शरद पवार के राकांपा अध्यक्ष पद से इस्तीफे के महाराष्ट्र से लेकर राष्ट्रीय राजनीति तक पड़ने वाले प्रभाव की हर ओर चर्चा हो रही है। सबसे अहम बात यह है कि पवार ने यह निर्णय अकेले नहीं किया है। पत्नी प्रतिभा, बेटी सुप्रिया और भतीजे अजीत पवार इस प्रक्रिया में शामिल रहे हैं। बड़े राजनीतिक फैसले की घोषणा के लिए पुस्तक विमोचन सरीखा अराजनीतिक अवसर चुना गया। इस्तीफे की घोषणा शरद पवार ने लिखित संदेश पढ़कर की और राष्ट्रीय राजनीति के महत्व की सूचना मानते हुए इसकी अंग्रेजी प्रति भी वितरित की गई।

क्या होगा यदि पवार फैसला वापस ले लें

बड़ा प्रश्न है कि क्या होगा यदि पवार इस्तीफा वापस ले लेते हैं? इससे राकांपा के लिए कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि उसके लिए शरद पवार ही सब कुछ रहे हैं और वही फिर इस स्थिति में बने रहेंगे। मंगलवार को अचानक की गई इस्तीफे की घोषणा भी इस बात को पुष्ट करती है कि पार्टी के सुप्रीम नेता का वर्चस्व और नियंत्रण किसी भी स्थिति में कायम रहता है। एक और बात साफ है कि पवार के खिलाफ साजिश रचने वालों, असंतुष्टों और राजनीतिक दुश्मनों के सहयोगियों का एक भी गलत कदम उन पर खासा भारी पड़ेगा।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अजीत पवार के अंतिम सांस तक पार्टी में बने रहने के बयान के बावजूद राकांपा में विभाजन के कयास खत्म न होने पर पवार इसी प्रकार का बड़ा प्रभाव चाहते थे। अजीत ने जब कार्यकर्ताओं को इस्तीफे का फैसला स्वीकार करने के लिए मनाने का प्रयास किया तो उन पर अविश्वास का भाव भी दिखा। कार्यकर्ता चाहते थे कि सुप्रिया सुले बोलें और अपने पिता से भी आग्रह करें।

हालांकि अजीत के मना करने पर सुप्रिया नहीं बोलीं। यदि पवार इस्तीफा देने पर अड़े रहें तो:ऐसे में राकांपा को नया नेता चुनना होगा, कोई दमदार व्यक्ति या रबर स्टैंप। अजीत ने मंगलवार को कहा कि वह अध्यक्ष पद के इच्छुक नहीं हैं। क्या सुप्रिया चुनी जाएंगी या कोई और?

अजीत के अनुसार पवार को वरिष्ठ पार्टी नेताओं ने एक कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का भी सुझाव दिया है ताकि राष्ट्रीय अध्यक्ष पर बोझ कम रहे। यहां राष्ट्रीय अध्यक्ष से मतलब शरद पवार से ही है। ऐसे में राकांपा पर पवार का ही नियंत्रण रहेगा, जब तक वह चाहेंगे। यदि पवार कार्यकारी अध्यक्ष पर पूरा नियंत्रण रखेंगे और राजनीतिक गतिविधियों, रणनीति बनाने व प्रचार में भाग लेंगे तो महाविकास आघाड़ी को भी अति आवश्यक चुनावी संबल मिलेगा।

कांग्रेस और शिवसेना नेताओं ने कह ही दिया है कि अध्यक्ष पद पर बदलाव से उनका राकांपा के साथ रिश्ता नहीं बदलेगा। दिल्ली की राजनीति की बात करें तो राकांपा की ताकत इस पर निर्भर होगी कि वह कितनी लोकसभा सीटें जीतती है और किसके साथ उसका गठबंधन होता है। पवार की पार्टी को कमजोर करने के लिए प्रमुख नेताओं को लुभाने की कोशिश में जुटे दूसरे राजनीतिक दलों को भावुक हो चुके कार्यकर्ताओं और नेताओं के कारण दिक्कत हो सकती है।