नई दिल्ली। राज्यसभा ने सोमवार को आम आदमी पार्टी सांसद राघव चड्ढा के निलंबन को समाप्त करते हुए उन्हें सदन की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति दे दी।
चड्ढा पर मानसून सत्र के दौरान 11 अगस्त को दिल्ली सेवा से जुड़े विधेयक के पारित होने के दौरान सदन को गुमराह और गलत तथ्य पेश करने का आरोप था। जिसके बाद उन्हें सभापति ने अनिश्चितकाल तक के लिए निलंबित कर दिया था। साथ ही उनके मामले को सदन की विशेषाधिकार समिति के पास भेज दिया था। इस दौरान समिति ने जांच में उन पर लगे सभी आरोपों को सही पाया और उन्हें इसके लिए दोषी करार दिया है।
निलंबन को वापस लेने का फैसला सुनाया
हालांकि, उनकी ओर से माफी मांगने के बाद सभापति ने उनकी निलंबन अवधि को ही सजा मानते हुए उनके निलंबन को वापस लेने का फैसला सुनाया। इससे पूर्व शीतकालीन सत्र के पहले दिन भोजन अवकाश के बाद जैसे ही राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, तुरंत ही सभापति जगदीप धनखड़ ने विशेषाधिकार समिति के सदस्य और माकपा सांसद इलामरम करीम को समिति से जुड़ी रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा।
चड्ढा पर लगे दोनों आरोप पाए गए सही
इस दौरान चड्ढा पर लगे दोनों आरोपों को सही पाया गया और उन्हें इसके लिए दोषी भी करार दिया। साथ ही सभापति के लिए इसके सजा तय करने की भी सिफारिश की। हालांकि, इसके बाद सभापति ने उनकी ओर से माफी मांगने और सदन में पहली बार निर्वाचित होकर आने जैसे आधार पर उन्हें और किसी नई सजा देने से मना कर दिया। साथ ही कहा कि निलंबन की अवधि को ही उनकी सजा मानी जाएगी।
भाजपा सांसद नरसिम्हा राव ने पेश किया सदन में प्रस्ताव
इसके बाद भाजपा सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव की ओर से उनके निलंबन को खत्म करने का एक प्रस्ताव भी सदन में पेश किया गया। जिसे सभापति धनखड़ ने तुरंत ही अपनी मंजूरी दे दी। इस बीच सदन ने निलंबन वापस होते ही सदन में आने के बाहर खड़े राघव चड्ढा कुछ ही सेकेंड के भीतर सदन में आ गए। इस दौरान उन्होंने निलंबन वापस लेने के सदन और सभापति के प्रति आभार जताया। साथ ही सदन की कार्यवाही में भी हिस्सा लिया।
सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया था दरवाजा
सभापति ने उनके निलंबन को वापस लेते हुए उन्हें भविष्य में सदन की गरिमा और परंपरा के अनुरूप आचरण पेश करने की चेतावनी भी दी। बता दें कि राघव चड्ढा अपने राज्यसभा से अपने निलंबन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी गए थे। जहां से उन्हें कोई राहत न देने हुए इस मामले में सीधे सभापति ने माफी मांगने को कहा था। जिसके बाद उन्होंने सभापित से मिलकर माफी मांगी थी।
चड्ढा पर लगे थे यह दो आरोप, जो जांच में साबित भी हुआ
पहला- जानबूझ कर मीडिया को गुमराह करने वाले तथ्य पेश किए। सदन की कार्यवाही को गलत तरह से प्रस्तुत किया गया। इसकी वजह से राज्यसभा के सभापति के अधिकारों को चुनौती दी गयी। इससे सदन के नियमों की अवहेलना हुई। दूसरा- प्रस्तावित प्रवर समिति में सदस्यों के नाम उनकी सहमति के बिना प्रस्तावित करना सदन की नियमावली के नियम 72 का सीधा उल्लंघन है।