नई दिल्ली, दक्षिण भारतीय राज्यों में सत्ता के सूखे का सामना कर रही कांग्रेस कर्नाटक में अपने सामाजिक समीकरणों के आधार से इतर भाजपा और जेडीएस के वोट बैंक में इस बार कुछ हद तक बिखराव की उम्मीद कर रही है। चुनावी एलान के ठीक पहले भाजपा के आरक्षण दांव के बावजूद पार्टी भाजपा और जेडीएस के आधार वोट बैंक में इस बार सेंध लगाए जाने की संभावनाओं को लेकर उत्साहित है।
कर्नाटक में धार्मिक मठों पर भाजपा के प्रभाव को थामने के लिए उठाए अपने जवाबी सियासी कदमों को अब तक मिली सफलता के आधार पर पार्टी का आकलन है कि आरक्षण के दांव को चुनावी अभियान जोर पकड़ने से रोका जा सकेगा। कर्नाटक का चुनाव केवल सूबे ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस की वापसी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि इसमें संदेह नहीं कि यहां मिली जीत पार्टी को मौजूदा गंभीर चुनौतियों से बाहर निकलने का रास्ता देगी।
इस चुनाव की अहमियत को भली भांति भांपते हुए ही पार्टी ने भाजपा के लिंगायत और जेडीएस के वोकालिग्गा वोट बैंक के मजबूत आधार में सेंध लगाने के लिए चुनावी एलान से पहले इन दोनों समुदायों के प्रमुख धार्मिक मठों की परिक्रमा पूरी कर ली थी। पार्टी का मानना है कि इसका नतीजा ही है कि इन दोनों समुदायों के धार्मिक मठों ने इस बार अब तक सीधे भाजपा या जेडीएस के पक्ष में राजनीतिक संकेत देने से परहेज किया है।
पार्टी को भरोसा है कि चुनावी पारा चढ़ने के बावजूद दोनों समुदाय के प्रमुख मठों की सियासी सक्रियता शायद ही दिखाई देगी। कर्नाटक में कांग्रेस का चेहरा माने जा रहे दिग्गज नेता सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार पिछले एक साल के दौरान लिंगायत और वोकालिग्गा ही नहीं अन्य वर्गों के धार्मिक मठों के दौरे कर चुके हैं।