दाहोद का बावका मंदिर का इतिहास:

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ओम धगाल - पूर्व प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भाजपा युवा मोर्चा

ओम धगाल की और से हिंडोली विधानसभा क्षेत्र एवं बूंदी जिले वासियों को रौशनी के त्यौहार दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

मंदिर का निर्माण:

समय: मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में चालुक्य राजा भोज द्वारा करवाया गया था।

कथा: कहा जाता है कि राजा भोज को भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिए थे और उन्हें इस स्थान पर मंदिर बनवाने का आदेश दिया था।

विशेषता: यह मंदिर अपनी भव्यता, शिल्पकला और स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है।

मंदिर की स्थापत्य कला:

शैली: मंदिर चालुक्य शैली में बना है।

गर्भगृह: मंदिर का गर्भगृह भगवान शिव को समर्पित है।

मंडप: गर्भगृह के सामने एक मंडप है, जिसके स्तंभों पर सुंदर नक्काशी की गई है।

शिखर: मंदिर का शिखर ऊंचा और भव्य है।

मूर्तियां: मंदिर में भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और अन्य देवी-देवताओं की कई मूर्तियां हैं।

कजुराहो शैली: मंदिर की शिल्पकला में कुछ हद तक कजुराहो की मूर्तियों जैसी कामुक मूर्तियां भी देखने को मिलती हैं।

मंदिर का महत्व:

धार्मिक: यह मंदिर हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।

ऐतिहासिक: यह मंदिर चालुक्य राजवंश के इतिहास और स्थापत्य कला का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

पर्यटन: यह मंदिर पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय है।

मंदिर से जुड़ी मान्यताएं:

मनोकामना पूर्ति: कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां भगवान शिव की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

विवाह: कहा जाता है कि जो भी अविवाहित लड़की यहां भगवान शिव की पूजा करती है, उसे जल्दी ही योग्य वर मिल जाता है।

आज का बावका मंदिर:

स्थिति: यह मंदिर आज भी अच्छी स्थिति में है।

देखभाल: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा मंदिर की देखभाल की जाती है।

पर्यटन स्थल: यह मंदिर दाहोद जिले का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है।

अतिरिक्त जानकारी:

स्थान: बावका मंदिर दाहोद जिले के देवगढ़ बावका गांव में स्थित है।

दूरी: यह दाहोद शहर से लगभग 80 किलोमीटर दूर है।

कैसे पहुंचे: दाहोद से बस या टैक्सी द्वारा बावका मंदिर तक पहुंचा जा सकता है