एंडोमेट्रियोसिस के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल मार्च के महीने में Endometriosis Awareness Month मनाया जाता है। यह बहुत ही कष्टदायक कंडिशन होती है जिसमें महिलाओं में फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं। एंडोमेट्रियोसिस कैसे फर्टिलिटी को प्रभावित करता है इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हमने एक्सपर्ट से बात की। जानें इस बारे में उनका क्या कहना है।

एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी बीमारी है, जिससे दुनियाभर में कई महिलाएं पीड़ित हैं। इस कंडिशन की वजह से व्यक्ति के रोजमर्रा का जीवन भी प्रभावित होता है। इस कंडिशन में यूटेरस की लाइनिंग जैसे टिश्यू उसके बाहर पेल्विस रीजन में या कुछ मामलों में शरीर के अन्य हिस्सों में भी ग्रो कर सकते हैं।

यूटेरस के टिश्यू को एंडोमेट्रियम कहा जाता है। ऐसे टिश्यू के किसी और हिस्से में ग्रो करने की वजह से इस कंडिशन को एंडोमेट्रियोसिस कहा जाता है। इस कंडिशन की वजह से प्रेग्नेंट होने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इस बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए, हमने एक्सपर्ट से बात की। उन्होंने हमें बताया कि एंडोमेट्रियोसिस महिलाओं की फर्टिलिटी को कैसे प्रभावित करता है। आइए जानते हैं इस बारे में उनका क्या कहना है।

एंडोमेट्रियोसिस की वजह से महिलाओं की फर्टिलिटी कैसे प्रभावित होती है, इस बारे में बात करते हुए फॉर्टिस अस्पताल, नोएडा की प्रसुति एंव स्त्री रोग विभाग की निर्देषक, डॉ. अंजना सिंह ने बताया कि एंडोमेट्रियोसिस एक ऐसी कंडिशन है, जिसमें यूटेरस की लाइनिंग जैसे टिश्यू शरीर के अन्य हिस्सो में ग्रो करने लगते हैं। जब ये टिश्यू शरीर के गलत भाग में ग्रो कर जाते हैं, तो परेशानी का कारण बनने लगते हैं, जिस वजह से रोज के काम करने में भी तकलीफ होनी शुरू हो सकती है।

एंडोमेट्रियम यूटेरस की भीतरी लाइनिंग होती है, जो हर महीने पीरियड्स के दौरान टूटती हैं और इस वजह से ब्लीडिंग होती है। माहवारी के समय ये टिश्यू शरीर के बाहर निकलते हैं और इनके बदले नए टिश्यू बनते हैं। यह प्रक्रिया हर महीने होती है। जब कोई महिला प्रेग्नेंट होती है, तब ये टिश्यू बच्चे के शुरुआती विकास में मदद करते हैं और प्रेग्नेंसी को सहारा देते हैं।

क्या है एंडोमेट्रियोसिस?

लेकिन जब एंडोमेट्रियोसिस की समस्या होती है, तब ये टिश्यू शरीर के दूसरे अंग में बनने लगते हैं। ये एब्डोमेन, पेल्विस या छाती में भी बन सकते हैं। ये टिश्यू हार्मोन सेंसिटिव होते हैं, जिस वजह से पीरियड्स के दौरान इनमें सूजन आ सकती है और ये परेशानी का कारण बन जाते हैं। इन टिश्यू की वजह से ओवेरियन सिस्ट, सुपरफिशियल लीजन, डीपर नॉड्यूल्स, एड्हेशन टिश्यू (जो ऑर्गन्स को जोड़कर रखते हैं) और स्कार टिश्यू जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं।

एंडोमेट्रियोसिस की वजह से महिलाओं को कंसीव करने में काफी परेशानी हो सकती है। आमतौर पर, हर महीने किसी स्वस्थय महिला के प्रेग्नेंट होने की संभावना 10-20 प्रतिशत होती है, जबकि एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं में प्रेग्नेंसी की संभावना मात्र 1-10 प्रतिशत के बीच होती है। इस कंडिशन से गुजर रही महिलाओं में से लगभग 30-50 प्रतिशत महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या होती है।

इस बारे में सी.के बिरला अस्पताल, दिल्ली के प्रसुति और स्त्री रोग विभाग की कंसल्टेंट डॉ. प्रियंका सुहाग ने कहा कि इन कंडिशन्स की वजह से रिप्रोडक्टिव ऑर्गन्स की फंक्शनिंग पर प्रभाव पड़ता है, जिस वजह से फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। गर्भाश्य से बाहर इन टिश्यू के बनने की वजह से, इस कंडिशन से पीड़ित महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

क्या हैं इनफर्टिलिटी के कारण?

