150 बेटियों की मां किन्नर लीलाबाई

कोख से भले ही बेटी को जन्म नहीं दिया, लेकिन डेढ़ सौ बेटियों की जिंदगी संवारी, पाला-पोसा और विदाई करवाई

यजमानों से मांगकर लीला चौथा हिस्सा करती है गो सेवा व शिक्षा पर खर्च

बालोतरा 150 बेटियों की मां किन्नर लीला भगवान ने भले ही लीलाबाई की कोख से किसी बेटी को जन्म नहीं दिया हो, लेकिन वर्तमान में 150 से अधिक बेटियां ऐसी हैं, जिनके लिए किन्नर लीला मां से भी बढ़कर है। गरीबी व मुफलिसी में पली इन बेटियों को विदा करने के लिए माता-पिता के पास जब कुछ नहीं होता था, तो किन्नर लीला ने आगे आकर एक मां का फर्ज अदा किया। बेटियों को गोद लेने के साथ ही बेटी को दहेज में दिए जाने बाली सामग्री सहित उसके व्याह का पूरा खर्चा उठाया।

इतना ही नहीं लीला ने बताया कि भविष्य में जब तक वह जिंदा है, इसी तरह की बेटियों की मदद करती रहेगी। इसके साथ ही लीला का बड़ा करीब तीस साल पहले अपने पास ही बस्ती में रहने वाली एक गरीब परिवार की बेटी को गोद लेकर उसकी शादी करवाई तो बाद में जैसे इस कार्य में उन्हें सुकून मिलने लगा। इसके बाद बालोतरा शहर सहित जिले भर में जहां कहीं भी गरीब घर की बेटी के बारे में सुनती तो उनसे मिलकर बेटी की सारी जिम्मेदार लेकर उसके शादी- ब्याह का अधिकांश खर्चा स्वयं करती। किन्नर लीला ने बेटियों के लिए मां का फर्ज़ अदा किया तो बेटियां आज भी उसे जन्म के बाद पालनहार के रूप में देखती है। यही वजह हैं कि व्याही गई बेटिया आज भी पीहर आती है तो घर जाने से पहले किन्नर लीला के घर पहुंचकर आशीर्वाद लेती हैं। लीलाबाई के तीस साल पहले शुरू हुए इस सफर में अब तक 150 से अधिक

बेटियों को गोद लेकर उनकी जरूरत किन्नर लीला गरीब बेटियों के

यजमानों से मिली वाली राशि का एक तय हिस्सा व गो सेवा के लिए निकालती है। वहीं कच्ची बस्ती में रहने वाली लीलाबाई के आस-पड़ौस में रहने वाले गरीब परिवारों के बच्चों के लिए पाठ्यसामग्री, पोशाकें सहित लगाया जाता है। शिक्षण का जिम्मा भी संभाल रही है। बालोतरा किन्नर समाज की अध्यक्ष लीलाबाई के घर में आधा दर्जन शिष्य रहते हैं, जिनको लीलाबाई आमजन से जुड़कर उनके सुख-दुःख में भागीदार बनने की सीख देती हैं। सीख

यजमानों से मांगकर लीला चौथा हिस्सा करती है गो सेवा व शिक्षा पर खर्च

साथ ही जरूरतमंद की सेवा के लिए हरदम आगे रहती है। बेटियों की शादी के अलावा वे अपनी कमाई का चौथा हिस्सा गो सेवा व शिक्षा पर भी खर्च करती है। कच्ची बस्ती में रहने वाली लीला बाई के आस-पड़ौस में अधिकांश दिहाड़ी मजदूर व आर्थिक हालात से कमजोर परिवार रहते हैं, इनके बच्चों के लिए स्कूल फीस, किताबें, पौशाक व जूते आदि खरीदना बूते से बाहर की बात है, उन बच्चों के शिक्षण का जिम्मा लीला बाई संभाल रही हैं। इसके अलावा समय-समय पर कच्ची बस्तियों वाले जुड़ाव भी बढ़ेगा। स्कूलों में सर्दी के मौसम में स्वेटर, जूते, पौशाक व पाठ्य सामग्री आदि वितरित करती है। इसके अलावा गायों के चारा- "भगवान ने मां बनने का सुख पानी के लिए भी लीलाबाई कमाई का खासा हिस्सा लगा देती है। प्रतिदिन गायों के लिए हरा चारा व पानी की व्यवस्था की जा रही है, जिसकी देखरेख वह स्वयं करती है। यही वजह है कि किन्नर लीलाबाई के नाम के आगे गोभक्त भी सपना है गाय माता का संरक्षण करना।

शिष्याओं को अच्छे कार्यों में लोगों को जोड़ने व दुर्व्यवहार से बचने की

किन्नर लीलाबाई के सुमन, सरोज सहित आधा दर्जन से अधिक शिष्याएं हैं, जो लीलाबाई को गुरु के साथ ही मां का दर्जा देती हैं। वहीं लीलाबाई भी उन्हें बेटियों की तरह पालने-पोसने के साथ ही दुनियादारी के तमाम रीति

रिवाज की सीख देती हैं, ताकि किन्नर समाज हेय दृष्टि से नहीं देखा जाए। लीलाबाई शिष्याओं को आमजन के साथ दिली रिश्ता रखने की बात कहती है तथा सुख-दुःख में आस-पड़ोस के लोगों तथा शहरवासियों के साथ जुड़ाव रखने की सीख दी जाती है, ताकि आम इंसान और किन्नर के बीच की दूरियां को खत्म किया जा सके। उनका कहना है कि त्यौहार के मौके पर जोर-जबरदस्ती करने की बजाय प्रेम-सद्भाव से रहोगी तो आमजन से

इनका कहना

तो नहीं दिया, लेकिन खुद को सौभाग्यशाली मानती हूं कि जो मां बनकर नहीं कर सकती, यह सेवा करने का मौका मिला। बेटियों को पढ़ा-लिखाकर दुनियादारी की सीख और उन्हें विदा करना हर किसी के भाग्य में नहीं होता। यह सब शिव की कृपा से हो रहा है। इसके साथ ही गरीबों के बच्चों को पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाने का कार्य किया जा रहा है। इसके साथ ही सबसे बड़ी चीज गाय की सेवा हैं। गायों की सेवा के लिए जितना हो सके कर रहे हैं, आमजन भी अपनी कमाई का कुछ हिस्सा निकालकर जरूरतमंदों व गोवंश की सेवा में खर्च करें तो दुनिया में हर जगह खुशी नजर आएगी।

लीलाबाई (अध्यक्ष, किन्नर समाज बालोतरा )