इंटरव्यू में अग्रवाल ने इसकी तुलना ब्रिटिश ईस्ट इंडिया से की। उन्होंने कहा कि जैसे ब्रिटिश कंपनियां भारतीय संसाधनों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती थीं। ठीक वैसे ही आज के समय में विदेशी कंपनियों के द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में किसी ऐप के यूजर्स की संख्या करोड़ों में है। इसी का फायदा उठाकर ये कंपनियां डेटा को ले लेती हैं।
कैब सर्विस प्रोवाइड कराने वाली कंपनी ओला के को-फाउंडर भाविश अग्रवाल ने एएनआई के साथ एक इंटरव्यू में टेक्नो-उपनिवेशवाद शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि भारत में टेक्नोलॉजी को खूब तरजीह दी जाती है।
बहुत सारे ऐसे प्लेटफॉर्म हैं जो यूजर्स से उनके ऐप या सर्विस को एक्सेस करने के लिए डेटा मांगते हैं। डेटा लेने के बाद उसे विदेश भेजा जाता है और प्रोसेस करके फिर से उसे भारत में वापस भेज दिया जाता है। ऐसा बड़े स्तर पर किया जा रहा है।
अपने फायदे के लिए होता है इस्तेमाल
इंटरव्यू में अग्रवाल ने इसकी तुलना ब्रिटिश ईस्ट इंडिया से की। उन्होंने कहा कि जैसे ब्रिटिश कंपनियां भारतीय संसाधनों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती थीं। ठीक, वैसे ही आज के समय में विदेशी कंपनियों के द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में किसी ऐप के यूजर्स की संख्या करोड़ों में है। इसी का फायदा उठाकर ये कंपनियां डेटा को ले लेती हैं। जिसके बाद डेटा का लाभ बड़े पैमाने पर विदेशी तकनीकी दिग्गजों द्वारा अपने फायदे के लिए किया जाता है।
विदेशी टेक कंपनियों के पास भारतीय डेटा
अग्रवाल ने तर्क दिया कि इसमें से केवल दसवां हिस्सा (डेटा) भारत में स्टोर किया जाता है। नब्बे प्रतिशत वैश्विक डेटा केंद्रों को निर्यात किया जाता है, जो बड़े पैमाने पर बड़ी टेक कंपनियों के स्वामित्व में हैं। इसे एआई में संसोधित किया जाता है, भारत में वापस लाया जाता है और हमें डॉलर में बेचा जाता है।
हमें ऐसा सिस्टम बनाने की जरूरत है कि जिससे हमारा डेटा हमारे पास ही रहे। हम 20 प्रतिशत डेटा का उत्पादन करते हैं। यानी, दुनिया में किसी भी चीज के यूजर होते हैं तो उनकी संख्या भारत में ही सबसे अधिक होती है।