नई दिल्ली : भाजपा के विरुद्ध विभिन्न दलों का महत्वपूर्ण विमर्श अगले हफ्ते पटना में होने जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस का इस बैठक में नया अवतार दिख सकता है, जो यूपी, बिहार एवं बंगाल समेत कई राज्यों के क्षेत्रीय दलों को असहज कर सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं राजद नेता तेजस्वी यादव की पहल पर ममता बनर्जी, अखिलेश यादव एवं अरविंद केजरीवाल जैसे नेता कांग्रेस के साथ आने के लिए तैयार तो दिख रहे हैं, किंतु आत्मविश्वास से भरी कांग्रेस को अपने-अपने राज्यों में ये कितना स्वीकार कर पाते हैं, यह सामने आना और तय होना अभी बाकी है।

कांग्रेस की जीत के बाद बदलेंगे समीकरण

इतना तय है कि कर्नाटक में कांग्रेस के पक्ष में प्रचंड परिणाम आने के बाद एकता के प्रयासों को नए सिरे और बदले संदर्भ में ही आगे बढ़ाया जाएगा। जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने बताया कि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार के गठन होते ही नीतीश कुमार का एकता अभियान आगे बढ़ेगा। यदि एक के खिलाफ एक के नीतीश फार्मूले को मान लिया गया और लोकसभा की कम से कम 500 सीटों पर भी ऐसा हो गया तो भाजपा को आसानी से केंद्र की सत्ता से हटाया जा सकता है। इस फार्मूले पर अभी तक जिन राज्यों के नेताओं ने सहमति दी है, उनमें यूपी, बंगाल और झारखंड शामिल हैं।

भाजपा की 100 सीटें कम करने का जेडीयू का दावा

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह बिहार समेत इन राज्यों में भाजपा की 100 सीटें कम कर देने का दावा करते हैं। इन चारों राज्यों में लोकसभा की कुल 176 सीटें हैं, जिनमें कांग्रेस के सिर्फ पांच सांसद हैं। पिछले चुनाव में इनमें 108 पर अकेले भाजपा को जीत मिली थी। अन्य 25 सीटें भाजपा के सहयोगी दलों की झोली में गई थीं। स्पष्ट है कि इन राज्यों में कांग्रेस की स्थिति अत्यंत कमजोर है। यहां भाजपा विरोधी वोटों पर क्षेत्रीय दलों का प्रभाव है।

कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस का प्रयास इनमें भी वापसी का होगा, जो क्षेत्रीय दलों को रास नहीं आएगा क्योंकि यदि कांग्रेस यहां मजबूत होगी तो भाजपा विरोधी वोटों में बिखराव होगा और इसका सीधा असर क्षेत्रीय दलों के वोट बैंक पर पड़ेगा। ऐसे में विपक्षी एकता के लिए वार्ता की मेज पर जब क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों के सामने हौसले से भरी कांग्रेस होगी तो बात नए अंदाज में ही होगी। पुराने मुद्दे भी उभर सकते हैं, क्योंकि कांग्रेस को पहले भी कम करके आंका जाता रहा है।