नई दिल्ली,  महागठबंधन से जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अलग हो जाने के बाद भी बिहार में अब छह दलों की सरकार है। भाजपा के विरुद्ध संयुक्त विपक्ष की एकता के प्रयासों के तहत पटना में 23 जून की प्रस्तावित बैठक में नीतीश कुमार के वन टू वन (भाजपा के विरुद्ध संयुक्त विपक्ष का एक प्रत्याशी) फार्मूले पर यदि सहमति बन जाती है तो भी सीट बंटवारे पर सबसे ज्यादा मशक्कत बिहार में ही करनी पड़ सकती है।

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जदयू को देनी पड़ सकती है बड़ी कुर्बानी

बिहार में महागठबंधन के सभी दलों को मिलाकर लोकसभा में कुल 17 सदस्य हैं, जिनमें 16 जदयू के पास हैं। ऐसे में विपक्षी एकता के लिए जदयू को बड़ी कुर्बानी देनी पड़ सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू ने यह कुर्बानी भाजपा से ली थी। इस बार अति उत्साहित कांग्रेस और भाकपा माले की महत्वाकांक्षा के आगे यह काम उसे स्वयं करना पड़ सकता है।

जीतनराम मांझी ने पकड़ा अलग रास्ता

हालांकि महागठबंधन के अन्य सदस्य दलों के लिए राहत की बात है कि लोकसभा की पांच सीटों पर दावा जताने वाले जीतनराम मांझी ने अलग रास्ता पकड़ लिया है। ऐसे में शेष छह दलों के बीच ही बंटवारा होना है। विधानसभा में हैसियत के हिसाब से राजद सबसे बड़ा दल है। कांग्रेस को उसने पिछली बार नौ सीटें दी थीं। वह भी काफी अड़ने-मचलने के बाद।

इस बार क्या हैं दोनों गठबंधनों में हालात?

अंत तक कांग्रेस 11 सीटों की मांग पर अड़ी थी, लेकिन तेजस्वी यादव सहमत नहीं हो पाए थे। इस बार दोनों गठबंधनों में गड्ड-मड्ड है। पिछली बार जो इधर थे, वे उधर चले गए हैं और जो उधर थे, वे इधर चले आए हैं। 2019 के चुनाव में जदयू, भाजपा और रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा एक साथ थीं।

क्या है सीट बंटवारे का हिसाब?

सीट बंटवारे का हिसाब भी सीधा था। भाजपा और जदयू ने 17-17 बांट लिए थे। लोजपा के लिए छह सीटें छोड़ी थी। भाजपा और लोजपा ने अपने हिस्से की सारी सीटें जीत ली थीं। जदयू ने 16 सीटें जीती थी। दूसरी तरफ महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा, मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) ने राजद-कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।

महागठबंधन के सारे साथी दलों का हाल

राजद के हिस्से में 20 सीटें आई थीं। उसने एक सीट अपनी तरफ से भाकपा माले के लिए छोड़ी थी। बाकी 20 सीटों में पांच कुशवाहा एवं तीन-तीन मांझी एवं सहनी को दी गई थीं। खाता सिर्फ कांग्रेस का खुला था। शेष सभी शून्य पर आउट हो गए थे। इस बार कांग्रेस और भाकपा माले को छोड़कर महागठबंधन के सारे साथी दलों ने राजद से नाता तोड़ लिया है।

राजद के नए साथी

कुशवाहा के बाद मांझी भी भाजपा खेमे में खड़े होते दिख रहे हैं। उधर राजद के साथ जदयू के अलावा माकपा और भाकपा भी राजद के नए साथी बन गए हैं। मशक्कत इस मोर्चे पर भी करनी पड़ सकती है क्योंकि पिछली बार महागठबंधन की तरफ से आरा की एक संसदीय सीट प्राप्त करने के बावजूद माले ने दो अन्य सीटों पर भी प्रत्याशी उतारकर दोस्ताना संघर्ष किया था।