन विदेश में होने की वजह से बच गई थीं।
इस स्टोरी में जानेंगे शेख हसीना के परिवार वालों के मर्डर से कैसे खून का तालाब बन गया था बांग्लादेश का राष्ट्रपति भवन। हसीना ने इस पूरी घटना को पिछले साल ढाका टाइम्स में लिखा था। आगे की कहानी, शेख हसीना की ही जुबानी...
अभी सवेरा नहीं हुआ था, दूर मस्जिद से अजान की आवाज आ रही थी। अचानक गोलियों की आवाज से इलाका गूंज उठा। ढाका के धानमंडी इलाके की 32 रेसकोर्स पर एक घर के आसपास गोलियां चल रही थीं। वो घर कोई सामान्य घर नहीं था, बल्कि बांग्लादेश के राष्ट्रपति, राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान वहां रहते थे।
यह एक बीघे जमीन पर बनी साधारण सी दो मंजिली इमारत थी। देश का राष्ट्रपति किसी अन्य मिडिल क्लास नागरिक की तरह ही वहां रहता था। वो ऐसे ही थे; सामान्य जीवन जीने वाले। ये घर हमारी आजादी के लिए हर तरह के आंदोलन और संघर्ष का मूक गवाह भी था। बंगबंधु शेख मुजीब ने 26 मार्च 1971 को इसी घर से बांग्लादेश की आजादी की घोषणा की थी।
15 अगस्त की सुबह उसी घर पर गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच अजान की आवाज पहले धीमी पड़ी और फिर कहीं खो गई।
आमतौर पर राष्ट्रपति के आवास की सुरक्षा का जिम्मा सशस्त्र बलों की इन्फैंट्री डिवीजन का होता है, लेकिन अभी 10-12 दिन पहले ही इसकी जिम्मेदारी 'बंगाल लांसर' से हटाकर अधिकारियों और जवानों पर डाल दी गई, जो कोई साधारण मसला नहीं था। मेरी मां, बेगम फजीलतुन्नेस मुजीब ने देखा कि काली वर्दी पहने सैनिक आवास की सुरक्षा में लगे हुए थे। उन्होंने सवाल उठाया, लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
मेरे पिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान अपने देशवासियों पर पूरा भरोसा करते थे। वह कभी सोच भी नहीं सकते थे कि कोई बंगाली उन्हें गोली मार देगा या उन पर बंदूक उठाएगा। कोई भी बंगाली उन्हें कभी भी मारने या किसी भी तरह से नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं करेगा - वे इसी विश्वास के साथ जीते थे।
उस दिन उन्हीं के घर पर चारों ओर से गोलियां चल रही थीं। मशीनगन से लगातार फायरिंग करते हुए एक सैन्य वाहन 32 रेसकोर्स पर घर के सामने रुका। गोलियों की ऐसी कानफोड़ू आवाज से तब तक घर में मौजूद सभी लोग जाग गए।
मेरे भाई शेख कमाल यह जानने की कोशिश में रिसेप्शन तक पहुंचे कि क्या हो रहा था। मेरे पिता के निजी सहायक, मोहितुल इस्लाम तब अलग-अलग जगहों पर कॉल करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कोई फोन नहीं उठा रहा था।
कुछ मिनट वहां रुकने के बाद कमाल बाहर बरामदे में आ गया। उन्होंने मेजर नूर और कैप्टन हुडा को एंट्री करते देखा। कमाल उनसे कहने लगे- 'ओह! आप पहूंच गए हैं। प्लीज देखें कि ये सब क्या चल रहा है। हमारे घर पर किसने हमला किया...?'
इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता, सेना के अधिकारियों ने उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं। कमाल की मौके पर ही मौत हो गई। दुख की बात तो ये थी कि कमाल पर गोलियां चलाने वाले मेजर नूर और मेजर हुडा दोनों ने मुक्ति संग्राम के दौरान उनके साथ काम किया था। वे एक-दूसरे को बहुत करीब से जानते थे।
मेजर सैयद फारुक एक मिलिट्री टैंक से हमारे घर को निशाना बनाकर फायरिंग कर रहे थे। मेरे पिता ने पहला फोन सेना प्रमुख शफीउल्लाह को किया और उन्हें पूरी जानकारी दी कि राष्ट्रपति के आवास पर हमला हुआ है। इस पर उन्होंने जवाब दिया- 'मुझे देखने दो। इस बीच, आप वहां से निकलने की कोशिश करें।'
तभी हमारे घर का टेलीफोन बजने लगा। दूसरी ओर कृषि मंत्री अब्दुर रॉब सेर्नियाबत थे, जो मेरे चाचा, मेरे पिता की एक बहन के पति थे। उन्होंने मेरे पिता को बताया कि कुछ अज्ञात लोगों ने उनके घर पर हमला कर दिया है। पापा ने उन्हें बताया कि हमारे घर पर भी हमला हुआ है। मेरे पिता ने तब दो प्रमुख अवामी लीग नेताओं - अब्दुर रज्जाक और टोफेल अहमद को बुलाया।
रज्जाक, वॉलेंटियर फोर्स - 'श्वेस्साशेबोक बाहिनी (स्वयंसेवक बल)' के प्रभारी थे, उन्होंने कहा- 'लीडर, मुझे देखने दो कि क्या किया जा सकता है।' वहीं, टोफेल अहमद, जो 'रक्खीबाहिनी' नाम के एक दूसरे अर्धसैनिक बल के प्रमुख थे, उन्होंने भी इसी तरह के शब्द दोहराए।
दिलचस्प बात यह है कि रिसीवर नीचे रखते हुए उन्होंने कहा कि वह क्या कर सकते हैं? फिर पापा नीचे जाने के लिए कमरे से बाहर आए। सीढ़ियों की ओर जाकर वह अपने बेटे कमाल के बारे में पूछ रहे थे। बात करते-करते वह सीढ़ियों तक पहुंच गए।
तभी सीढ़ी के बीच वाले चबूतरे पर खड़े बदमाश ऊपरी मंजिल की ओर चढ़ने लगे। मेरे पिता उनमें से हुडा को पहचान सकते थे। मेरे पिता ने हुडा को उसके पिता के नाम से पुकारा- 'क्या तुम रियाज़ के बेटे नहीं हो? आप क्या चाहते हैं?...' इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाते, उन्होंने गोलियां चला दीं। उस समय तक रिसालदार मोसलेहुद्दीन भी हत्यारों में शामिल हो गया।
हत्यारों की गोलियों से पिता बेजान होकर सीढ़ियों पर गिर पड़े। मेरी मां भी सीढ़ी के पास आ रही थीं। तब तक हत्यारे ऊपरी मंजिल पर पहुंच गए थे। उन्होंने मेरी मां का रास्ता रोका और उन्हें अपने साथ जाने को कहा।
उन्होंने कहा, 'मैं एक भी कदम नहीं बढ़ूंगी, कहीं नहीं जाऊंगी। तुमने उन्हें क्यों मारा? तुम्हें मुझे भी मार डालना चाहिए!' इसके बाद उन्होंने मेरी मां को भी तुरंत मार डाला। मेरी मां का निर्जीव शरीर फर्श पर गिर पड़ा।
मेरे दो भाई कमाल और जमाल की अभी नई-नई शादी हुई थी। कमाल की पत्नी सुल्ताना कमाल और जमाल की पत्नी रोजी जमाल मेरे माता-पिता के कमरे में थीं। हत्यारों ने वहां दोनों की गोली मारकर हत्या कर दी।
रोमा, हमारी मेड रसेल को अपनी गोद में लिए हुए एक कोने पर खड़ी थीं। मेरा 10 साल का सबसे छोटा भाई रसेल कुछ समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है। हत्यारों में से एक सैनिक रसेल और रोमा को नीचे ले गया। उन्होंने अन्य सभी लोगों को भी इकट्ठा किया जो उस समय घर पर थे।
हमारे दूसरे नौकर अब्दुल को गोली मार दी गई। वे उसे भी ले गए। हमारे घर के सामने एक आम का पेड़ था। उन्होंने उन सभी को उस पेड़ के नीचे लाइन में रखा और उनकी पहचान करने लगे। मेरे चाचा, एक स्वतंत्रता सेनानी थे और विकलांग थे। उन्होंने बार-बार जान बख्शने की गुजारिशें की।
उन्होंने अपनी प्रेग्नेंट पत्नी और छोटे बच्चों की दुहाई दी। उनका क्या होगा? लेकिन हत्यारों ने उनकी किसी गुजारिश पर कोई ध्यान नहीं दिया। उनकी पहचान होने के बाद, वे उन्हें ग्राउंड फ्लोर पर ऑफिस के बाथरूम में ले गए और गोली मारकर हत्या कर दी।
वहीं, मेरे छोटे भाई रसेल ने रोमा का हाथ पकड़ रखा था। वह रो रहा था और बार-बार कह रहा था, ‘मुझे मां के पास जाना है!’ रोमा उसे चुप करने की कोशिश कर रही थी। उसी समय एक हत्यारे ने मेरे भाई को पहचान लिया।
उसकी पहचान जानने के बाद उसने रसेल से कहा, 'चलो मैं तुम्हें तुम्हारी मां के पास ले चलता हूं।' वे मेरे छोटे भाई को मां और पिता के शव के ऊपर से घसीटते हुए ऊपर ले गए और मां के शव के पास गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। हत्यारों ने दस साल के बच्चे की भी जान नहीं बख्शी।
जिस घर से बंगबंधु ने कभी बांग्लादेश की आजादी का ऐलान किया था, वह घर उनके और उनके परिवार के सदस्यों के खून से भर गया था।