मानसून में इन्फेक्शन का खतरा काफी बढ़ जाता है। इनमें Urinary Tract Infection (UTI) के मामले भी काफी देखने को मिलते हैं। इसकी वजह से काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है और समय पर इलाज न होने पर यह फैल भी सकता है। आइए डॉक्टर से जानते हैं क्यों मानसून में UTI का रिस्क बढ़ जाता है और कैसे इससे बचाव (UTI Prevention) कर सकते हैं।

मानसून के आने से भले ही मौसम सुहाना हो जाता है और गर्मी से भी राहत मिलती है, लेकिन इस सीजन में इन्फेक्शन होने का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। हवा में नमी बढ़ने और गर्म तापमान की वजह से कई बैक्टीरिया, वायरस और फंगस को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है और वे भारी संख्या में बढ़ने लगते हैं। इसलिए बरसात के मौसम में इन्फेक्शन के मामले सबसे ज्यादा देखने को मिलते हैं। इन इन्फेक्शन्स में भी Urinary Tract Infection (UTI) का रिस्क सबसे ज्यादा होता है।

उस पर भी यह परेशानी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा होती है। UTI काफी परेशानी भरा होता है, जिसके कारण रोज का जीवन भी प्रभावित होता है और इसका वक्त पर इलाज न किया जाए, तो यह समस्या बढ़ भी सकती है। इसलिए मानसून में UTI की समस्या से कैसे बचा जा सकता है, इसके क्या लक्षण होते हैं और इसके इलाज के लिए क्या करना चाहिए, इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमने डॉ. आस्था दयाल (सी.के. बिरला अस्पताल, गुरुग्राम के स्त्री रोग एवं प्रसुति विभाग) से बात की। आइए जानते हैं इस बारे में आपने क्या बताया।

क्यों होता है UTI?

डॉ. दयाल ने बताया कि मानसून में UTI बढ़ने की एक बड़ी वजह हवा में नमी बढ़ना है, जिससे बैक्टीरिया आसानी से फैलते हैं। इसका दूसरा कारण यह है कि मानसून में भी तापमान में गर्माहट रहती है, जिसके कारण पसीना बहुत आता है। प्राइवेट पार्ट्स में पसीना न सूखने की वजह से वहां बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जो यूरिनरी ट्रैक्ट में प्रवेश करके इन्फेक्शन फैला सकते हैं। ऐसे ही अगर पसीने या वेजाइनल डिसचार्ज की वजह से अंडरवेयर ज्यादा समय तक गीली रह जाए या ठीक से सूखे नहीं, तो भी UTI होने का रिस्क बढ़ जाता है।

हवा में नमी बढ़ने के कारण इस मौसम में प्यास भी कम लगती है, जिसकी वजह से हम कम पानी पीते हैं। शरीर में पानी की कमी होने के कारण यूरिन भी काफी कम मात्रा में होता है। यह भी मानसून में UTI होने की एक बड़ी वजह है, क्योंकि यूरिन काफी कम आता है, जिसके कारण बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक्ट से बाहर नहीं निकलते और इन्फेक्शन होने लगता है।

इसके अलावा, मानसून में हाइजीन का बेहद खास ख्याल रखना चाहिए। इसमें लापरवाही होने की वजह से भी UTI हो सकता है। हाथों के बैवेजाइना आदि वॉश करते समय यूरिनरी ट्रैक्ट में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे UTI का खतरा रहता है। इसलिए मानसून में इन वजहों से UTI के मामले ज्यादा देखने मिलते हैं।

UTI के लक्षण क्या हैं?

डॉ. दयाल बताती हैं कि UTI के लक्षणों को महिलाएं कई बार वेजाइनल इन्फेक्शन से कंफ्यूज कर लेती हैं। इसलिए इसके सभी लक्षणों के बारे में पता होना बेहद जरूरी है। UTI के लक्षण कुछ इस प्रकार होते हैं-

  • बार-बार यूरिन आना
  • यूरिनेट करने की इच्छा होना, लेकिन यूरिन न आना
  • पेशाब करने के बाद ही, यूरिनेट करने की इच्छा होना
  • यूरिनेट करने के बाद ऐसा महसूस होना, जैसे ब्लैडर खाली नहीं हुआ है
  • पेशाब में जलन या दर्द
  • यूरिन में रक्त आना
  • इन्फेक्शन फैलने पर ब्लैडर या पेल्विस में दर्द
  • तेज बुखार
  • कंपकंपी आना

    कैसे करें UTI से बचाव?

    UTI से बचाव के कुछ डॉ. दयाल ने बताए, जो इस प्रकार हैं-

    • हाइजीन का खास ख्याल रखें। पब्लिक टॉयलेट्स का इस्तेमाल कम से कम करें और अगर टॉयलेट गंदा है, तो बिल्कुल भी इस्तेमाल न करें।
    • वाइप करते समय हमेशा फर्रंट टू बैक करें, ताकि एनस में मौजूद बैक्टीरिया यूरिनरी टैक्ट तक न पहुंचे। ऐसे ही जेट स्प्रे का इस्तेमाल भी आगे से करें, ताकि स्टूल बैक्टीरिया यूरिनरी टैक्ट में न जाएं।
    • टाइट और सिंथेटिक अंडरवेयर न पहनें। इससे प्राइवेट पार्ट्स में ज्यादा पसीना आता है, जिसके कारण बैक्टीरिया आसानी से पनपने लगते हैं। ऐसे ही, टाइट जीन्स की वजह से भी प्राइवेट पार्ट्स में पसीना ज्यादा आता है और हवा पास नहीं हो पाती। इसलिए हमेशा कॉटन अंडरवेयर पहनें और धीली पैन्ट्स पहनें।
    • भरपूर मात्रा में पानी पीएं और हाइड्रेटेड रहें, ताकि समय-समय पर सही मात्रा में यूरिन आए और बैक्टीरिया यूरिनरी ट्रैक्ट से बाहर निकल जाएं।
    • ज्यादा समय तक यूरिन रोकने की कोशिश न करें। इससे बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो सकता है।
    • किसी भी वेजाइनल वॉश, साबुन, शैम्पू, डिटरजेंट आदि का इस्तेमाल प्राइवेट पार्ट्स को साफ करने के लिए न करें। इससे वेजाइना का pH बिगड़ जाता है, जिसके कारण बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो सकता है।

    कैसे करें UTI का इलाज?

    UTI का इलाज हमेशा डॉक्टर की निगरानी में ही होना चाहिए। खुद से ओवर-द-काउंटर दवाएं लेने की गलती न करें। खुद से एंटी-बायोटिक्स लेने से शरीर में एंटी-बायोटिक रेजिस्टेंस बढ़ने लगता है, जिसके कारण UTI फैल भी सकता है या बार-बार वापस आ सकता है। इसलिए हमेशा डॉक्टर से मिलकर इसके लक्षण बताएं, ताकि टेस्ट करने के बाद डॉक्टर आपको एंटी-बायोटिक्स की सही डोज दे सकें। इसके साथ ही, भरपूर मात्रा में पानी पीएं, जूस आदि पीएं ताकि शरीर हाइड्रेटेड रहे। इसके अलावा, एंटी-बायोटिक्स के साथ क्रैनबेरी सप्लीमेंट्स भी UTI के इलाज में मदद कर सकते हैं।