देश को सबसे ज्यादा बाजरा देने वाला राजस्थान अब इसके आटे की उम्र काे बढ़ाने का काम करेगा।

बाजरे का आटा सामान्यत: 5 दिन में खराब हो जाता है। ऐसे में रिसर्च की जाएगी कि ऐसा क्या किया जाए ताकि लोग गेहूं की तरह बाजरे के आटे को भी लंबे समय तक स्टॉक कर सकें।

इसके अलावा बाजरे से पराठे, लड्‌डू, नमकीन और केक सहित 20 से ज्यादा प्रोडक्ट तैयार किए जाएंगे।

कम पानी में बाजरा पैदावार के तरीके खोजे जाएंगे।

ये सब हो पाएगा बाड़मेर में बन रहे राजस्थान के पहले बाजरा रिसर्च सेंटर की बदौलत। बाड़मेर के गुड़ामालानी में हैदराबाद में बने बाजरा अनुसंधान केंद्र का रीजनल सेंटर बनाया जा राह है। बुधवार को इसकी नींव रखी गई।

दरअसल, राजस्थान में पूरे देश का करीब 42 प्रतिशत यानी 4 मिलियन टन बाजरे का उत्पादन होता है। अकेले बाड़मेर जिले में करीब 10 लाख हेक्टेयर में बाजरा बोया जाता है। यहां सालाना 500 करोड़ का कारोबार है।

इस वजह से बाड़मेर के गुड़ामालानी को इसके लिए चुना गया है।

केवीके के पास 40 हेक्टेयर (100 एकड़) जमीन पर गुड़ामालानी रिसर्च सेंटर तैयार हाेगा। बिल्डिंग की लागत 8.50 करोड़ होगी। सेंटर में 7-10 साइंटिस्ट और 10 से 15 का रिसर्च स्टाफ होगा।

जोधपुर डिवीजन अधिकारी अर्जुनसिंह तोमर के मुताबिक इस इलाके में बाजरा कम पानी का है। वहीं सबसे ज्यादा बाजरा बाड़मेर इलाके में होता है।

5 दिन में खराब होने वाले आटे की उम्र बढ़ाएंगे

एग्रीकल्चर साइंटिस्ट प्रदीप पगारिया ने बताया कि बाड़मेर के 28 लाख हेक्टेयर भौगोलिक एरिया में से 18 लाख हेक्टेयर में खेती होती है। अभी प्रदेश में बाड़मेर, जालोर, सांचौर और आस-पास एरिया में होने वाली मीठी बाजरी है। इस एरिया के लोग अधिकांश साल भर बाजरी का आटा ही उपयोग में लेते हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से फसल पर भी इसका असर आ रहा है।

इस बाजरी के आटे की उम्र महज 5 से 6 दिन की है, जबकि गेहूं का आटा 5 से 6 महीने तक आसानी से चल जाता है। बाजरी का आटा सात दिन के अंदर ही खट्‌टा हो जाता है। ऐसे में कई लोग इससे परहेज भी रखते हैं और इसका स्टाॅक भी नहीं किया जा सकता है।

ऐसे में इस सेंटर में इसके आटे की उम्र बढ़ाने पर रिसर्च किया जाएगा। ज्यादा पैदावार और बीमारी कम लगे, ऐसी किस्मों के बारे में किसानों को बताया जाएगा।

अभी देसी बाजरा समेत दो से तीन तरह की नई किस्म, नई वैरायटी के बीज बढ़ेंगे

प्रदेश के खेतों में जो अभी बाजरा हो रहा है, उसमें से 80-85 फीसदी बरसात आधारित किस्म होती है। यह फसल 90-100 दिनों में तैयार हो जाती है। इसे देसी बाजरी कहते है। 15 फीसदी सिंचित इलाके में होती है। बाड़मेर-जालोर के अलावा जो इलाका है, वहां एम.पी.एम.एच.-17, 21, 35 किस्म की पैदावार होती है। बाजरे की यह किस्म 80 दिनों में तैयार हो जाती है।

