नई दिल्ली। 2019 के पहले राजग से बाहर गए टीडीपी की फिर से वापसी हो सकती है। इसको लेकर भाजपा और टीडीपी के शीर्ष नेताओं के बीच संपर्क हुआ है।
टीडीपी के साथ आने से भाजपा को आंध्र प्रदेश के साथ ही तेलंगाना में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में फायदा मिलने की उम्मीद है। शनिवार को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पर मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी पर तीखे हमले को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है।
NDA में शामिल होने की कोशिश कर रहे चंद्रबाबू नायडू
दरअसल, 2019 में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में वाइएसआर कांग्रेस से बुरी तरह हारने के बाद टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू लंबे समय से फिर से राजग में शामिल होने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन अहम मौकों पर संसद के भीतर जगन मोहन रेड्डी की ओर से समर्थन की जरूरत को देखते हुए भाजपा उन्हें तवज्जों नहीं दे रही थी।
भाजपा नेतृत्व भी दिख रहा आश्वस्त
वहीं, आंध्र प्रदेश में जातीय व सामाजिक समीकरणों का हवाला देते हुए प्रदेश भाजपा का एक वर्ग चंद्रबाबू के साथ जाने पर जोर लगा रहा था। इसके अलावा भाजपा के सहयोगी पवन कल्याण भी इसके लिए भाजपा नेतृत्व पर दबाव बना रहे थे। दिल्ली के अध्यादेश पर संसद में बहुमत को लेकर आश्वस्त भाजपा नेतृत्व भी इसे लेकर आगे बढ़ने को तैयार दिख रहा है।
अहम मुद्दों पर BJP को मिला वाइएसआर कांग्रेस का साथ
अहम मुद्दों पर वाइएसआर कांग्रेस के समर्थन के बावजूद आंध्र प्रदेश का राजनीतिक गणित भाजपा नेतृत्व को टीडीपी के साथ जाने के लिए मजबूर कर रहा है। राज्य के बंटवारे के बाद वहां केवल दो बार लोकसभा और दो बार ही विधानसभा चुनाव हुए हैं। जिससे साफ है कि 2019 में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वाइएसआर कांग्रेस से बुरी तरह से हारने के बावजूद टीडीपी का जनाधार बरकरार है।
लोकसभा चुनाव में वाइएसआर कांग्रेस को मिली थी 22 सीटें
2019 के लोकसभा चुनाव में वाइएसआर कांग्रेस 49.9 फीसद मतों के साथ 25 में से 22 सीटें जीतने में सफल रही थी, लेकिन महज तीन सीटों पर सिमटी टीडीपी को भी 40.2 फीसद वोट मिले थे। वहीं टीडीपी से अलग होकर लड़े पवन कल्याण की जनसेना पार्टी को 5.9 फीसद और भाजपा को एक फीसद वोट मिले थे।
अटूट है जनसेना पार्टी का वोट
सबसे बड़ी बात यह है कि जनसेना पार्टी का वोट अटूट है और लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में 5.7 फीसद बरकरार है। यदि भाजपा, जनसेना और टीडीपी तीनों के वोट फीसद को जोड़ ले तो यह 47 फीसद के पार चला जाता है, जो वाइएसआर कांग्रेस को मिले वोट बहुत पीछे नहीं है। इसीलिए पवन कल्याण लगातार वाइएसआर कांग्रेस विरोधी वोटों के नहीं बंटने देने पर जोर दे रहे हैं।
दक्षिण भारत में BJP का हुआ सफाया
वहीं, कर्नाटक में कांग्रेस के हाथों बुरी तरह से हारने के बाद भाजपा के लिए टीडीपी के साथ मिलकर आंध्र प्रदेश में राजग को सरकार बनाने का मौका भी मिल सकता है। जिससे दक्षिण भारत में भगवा लहर के खत्म के विपक्ष के प्रचार को थामने में मदद मिल सकती है। इसके साथ ही टीडीपी के आने से भाजपा को तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलने की उम्मीद है।
भाजपा और टीडीपी ने साथ मिलकर लड़ा था चुनाव
आंध्र विरोधी लहर के बावजूद तेलंगाना में हुए पहले विधानसभा चुनाव में 2014 में टीडीपी को 14.7 फीसद वोट मिले थे, वह 15 सीटें जीतने में सफल रही थी, जबकि तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने वाली कांग्रेस 25.2 फीसद वोट के साथ 21 सीटें जीती थी और भाजपा 7.1 फीसद वोट के साथ पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसमें भाजपा और टीडीपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।
टीडीपी और भाजपा को लोकसभा चुनाव में मिले थे इतने फीसद वोट
2014 के लोकसभा चुनाव में भी टीडीपी 12.3 फीसद और भाजपा 10.5 वोट के साथ एक-एक सीट जीते थे। गठबंधन टूटने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में तो भाजपा का वोट शेयर भी बढ़कर 19.7 फीसद हो गया और सीटें भी चार मिल गईं, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा कहीं नजर नहीं आई, वहीं टीडीपी भी 3.5 फीसद वोट ही हासिल कर पाई। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में टीडीपी, जनसेना और भाजपा मिलकर ही कामयाबी हासिल कर सकते हैं और यही उन्हें फिर से एकजुट भी कर रहा है।