बेंगलुरु। हाई कोर्ट ने कहा है कि महज बयानबाजी आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में नहीं आएगी। न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने यह बात याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करते हुए कही, जिस पर उडुपी जिले में एक कनिष्ठ पुजारी और एक स्कूल के प्रिंसिपल को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था।
कनिष्ठ पुजारी की 11 अक्टूबर, 2019 को आत्महत्या से मृत्यु हो गई थी। अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि याचिकाकर्ता के धमकी भरे शब्दों के कारण ही उसने यह चरम कदम उठाया था।
पुलिस ने आरोप पत्र दायर करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता ने पिता को याचिकाकर्ता की पत्नी और पिता के बीच अवैध संबंधों को उजागर करने की धमकी दी थी।
11 अक्टूबर 2019 को रात करीब 8.30 बजे याचिकाकर्ता ने पिता के मोबाइल फोन पर कॉल की और पांच मिनट तक बात की। बातचीत उन व्हाट्सएप संदेशों के संबंध में थी जो पिता ने याचिकाकर्ता की पत्नी को भेजे थे।
इनमें से एक संदेश में, पिता ने याचिकाकर्ता की पत्नी से कहा था कि वह उसकी बहन की शादी की तारीख तक जीवित नहीं रहेगा। पिता द्वारा की गई अगली कॉल में याचिकाकर्ता ने बयान दिया था- तुम्हें फांसी लगानी होगी, क्योंकि वह भी फांसी लगाने जा रही है।