नई दिल्ली। विधानसभा चुनाव वाले पांच राज्यों में से तीन में दो बड़े राष्ट्रीय दलों के बीच ही संघर्ष है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दशकों से बीजेपी और कांग्रेस में ही हार-जीत का खेल होता रहा है। यहां कोई अन्य विकल्प अभी तक बन नहीं पाया है। इस बार भी अबतक तो कोई तीसरा विकल्प नहीं दिख रहा है, लेकिन आम आदमी पार्टी (आप) ऐसे फसल की तलाश में है जिसे लोकसभा चुनाव के वक्त काटा जा सके।
दिल्ली मॉडल के सहारे पंजाब के बाद गुजरात में भी अच्छी उपस्थिति से उत्साहित अरविंद केजरीवाल तीनों राज्यों में आप को विस्तारित करने में लगे हैं। वैसे भी कांग्रेस की ओर से स्पष्ट किया जा चुका है कि आईएनडीआईए लोकसभा चुनाव के लिए है। ऐसे में कोई यह आरोप भी नहीं लगा सकता है कि आप या कोई तीसरा दल गठबंधन को नुकसान पहुंचा रहा है। आम आदमी पार्टी की तैयारी बता रही है कि उसकी नजर भविष्य पर है।
तीन सौ से ज्यादा सीटों पर आप की लड़ने की तैयारी
हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों की कुल पांच सौ 20 विधानसभा सीटों में से करीब पौने दो सौ से अधिक सीटों पर 'आप' अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। अभी तक आप ने मध्य प्रदेश में 69, राजस्थान में 63 और छत्तीसगढ़ में 57 प्रत्याशी उतार दिए गए हैं। यह सिलसिला थमा नहीं है। नामांकन की अंतिम तिथि तक तीनों राज्यों को मिलाकर तीन सौ से ज्यादा सीटों पर आप की लड़ने की तैयारी है।
विधानसभा चुनाव में बेहतर परफॉर्म करने की कोशिश
अगर नतीजे अच्छे आ गए तो फिर पार्टी की तरफ से उसी आधार पर संसदीय चुनाव में सीटों की दावेदारी भी की जाएगी। चुनाव तो तेलंगाना और मिजोरम में भी हो रहा है, लेकिन केजरीवाल की प्राथमिकता इन तीन राज्यों पर ही है। इसका कारण है कि तीनों राज्यों का राजनीतिक और सामाजिक चरित्र हिंदी पट्टी के ऐसे राज्यों से मिलता-जुलता है, जहां की राजनीति में क्षेत्रीय दलों का बोलबाला है।
क्षेत्रीय दलों को स्थान नहीं मिल पाया है
हालांकि, लंबे प्रयासों के बावजूद क्षेत्रीय दलों को स्थान नहीं मिल पाया है। केजरीवाल को यह भी पता है कि बिहार-यूपी की तरह उक्त तीनों राज्यों में जाति आधारित राजनीति खूब होती है। इसलिए आप की प्राथमिकताओं में वैसे युवा और निष्पक्ष वोटर हैं, जो आने वाली नई सरकार से शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं की अपेक्षा रखते हैं। साथ ही जाति-धर्म से हटकर सोचते हैं। हाल के वर्षों में ऐसे वोटरों की संख्या भी बढ़ी है।