दीपिका पादुकोण ने कुछ दिनों पहले अपनी प्रेग्नेंसी की अनाउंसमेंट की जिसके बाद से लोगों में जेरीऐट्रिक प्रेग्नेंसी को लेकर काफी चर्चा होने लगी। कई लोगों ने चिंता भी जताई कि 35 साल से ज्यादा उम्र होने की वजह से आमतौर पर प्रेग्नेंसी में काफी सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हमने एक्सपर्ट से बात की। जानें इस बारे में उनका क्या कहना है।
क्या है जेरीएट्रिक प्रेग्नेंसी?
35 साल की उम्र के बाद होने वाली प्रेग्नेंसी को जेरीऐट्रिक प्रेग्नेंसी या एडवांस्ड मेटरनल एज कहा जाता है। जेरियाट्रिक प्रेग्नेंसी से जुड़ी चुनौतियां और इस दौरान क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, के बारे में जानने के लिए हमने सी.के. बिरला अस्पताल की प्रसुति एवं स्त्री रोग की लीड कंसल्टेंट डॉ. आस्था दयाल से बात की। आइए जानते हैं इस बारे में उनका क्या कहना है।
इस बारे में बात करते हुए डॉ. दयाल ने बताया कि 35 साल की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होना एडवांस्ड मेटरनल एज या एएमए (AMA) कहा जाता है। इस प्रेग्नेंसी को ही जेरीऐट्रिक प्रेग्नेंसी कहा जाता है। इन प्रेग्नेंसी में मां और बच्चे, दोनों के लिए ही काफी रिस्क होता है। यह रिस्क उम्र के साथ और बढ़ता जाता है, खासकर अगर महिला की उम्र 40 वर्ष से अधिक है, तो चुनौतियां और गंभीर हो जाती हैं।
किन चुनौतियों का रहता है खतरा?
उम्र बढ़ने के साथ-साथ कई मेडिकल कंडिशन्स, जैसे- डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा आदि का जोखिम भी बढ़ता जाता है। इन कारणों से प्रेग्नेंसी के दौरान कॉमप्लिकेशन्स भी बढ़ने लगते हैं। महिलाओं में उम्र के साथ अंडों की मात्रा और गुणवत्ता दोनों कम हो जाती है। जिससे महिलाओं की प्रजनन क्षमता भी कमजोर होती है और प्रेग्नेंसी के दौरान क्रोमोजोम असामान्यताएं और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।
इससे जुड़ी अन्य चुनौतियों के बारे में बात करते हुए डॉ. दयाल ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ जेस्टेशनल डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर या प्रीएक्लेमप्सिया का जोखिम अधिक रहता है। इसके अलावा, प्रीटर्म बर्थ, भ्रूण के विकास में रुकावट, मल्टिपल प्रेग्नेंसी, लो बर्थ वेट, जन्मजात बीमारियां या जेनेटिक डिसऑर्डर और स्टिल बर्थ का खतरा भी काफी ज्यादा रहता है। इसके अलावा, लेबर इंड्यूस करने में असफलता और सीजेरियन बर्थ की संभावना भी बढ़ जाती है।
किन बातों का रखें ख्याल?
इसलिए इस प्रेग्नेंसी में ज्यादा सावधानी की जरूरत होती है। डॉ. दयाल ने बताया कि इस प्रेग्नेंसी में काफी अधिक निगरानी की जरूरत होती है। साथ ही, जेनेटिक स्क्रीनिंग, नियमित रूप से अल्ट्रासाउंड और डॉक्टर के साथ नियमित तौर पर संपर्क में रहना जरूरी होता है।
जो महिलाएं 35 साल की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी प्लान कर रही हैं, उन्हें अपने डॉक्टर से संपर्क करके प्रीनेटल काउंसलिंग लेनी चाहिए, ताकि वे इससे जुड़ी सभी चुनौतियों के बारे में जागरूक रहें और सावधानियां बरत सकें। साथ ही, अपनी हेल्थ कंडिशन के बारे में डॉक्टर से बात करके यह जानना बेहद जरूरी है कि प्रेग्नेंसी की वजह से उनकी सेहत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
उम्र बढ़ने के साथ बीमारियों का खतरा तो रहता ही हैं, वह भी तब जब हमारी लाइफस्टाइल इस हद तक बदल चुकी है कि नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज के मामले बढ़ रहे हैं। इसलिए अगर किसी महिला को कोई क्रॉनिक बीमारी है, जिसके लिए उन्हें दवाई लेनी पड़ती है, तो संभावना है कि उन दवाइयों में बदलाव या उन दवाइयों के साथ एस्पिरिन लेना पड़ें।
डॉ. दयाल ने यह भी बताया कि अधिक उम्र होने की वजह से, प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले उन महिलाओं को ज्यादा डीटेल्ड डीएनए (DNA) स्क्रीनिंग, जेनेटिक काउंस्लिंग और डायग्नॉस्टिक टेस्ट करवाने की जरूरत होती है, ताकि प्रेग्नेंसी के दौरान किसी समस्या का सामना न करना पड़े और अगर कोई रिस्क हो भी, तो उससे जुड़ी सावधानियां और इलाज किया जा सके।
इसके अलावा, अगर एडवांस्ड मेटरनल एज की किसी महिला में प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा नजर आए, तो उन्हें अपने चिकित्सक से बात कर, किसी ऐसे अस्पताल में डिलिवरी प्लान करनी चाहिए, जहां लेवल 3 एनआईसीयू (NICU) की सुविधा मौजूद है।
हालांकि, मेडिकल साइंस में इतनी उन्नति होने की वजह से अब कई सुविधाएं मौजूद हैं, जिसकी मदद से महिलाएं 35 साल की उम्र के बाद भी प्रेग्नेंसी प्लान कर रही हैं और स्वस्थ बच्चे को जन्म दे रही हैं। फर्टिलिटी से जुड़ी समस्या को दूर करने के लिए भी कई तकनीक आ चुके हैं, जिनकी मदद से कंसीव करने में भी कम समस्याओं का सामना करना पड़ता है।