इनफर्टिलिटी की समस्या का शारीरिक से ज्यादा महिलाओं के मानसिक सेहत पर असर देखने को मिलता है। इस समस्या से आज दुनियाभर में लाखों महिलाएं प्रभावित हैं। इसे लेकर समाज में कई तरह की गलतफहमियां हैं जिस वजह से कई बार महिलाएं इस पर खुलकर बात नहीं कर पाती और तनाव झेलती रहती हैं तो इससे बाहर निकलने में मददगार साबित हो सकते हैं ये टिप्स।

दुनियाभर में लाखों महिलाएं इनफर्टिलिटी से पीड़ित हैं। जिसका असर उनकी मानसिक सेहत पर भी पड़ता है। इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम के चलते महिलाएं समाज में खुद को अलग-थलग महसूस करती हैं, जिस वजह से तनाव का शिकार हो जाती हैं। इनफर्टिलिटी से जुड़ी सामाजिक सोच और सहयोग की कमी से महिलाओं को और ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

आंकड़ों के अनुसार दुनिया में लगभग 53.08% से 64% महिलाएं बांझपन का सामना कर रही हैं। महिलाओं को इस चुनौती से निपटने और खुद को सशक्त बनाने में एक्सपर्ट द्वारा दिए गए कुछ सुझाव साबित हो सकते हैं मददगार। जान लें इसके बारे में।

परिस्थितियों को स्वीकार करना

प्रजनन से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित महिलाएं इसके साथ ही चिंता, तनाव और अलगाव की भावनाएं से भी जूझ रही होती हैं, तो इससे निपटने के लिए यह समझना जरूरी है कि इनफर्टिलिटी केवल महिलाओं की समस्या नहीं होती और इसके लिए खुद को दोषी मानना सही नहीं है। इनफर्टिलिटी पुरुषों में भी पाई जाती है। इसलिए एक-दूसरे को भावनात्मक सहयोग देना और डॉक्टर की मदद लेने में संकोच न करना जरूरी होता है। 

बातचीत जरुरी है

इनफर्टिलिटी से निपटने के लिए दंपतियों के बीच खुलकर बातचीत करना बहुत जरूरी है। इनफर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं और भावनाओं पर बातचीत से उनके बीच का संबंध मजबूत होता है और वो मिलकर इस चुनौती का सामना करते हैं। कठिन समय में दोस्तों, परिवार या सपोर्ट समूहों का सहयोग भी बहुत मददगार साबित होता है।

आधुनिक मेडिकल सहायता प्राप्त करना

डॉ मनिका सिंह, सलाहकार, बिरला फर्टिलिटी और आईवीएफ, लखनऊ का कहना कि, 'मेडिकल साइंस में हुई प्रगति ने इनफर्टिलिटी का इलाज कर गर्भधारण करना संभव बना दिया है। प्रजनन क्षमता बढ़ाने वाली दवाओं, इंट्रायूटराइन इंसेमिनेशन (आई. यू. आई.), इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई.वी.एफ.) जैसे आधुनिक इलाज ने गर्भधारण में आने वाली बाधाओं को दूर कर दिया है। इलाज के सभी विकल्पों के बारे में जानने और अपने लिए इलाज की सही विधि चुनने के लिए डॉक्टर का परामर्श आवश्यक होता है। मां बनने की इच्छुक महिलाओं को सामाजिक दबाव या बातों की परवाह किए बगैर डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।'

लाइफस्टाइल और सेल्फ-केयर

डॉक्टर से मुलाकात, इलाज और शारीरिक एवं भावनात्मक दबाव के बीच महिलाओं को सेल्फ-केयर पर भी ध्यान देना जरुरी है। इसके लिए बैलेंस डाइट, नियमित व्यायाम और स्ट्रेस कंट्रोल करना होता है। लाइफस्टाइल में इन बदलावों से प्रजनन क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ध्यान और योगा जैसी एक्टिविटीज भी तनाव को कम करने में बेहद असरदार साबित होती है।