चौंकाने वाले नतीजे दक्षिण भारत के तमिलनाडु से आए. एग्जिट पोल के मुताबिक तमिलनाडु में बीजेपी को तीन सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है.इसे तमिलनाडु में द्रविड राजनीति पर बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति की जीत के तौर पर देखा जा रहा है.साल 2024 के चुनाव में बीजेपी राज्य की 39 में से 23 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. वहीं उसने पीएमके को 10 और अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम को दो सीटें दी हैं. इससे पहले 2014 के चुनाव में बीजेपी ने चार दूसरे दलों से समझौता किया था.नौ सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बीजेपी को 5.5 फीसदी वोट और एक सीट पर जीत मिली थी.कन्याकुमारी सीट पर बीजेपी के राधाकृष्णन पी जीते थे.उसकी सहयोगियों में केवल पीएमके ही केवल एक सीट जीत पाई थी.आठ सीटों पर लड़ने वाली पीएमके को 4.5 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2019 के चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में राज्य की बड़ी पार्टियों में से एक एआईडीएमके भी शामिल थी.एआईडीएमके ने 21, पीएमके ने सात और बीजेपी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था.लेकिन सीट केवल एआईडीएमके ही जीत पाई.उसे एक सीट मिली.वहीं बीजेपी का वोट फीसद भी घटकर 3.7 फीसद रह गया था. लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तमिलनाडु में अच्छा प्रदर्शन किया. बीजेपी ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा और 2.6 फीसदी वोटों के साथ चार सीटों पर जीत दर्ज की.इससे पहले 2016 के चुनाव में बीजेपी ने 187 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसे 2.9 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन कोई सीट नहीं मिली थी. अब पांच साल बाद राज्य से बीजेपी के लिए अच्छी खबर आने की उम्मीद की जा रही है. पोल ऑफ पोल्स में तमिलनाडु को तीन सीटें मिलती हुई दिखाई गई हैं. वहीं  न्यूज़ 24 के लिए टुडेज चाणक्य की ओर से किए गए एग्जिट पोल में तो बीजेपी को 10 सीटें तक मिलती दिखाई गई हैं. 

 

बीजेपी के लिए यह अनुमान तमिलनाडु की द्रविड राजनीति पर बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति की जीत के तौर पर देखा जा रहा है.वहां बीजेपी द्रविड राजनीति को चुनौती देती हुई नजर आ रही है.तमिलनाडु में द्रविड राजनीति करने वाले दोनों दल डीएमके और एआईडीएमके बीजेपी और कांग्रेस से गलबहियां करते नजर आते हैं.तमिलनाडु में बीजेपी की छवि ब्राह्मणवादी और हिंदी समर्थक पार्टी की है.इसलिए उसे वहां पैर पसारने में दिक्कत आती है. इसके बाद भी 1998 में बीजेपी ने एआईडीएमके की नेता रहीं जयललिता के समर्थन से ही अटल बिहारी की सरकार बनाई थी.जयललिता ब्राह्मण थीं और द्रविड राजनीति करती थीं.हालांकि यह सरकार एक साल बाद ही जयललिता के समर्थन वापस लेने से गिर गई थी.इसके बाद हुए चुनाव के बाद डीएमके बीजेपी के साथ आ गई थी.डीएमके के समर्थन से वायपेयी की सरकार पांच साल तक चली. लेकिन 2004 के चुनाव से ठीक पहले उसने बीजेपी से संबंध तोड़ लिया.