प्रबुद्धजन आगे आये तो बचे बूंदी के रियासतकालीन मेलो की परम्परा
श्रावण मास में हर सोमवार को होता रहा हैं मेलो का आयोजन, अब विलुप्ति की कगार पर

बून्दी। हाडौती की संस्कृति मेले उत्सवों के आयोजनों से अछुति नहीं हैं, यहाँ के निवासी हर मौके पर मौज मस्ती के बहाने निकाल लेते हैं, ऐसे मे श्रावण का महिना हो, गरजते बादलों से बरसते पानी की बून्दें हो और चारों ओर हरियाली का साम्राज्य हो तो ऐसा मौसम खाली नहीं हो सकता। बून्दी के वासियों ने ऐसे मौसम का आनन्द लेने के लिए श्रावण के प्रत्येक सोमवार को मेलों की परम्परा स्थापित की, वैसे तो इन मेलों के आयोजन से कोई विशेष परम्परा नहीं जुडी हैं, केवल मौसम का आनन्द लेने और श्रावण के सोमवार को महादेव के दर्शन और प्रकृति भ्रमण के मौके ने मेलों को जन्म दिया। यह मेले केदारनाथ का मेला (श्रावण का पहला सोमवार), गणेशबाग का मेला (श्रावण का दूसरा सोमवार), अभयनाथ का मेला (श्रावण का तीसरा सोमवार) और वैद्यनाथ का मेला (श्रावण का चौथा सोमवार) नाम से जाने जाते हैं, इसी दौरान बून्दी के किले के पीछे पहाड़ी पर स्थित चामुण्डा माता का मेला श्रावण मास की अष्ठमी पर आयोजित होता आ रहा है, तो श्रावणी अमावस्या पर मोरड़ी की छतरी नवल सागर की पाल पर भी मेले का आयोजन हुआ करता था। जिनमें यहाँ की जनता यथा - बाल-बच्चे, महिलायें, जवान, बुजुर्ग सभी इन मेलों का लुत्फ लेते हुए, महादेव की आराधना और प्रकृति का आनन्द लेते हैं।


यह मेले हो चुके हैं लुप्त
लोकानुरंजन के नर्व के रूप में आयेजित होने वाले इन मेलों मे से श्रावणी अमावस्या पर मोरड़ी की छतरी का मेला, केदारनाथ का मेला (श्रावण का पहला सोमवार), अभयनाथ का मेला (श्रावण का तीसरा सोमवार) और वैद्यनाथ का मेला (श्रावण का चौथा सोमवार) का मेला लुप्त हो चुका हैं। वहीं तारागढ की पहाडी पर होने वाला चामुंडा माता व डोबरा का मेला भी शनै शनै विलुप्त होने की ओर अग्रसर हैं। वहीं श्रावण मास के पहले आषाढत्र मास के प्रत्येक रविवार को गौ भक्त झोझू जी की स्मृति में बालचंद पाड़ा में लगने वाले झोझू जी के मेले भी दशकभर पूर्व विलुप्त हो चुके हैं।
हर वर्ष की तरह इस बार भी तारागढ़ की पहाड़ी पर स्थित डोबरा का रियासत कालीन मेला रविवार को समाप्त हो गया और सोशल मीडिया पर मेले की संस्कृति को खत्म करने का सवाल आमजन के बीच फिर छोड गया। पर संस्कृति को खत्म होने से बचाने के लिये प्रयास धरातल पर नजर नही आये और बूंदी वासी अपनी पुरानी आदत अनुसार सोशल मीडिया पर ही सक्रिय रहे। कुछ वर्ष पूर्व तक रियासत काल से पूर्व राजपरिवार के सदस्य रणजीत सिंह के समय तक चामुंडा माता मंदिर व डोबरा महादेव जाने वाले भक्तगण गढ़ पैलेस के अन्दर से जाया करते थे परन्तु गत तीन वर्षो से गढ प्रबन्धन द्वारा कुछ वर्षों से गढ की सुरक्षा कारणों से गेट नहीं खोले जाते है इससे लगातार तारागढ़ के रास्ते चामुंडा माता व डोबरा जाने वाले भक्तों की संख्या मे कमी आई है। इसके बाद भक्तों ने तारागढ़ की पहाड़ी पर जाने के लिये वैकल्पिक रास्ते तलाश लिये जो बदस्तूर जारी है। पर हर वर्ष गढ पैलेस के गेट खोलकर भक्तों को तारागढ़ की पहाड़ी पर आयोजित होने वाले मेले मे जाने देने की मांग ज्ञापन के माध्यम से भी पूरी नही हो पाई और इस बार भी रियासतकालीन मेला अपने पुरातत्व वैभव के साथ आयोजित नहीं हो पाया, जिसका मलाल शहरवासियों मे रहा।
डोबरा मेले की संस्कृति हो रही खत्म
भक्तो के लिये गढ पैलेस के गेट खुलवाने के पक्षधर गढ प्रबंधन व जिला प्रशासन पर रियासतकालीन मेले की संस्कृति को खत्म करने व हठधर्मिता का आरोप लगा रहे है। इनके सबके बीच डोबरा मेले की संस्कृति को बचाने के पक्षधर या आमजन गढ के गेट खुलवाने के अलावा किसी अन्य व्यवस्था पर विचार नहीं कर पाए बस मेले की संस्कृति को बचाने के लिये गढ के गेट खुलवाने के चक्कर मे लगे रहे।


यह आये आमजन से सुझाव
आमजन ने मेले की संस्कृति खत्म होने पर दुख जाहिर करते हुए कहा कि बूंदी शहर से दलेलपुरा व बोरखंडी होते हुए डोबरा महादेव मंदिर तक जाने वाली क्षतिग्रस्त सडक का निर्माण हो, सूरज जी के बड से पहाड़ी पर जाने के लिए भक्तो के लिये स्थायी ट्रेक बने, मेले को भव्यता देने के लिये आयोजन समिति बने जिसमे डोबरा महादेव मंदिर व चामुंडा माता मंदिर के पुजारी भी शामिल हो, गढ के गेट खुलवाने के लिये सकारात्मक माहौल मे गढ प्रबंधन से विस्तृत चर्चा हो।
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रियासतकालीन व्यवस्था व अभी की व्यवस्थाओं मे काफी अंतर है। गढ मे पैंथर की मूवमेंट होने सहित गढ की सुरक्षा व साफ सफाई के कारणों से अनुमति नहीं दी जा सकती थी। राजपरिवार की संपत्ति का दुष्प्रचार करने, गढ प्रबंधन पर छींटाकशी करने वाले लोगो की मांग पर गढ के गेट नही खोलेगे। फसाड लाइट को लेकर आये दिन गढ प्रबंधन को सवालो के घेरे मे खड़ा किया जा रहा है गढ़ को निजी संपत्ति बता कर गढ के विद्युत कनेक्शन विच्छेद की मांग की जाती है यह उचित नहीं है। गढ प्रबंधन पर मेले की संस्कृति को खत्म करने का जहां तक आरोप है शहर के गणमान्य नागरिक प्रबुद्धजनों के साथ सकारात्मक वार्ता से इस समस्या का भविष्य मे समाधान किया जा सकता है।
- जेपी शर्मा, प्रबंधक, गढ पैलेस व तारागढ़