नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस बात पर चिंता जाहिर की कि जजों को छुट्टियों के दौरान भी आधी रात को काम करना पड़ता है। अफसोस की बात है कि इसके बावजूद कई लोग जजों के कामकाज के रफ्तार पर सवाल खड़े करते हैं। झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन पीठ ने सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की।

न्यायाधीशों को भी अपना होमवर्क करना पड़ता है: न्यायमूर्ति दत्ता

बता दें कि हेमंत सोरेन की ओर से कोर्ट में पेश वकील कपिल सिब्बल ने शिकायत की कि झारखंड हाईकोर्ट की बेंच ने पूर्व सीएम की गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका पर फैसले सुनाने में दो महीने का वक्त लगा दिया।

कपिल सिब्बल के इस बयान पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा,"दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मिस्टर सिब्बल, न्यायाधीश के रूप में हमारे द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद, हमें यह सुनना पड़ता है कि न्यायाधीश बहुत कम घंटे काम करते हैं।'' न्यायमूर्ति दत्ता ने आगे कहा कि न्यायाधीशों को भी अपना होमवर्क करना पड़ता है।

शीर्ष अदालत ने कहा, " हाईकोर्ट के न्यायाधीश हमारे सामने नहीं हैं। वे यह नहीं बता सकते कि किसने उन्हें फैसला सुनाने से रोका। इसलिए, (संदेह का) लाभ उन्हें दिया जाना चाहिए।"

कपिल सिब्बल ने कहा कि फैसला सुनाने में देरी करने का असर नागरिकों पर होता है। उन्होंने आगे कहा, ‘‘आप (ईडी की अभियोजन शिकायत पर) संज्ञान लेने की अनुमति देते हैं और मेरी याचिका व्यर्थ हो जाती है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है। यह बेहद दुखद है। ये सभी हाई कोर्ट के जज हैं।’

कपिल सिब्बल ने हाईकोर्ट की कार्रवाई पर उठाए सवाल

पीठ ने कहा कि वह केवल आशा और भरोसा कर सकती है कि अदालतें मामलों का शीघ्रता से निपटारा करें। कपिल सिब्बल ने इसके बाद कहा, ‘हाई कोर्ट में ऐसा रोज हो रहा है। हमारा मामला सुनने के लिए कोई नहीं है, और न ही कोई उस पर फैसला करता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामले में लोग अदालतों की शरण में जाते हैं। आप कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन यही सच्चाई है।’