देश के लिए बड़ी समस्या बनते जा रहे ई-वेस्ट से निपटने के लिए एक अप्रैल 2023 से प्रभावी हुए इन नए नियमों के तहत ई-कचरा पैदा करने वाले ब्रांड उत्पादकों की ही इसे नष्ट करने की जवाबदेही होगी। हालांकि उन्हें इसके संग्रहण और फिर री-साईकिल कराने जैसी सीधी जिम्मेदारी से मुक्त कर किया है। मौजूदा समय में देश में हर साल करीब 11 लाख टन ई-वेस्ट पैदा हो रहा है।

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ई-वेस्ट से निपटने के लिए नए नियम तैयार करने के बाद केंद्र सरकार ने अब देश में तैयार किए जा रहे या फिर बेचे जाने वाले प्रत्येक इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्टि्रकल उपकरणों की एक औसत आयु तय की है।

जिसमें स्मार्ट फोन और लैपटॉप आदि की औसत उम्र पांच साल निर्धारित की गई है। जिसके बाद इन उपकरणों को ई-वेस्ट माना जाएगा। हालांकि यह औसत आयु इन उपकरणों को तैयार करने वाले उत्पादकों के लिए होगी। जिसके आधार पर ही उन्हें ई-वेस्ट को नष्ट करने का लक्ष्य दिया जाएगा।

ई-वेस्ट से निपटने के लिए नया नियम मानना जरूरी

देश के लिए बड़ी समस्या बनते जा रहे ई-वेस्ट से निपटने के लिए एक अप्रैल 2023 से प्रभावी हुए इन नए नियमों के तहत ई-कचरा पैदा करने वाले ब्रांड उत्पादकों की ही इसे नष्ट करने की जवाबदेही होगी। हालांकि उन्हें इसके संग्रहण और फिर री-साईकिल कराने जैसी सीधी जिम्मेदारी से मुक्त कर किया है। अब उन्हें किसी भी अधिकृत री-साइक्लर से पैदा किए जाने वाले ई-कचरे के बराबर या फिर निर्धारित मात्रा के बराबर ई-वेस्ट रीसाइक्लग का सर्टिफिकेट लेना होगा।

प्रमाण पत्र उसे किसी अधिकृत रीसाइक्लर से लेना होगा। इसके आधार पर ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( सीपीसीबी) उन्हें नए उत्पादन की अनुमति देगा। इसके तहत देश भर में रीसाइक्लर का एक नया तंत्र खड़ा किया गया है जो अब इस तरह के प्रमाण पत्र जारी करेगा।

इसके बदले वह ब्रांड उत्पादकों से पैसा लेगा। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसके तहत फिलहाल 134 इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्टि्रकल उत्पादों या उससे मिलते जुलते उपकरणों की औसत आयु निर्धारित की गई है। इनमें फ्रिज की औसत उम्र दस वर्ष, वा¨शग मशीन की नौ वर्ष, पंखे की दस वर्ष, रेडियो सेट की आठ वर्ष, टैबलेट, आइपैड की पांच वर्ष, स्कैनर की पांच वर्ष और इलेक्टि्रकल ट्रेन और रे¨सग कार (खिलौना) औसत आयु दो वर्ष तय की गई है।

कब उठाया गया कदम

ई-वेस्ट को लेकर केंद्र सरकार ने यह कदम तब उठाया है, जब मौजूदा समय में देश में हर साल करीब 11 लाख टन ई-वेस्ट पैदा हो रहा है। हालांकि उनमें से अभी सिर्फ दस फीसद का ही संग्रहण हो पा रहा था। ऐसे में देश में ई-वेस्ट एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। वैसे तो केंद्र सरकार ने इससे निपटने के लिए पहले भी नियम बनाए थे, लेकिन इन नियमों के तहत ब्रांड उत्पादक यानी इन उत्पादों को पैदा करने वालों को ही इनके संग्रहण व इसे नष्ट करने की भी जिम्मेदारी थी, जो नहीं पाया।