सेवा का पर्याय बना मृदुल जल मंदिर ने निर्बाध पूरे किए 37 वर्ष......

बूंदी। रोडवेज बस स्टैंड पर आज से 37 वर्ष पहले ठंडे पानी के लिए भटकते राहगीरों की समस्या को देखते हुए कुछ युवाओं की टीम ने उन प्यासे राहगीरों को शीतल जल उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया और 1987 में आज ही के दिन महाविद्यालय में संचालित रोवर स्काउटिंग से जुड़े कुछ छात्रों ने रोडवेज बस स्टैंड पर एक अस्थाई प्याऊ का संचालन प्रारंभ किया।

प्रारंभिक समय में रोवर स्काउट अपनी साइकिलों पर पानी से भरी बाल्टियां ढोकर रोडवेज बस स्टैंड पर राहगीरोंके लिए जल उपलब्ध करवाते और ठंडे पानी से राहगीरों के कंठ को तर करते थे।

“धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय“ के ध्येय पर चलते यह प्रयास चल निकला और यह अस्थाई प्याऊ पूरे ग्रीष्म काल के चलायमान हो गई और यह रोवर्स साइकिल की जगह हाथ ठेला गाड़ी से पानी की आपूर्ति करने लगे।

धीरे धीरे जन सहयोग मिलने लगा और रोडवेज प्रशासन ने इनके कार्य को देखते हुए बस स्टैंड पर एक जगह स्थायित्व के लिए चिन्हित कर दी, जहां पर वर्ष 1990 से पूर्ण कालीन 12 महीने चलने वाली प्याऊ का संचालन प्रारंभहुआ। इस मृदुल जल मंदिर पर दिन में जल सेवा के लिए एक वैतनिक कर्मचारी के माध्यम से संचालित रही और रात्रि में यह रोवर्स का पूर्ववत नियमित सेवाएं देना जारी रहा।

उक्त जल मंदिर की सेवाएं और सक्रिय कार्य को देखते हुए तत्कालीन रोडवेज प्रबंधक दीप सिंह झाला ने स्थाई जल मंदिर के लिए निर्माण की स्वीकृति जारी की। जहां वर्ष 1993 में तब के उपाचार्य गोविंद लाल जोशी और सर्कल ऑर्गेनाइजर शांतिलाल जैन की प्रेरणा से इस मृदुल जल मंदिर का शिलान्यास हुआ। बुधवन्ती साहनी, सज्जन अग्रवाल सहित अन्य भामाशाहों के जन सहयोग से निर्मित इस स्थाई जल मंदिर को 23 मार्च 1994 को स्काउट गाइड के स्टेट कमिश्नर बी.डी. जोशी और जिला कलेक्टर उषा शर्मा ने लोकार्पण कर जनता को समर्पित किया। उस समय यह बूंदी की पहली ऐसी प्याऊ थी, जहां शीतल जल सेवा के लिए पहला वाटर कूलर सज्जन देवीके सहयोग से स्थापित किया गया। तब से आज तक यहाँ 4 वाटर कूलर अपनी सेवाएँ दे कर सेवानिवृत्त हो चुके हैं और वर्तमान में 2 वाटर कूलर सेवाएं दे रहे हैं जो इतिहासविद डॉ. एस.एल. नागौरी और वर्धन विजय द्वारा दिए गए हैं।

वर्ष पर्यंत संचालित इस जल मंदिर की व्यवस्थाएं मालवीय रोवर क्रू और मृदुल अग्रज सेवादल के स्वर्गीय रमेश चंद्र पारीक, बुद्धि प्रकाश पुंडीर, देव प्रकाश ओझा, यशवंत टेलर और उनके सहयोगियों के द्वारा की जा रही हैं और यह ऐसा पहला जल मंदिर है जिसकी जलापूर्ति की खपत 7000 लीटर प्रतिदिन रही हैं। कतिपय तकनीकी परिस्थितियों को छोड़कर पूरे वर्षभर 24 घण्टे अनवरत यह जल मंदिर अपनी सेवाएँ जनता को उपलब्ध करवा रहा है। जो कि एक सच्ची जनसेवा का पर्याय बन चुका है। एक लम्बे समय तक जयपुर से झालावाड के बीच चलने वाले यात्री अपने सफ़र में बून्दी आने का इंतजार करते थे,ताकि ठण्डे पानी से अपनी प्यास बुझा सकें। वर्ष भर शीतल जल सेवा के साथयह प्रतिवर्ष निर्जला एकादशी पर आने जाने वाले राहगीरों के अलावा सभी जनसामान्य को ठंडे मीठे शरबत से लाभान्वित करती आ रही है। 

सही मायनों मे मृदुल जल मंदिर जनता को पूरे वर्ष शीतल जल उपलब्ध करवाने में अग्रणी है वैसे तो बाद में कई जल मंदिर बूंदी में स्थापित हुए लेकिन पूर्णतः सेवाएं देने में असमर्थ रहे।

 

व्यवस्थापक रहे स्वर्गीय रमेश पारीक के शब्दों में -

मृदुल अग्रज सेवादल द्वारा संचालित मृदुल जल मंदिर 1987 से वर्तमान तक सफलता का पर्याय बन चुका है। आगे भी इसी प्रकार जन सहयोग से यह जल मंदिर निरंतर अपने शीतल जल सेवा संघ लोगों को लाभान्वित करते रहेगा यह उस समय स्थापित हुई तब जयपुर से कोटा तक सफर करने वाले यात्री ठंडे पानी के लिए व्याकुल रहते थे।