इस फसल में सबसे बड़ी समस्या इनमें लगने वाली हरित और खंडवा जैसी बीमारियां भी है। बाजरे की फसल पर लगने वाले कीड़े इन फसलों को बर्बाद कर देते हैं। ऐसे में इनकी बीमारियों की भी स्क्रीनिंग की जाएगी ताकि फसलों को बचाया जा सके। किसानों का भी नुकसान कम हो।

ऐसे बनता है बाजरे का पराठा

एक बड़े से बाउल में बाजरे और गेहूं का आटा लेकर 2 छोटे चम्मच तेल, नमक, हरी मिर्च, पालक, हरा धनियां, अदरक और जीरा मिलाया जाता है। आटे को हल्के गुनगुने पानी से गूंथना चाहिए। इसके बाद इसे आधा घंटे के लिए रखना है। इससे आटा फूल जाएगा और इसके बाद तेल या घी से पराठा बनाया जा सकता है।

बाजरे के आटे से बिस्किट भी बना सकते हैं

बाजरे के आट में पहले शक्कर डाले और फिर इसे थोड़ी देर तक फेटते रहे। इसके बाद बेकिंग पाउडर डालकर मिक्स करें। इसके साथ ही दूध पाउडर, नारियल बूरा मिलाकर इसे गूंथना है। फिर लोई बनाकर चपटा करें। इसके बाद इसे माइक्रोवेव में 15 मिनट के लिए 180 डिग्री तक हल्का ब्राउन होने तक बेक करना है।

20 से ज्यादा तरह के प्रोडक्ट बनेंगे, इनमें नमकीन व पराठों के साथ कई तरह के स्नैक्स होंगे

अभी बाड़मेर के केवीके में बाजरी के आटे के कुछ प्रोडक्ट्स बनाए जा रहे हैं। इनमें नमकीन, बिस्किट और पॉपकॉर्न शामिल हैं। यहां के किसानों को फिलहाल ट्रेनिंग भी दी जा रही है।

केवीके की ट्रेनर भगवती सुमन शर्मा ने बताया कि आटे का टेस्ट मीठा होता है और कुछ दिनों बाद ये खराब हो जाता है। ऐसे में इन प्रोडक्ट्स को बनाने के लिए एक कटोरी आटे में एक चौथाई हिस्सा बेसन मिलाया जाता है। साथ में मसाले डाले जाते हैं।

दावा किया जा रहा है कि रिसर्च सेंटर के बाद यहां बाजरी के आटे से बने 20 तरह के प्रोडक्ट होंगे। इनमें अधिकांश प्रोडक्ट्स स्नैक्स जैसे-पराठे, लड्डू, चिप्स आदि तरह के होंगे।

कम पानी में बताएंगे बाजरे की ज्यादा पैदावार कैसी हो

गुड़ामालानी केवीके अध्यक्ष डॉ. बाबूलाल मीणा ने बताया कि बारिश प्रॉपर नहीं होने से इसका असर बाजरे की फसल पर दिखता है। या तो पैदावार कम होती है या फिर फसल बीमारी की चपेट में आ जाती है।

ऐसे में यह भी इसे लेकर भी रिसर्च होगी कि कम पानी में कैसे बाजरे की ज्यादा पैदावार हो सके। इसी रिसर्च में प्री और पोस्ट बारिश में पैदावार की संभावनाओं को तलाशा जाएगा। इसके साथ बीज और अनाज के भी टेस्ट रिसर्च लैब में के किए जाएंगे।

रिसर्च सेंटर के लिए 2021 में बनी कमेटी

बाजरा अनुसंधान केंद्र के लिए आईसीएआर की ओर से 2021 में कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट अगले साल यानी 2022 में सौंप दी थी। इसके बाद केन्द्र ने राज्य सरकार को जमीन आवंटित करने के लिए कई लेटर लिखे थे। टोकन मनी पर यह जमीन आवंटित हुई है। बाजरा अनुसंधान केंद्र खुलने से पूरे राज्य के किसानों को लाभ होगा।