इनफर्टिलिटी के क्या कारण हो सकते हैं, इस बारे में बताते हुए डॉ. सिंह और डॉ. सुहाग ने कहा कि एंडोमेट्रियोसिस की वजह से पेल्विस की एनाटोमी में विकृतियां हो सकती हैं, फेलोपियन ट्यूब्स में स्कार, पेल्विस में सूजन, इम्यून सिस्टम के फंक्शन में बदलाव, ओवरी और फेलोपियन ट्यूब के फंक्शन में दिक्कतें, ओव्यूलेशन की प्रक्रिया ठीक से न होना, ओवरी में हार्मोनल बदलाव, अंडो की गुणवत्ता में परिवर्तन, स्पर्म की उत्तमता प्रभावित होना और इंप्लानटेशन की प्रक्रिया में अवरोध या प्रेग्नेंसी से जुड़ी अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।

हालांकि, एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित हर महिला के साथ फर्लिटी संबंधी परेशानियां हो, ऐसा जरूरी नहीं है, लेकिन जिनके साथ है, उनके लिए मेडिकल साइंस में काफी विकल्प मौजूद हैं। इस कंडिशन का कोई इलाज नहीं है, लेकिन कुछ तरीको से इससे जुड़ी समस्याओं को कम जरूर किया जा सकता है।

इसके इलाज के बारे में बात करते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि थेरेपी की मदद से इसके लक्षणों को कम करने, एंडोमेट्रियोटिक इमप्लांट्स का समाधान और एक्टोपिक एंडोमेट्रियल टिश्यू के नए फोकी की रोकथाम की जा सकती है। हाल में की जाने वाली थेरेपी का मुख्य उद्देश्य इस कंडिशन को जड़ से ठीक करना नहीं है बल्कि, इसके लक्षणों को कम करना है, ताकि कम से कम परेशानी का सामना करना पड़े।

Endometriosis

क्या हैं उपचार?

मेडिकल, सर्जरी और साइकोलॉजिकल उपचारों के खास संयोजन से इस कंडिशन से लड़ रही महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता को सुधारने में मदद मिल सकती है। हालांकि, इन उपचारों से मिलने वाले लाभ को पूरी तरह से पर्दर्शित नहीं किया गया है।

लैप्रोस्कोपी से एंडोमेट्रियोसिस के गंभीर मामलों से पीड़ित महिलाओं में इंफर्टिलिटी की वजह को जानने के लिए पेल्विक एनाटोमी डिस्टॉर्शन, जिसे पेल्विक फैक्टर भी कहा जाता है, की मदद ली जा सकती है। पेल्विक एडहेशन या पेरिट्यूबल एडहेशन, ओवरी और फेलोपियन ट्यूब के एडहेशन को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा, ट्यूब पेटेंसी की वजह से ओवरी से ऊसाइट( oocyte), एक जर्म सेल, जो आगे चलकर ओवम में विकसित होता है, रिलीज होने में रुकावट, ओवम के पिकअप या ट्रांसफर को भी प्रभावित कर सकते हैं।

जिन महिलाओं में एंडोमेट्रियोसिस की समस्या होती है, उनमें एंडोक्राइन और ओव्यूलेटरी डिसऑर्डर, जिनमें ल्यूटिनाइज्ड अनरप्चर्ड फॉलिकल सिंड्रोम, इंपेयर्ड फॉल्यूकोजेनेसिस, ल्यूटल फेज डिफेक्ट और प्रीमेच्योर या मल्टिपल ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन सर्ज शामिल हैं, की समस्या भी हो सकती है।

IVF है बेहतर विकल्प...

एंडोमेट्रियोसिस के कम गंभीर मामलों में सर्जरी या नॉन सर्जिकल तरीकों की मदद से एंडोमेट्रिटोटिक इंप्लांट्स को हटाने से फर्टिलिटी से जुड़ी समस्या को कम किया जा सकता है। फर्टिलिटी की समस्या से जूझ रही महिलाओं के डॉ. सिंह ने बताया कि IVF-ET एक बेहतर उपाय है।

एंडोमेट्रियोसिस, ट्यूबल फंक्शन के साथ परेशानी, मेल फैक्टर या अन्य उपायों की असफलता के बाद IVF-ET एक बेहतर विकल्प है। इस बारे में आगे बताते हुए डॉ. सुहाग ने कहा कि एंडोमेट्रोसियोसिस का शुरुआती स्टेज में पता लगाने और इलाज के साथ-साथ स्त्री रोग और प्रसूती विशेषज्ञों की मदद से फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं को दूर करने और कंसेप्शन की संभावनाओं में सुधार के लिए महत्वपूर्ण है।