पीलीभीत। सुनिए भाई साहब... यह पीलीभीत है। इसने अलग भाषा-संस्कृति वाले उत्तराखंड-नेपाल की सीमाओं को जोड़ा है। जल-जंगल की विविधता को प्राकृतिक सौंदर्य में पिरोया है। यह अपनाना-निभाना जनता को है और समय के साथ चलना भी। असम चौराहा पर फल के ठेले के पास खड़े शिवकुमार सूर्य की चौंध को हथेलियों के पीछे छिपाकर बात जारी रखते हैंआप जिले की राजनीति के बारे में क्या जानना चाहते हैं ? 35 वर्ष बाद यह नए अध्याय की ओर बढ़ रही है। इस लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी या वरुण गांधी के नाम वाले नारे नहीं सुनाई दे रहे मगर, मैदान तो सजा ही है। इन्हीं में कोई एक सांसद बनेगा।

अनीस अहमद किसे टंगड़ी लगाकर बढ़ना चाह रहे

एक लाइन के सवाल पर व्यापारी शिवकुमार 10 मिनट अनवरत बोलते रहे। जिले के राजनीतिक समीकरण उनकी हथेली पर रखे थे और जातिगत गणित अंगुलियों पर। उनका अंदाज यहां के मतदाताओं की हाजिर जवाबी का हस्ताक्षर था, जो राजनीति से दूर नहीं भागता, साथ चलता है।

वह अनुमान जताते गए कि भाजपा प्रत्याशी जितिन प्रसाद की दौड़ कहां तक हो सकती है, सपा प्रत्याशी भगवत सरन गंगवार की गति क्या होगी और बसपा के अनीस अहमद किसे टंगड़ी लगाकर बढ़ना चाह रहे।

कोई मुद्दों पर बात नहीं करता

मतदाता की हाजिर जवाबी का प्रमाण चौराहे से 15 किमी दूर न्यूरिया में भी मिला। वहां कलीमुल्ला इच्छा जताते हैं कि गठबंधन को अवसर मिलना चाहिए मगर, राह आसान नहीं है। इसका कारण पूछने पर जवाब आता है ' सही बात तो यह है कि राजनीति वर्गों के बीच बंट चुकी। मुद्दों पर बात कोई नहीं करता।'

उनकी बात को 10 किमी दूर रुपपुर गांव में बैठे अनिल गंगवार इस तरह खंडित करते हैं ' बताइए, किस मुद्दे पर बात करें। बाघों से सुरक्षा और बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में बचाव का स्थायी समाधान चाहिए मगर, यह चुनाव के दौरान तो हो नहीं जाएगा। मजबूत सांसद तो बनने दीजिए, उन्हें केंद्र से ताकत मिलेगी तभी तो मुद्दे हल होंगे। अब तक हो हुआ, उसे भूलना पड़ेगा।'