चार जून को बांसवाड़ा डूंगरपुर लोकसभा चुनाव के लिए होने वाली मतगणना के दौरान यदि किसी का दिल सबसे अधिक धड़क रहा होगा तो वह होंगे कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए महेंद्रजीत सिंह मालवीया का. करीब चालीस साल तक जिले की राजनीति में एक छत्र राज करने वाले और कांग्रेस की सबसे बड़ी सीडब्ल्यूसी के सदस्य रहे और कई बार मंत्री रहे मालवीया की भविष्य की राजनीति इस लोकसभा चुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगी. मालवीया ने अपने राजनीतिक जीवन में कभी हार का सामना नहीं किया है. ऐसे में देखना होगा कि चार जून की दोपहर उनके राजनीतिक जीवन का क्या फैसला करेगी. भाजपा प्रत्याशी महेंद्रजीत सिंह मालवीया के सामने खुद के तो चुनाव जीतने की परीक्षा है ही, वहीं उनके द्वारा खाली की गई बागीदौरा विधानसभा उप चुनाव में उनके समर्थक भाजपा प्रत्याशी सुभाष तंबोलिया की जीत या हार का सेहरा भी उनके ही सिर पर सजेगा. ऐसे में जहां उन्हें खुद की जीत के साथ साथ सुभाष तंबोलिया की जीत के लिए भी कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ेगा. मालवीया को भारत आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी राजकुमार रोत से लोकसभा चुनाव में कड़ी टक्कर मिली है, जिसके चलते मालवीया की जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी सभा करनी पड़ी. मालवीया यदि लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करते हैं तो निश्चित रूप से उनका कद राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच जाएगा. ऐसी संभावना जताई जा रही है. वहीं उप चुनाव के प्रत्याशी सुभाष तंबोलिया को जीत हासिल होगी तो उनका भी कद प्रदेश की राजनीति में बढ़ेगा भाजपा प्रत्याशी महेंद्रजीत सिंह मालवीया इससे पूर्व भी कांग्रेस पार्टी की ओर से बांसवाड़ा डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. लेकिन तब उनका संसदीय कार्यकाल महज 11 महीने का ही रहा था, क्योंकि अटल बिहारी वाजपेई की सरकार 11 माह बाद एक वोट से गिर गई थी. यदि इन चुनाव में मालवीया को जीत हासिल होती है तो माना जा रहा है कि उनको केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी स्थान मिल सकता है क्योंकि अभी तक एक बार भी बांसवाड़ा डूंगरपुर क्षेत्र के सांसद को केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला है.