नगांव जिले के अंतर्गत कोठियातुली की एक सौ बिस वर्षीय एतिज्यमंडित कोठियातुली आंचलिक दुर्गोत्सव की एक विशेषता है की मातारानी की प्रतिमा कंधे पर ही ले जाकर विसर्जन किया जाता है।

         कोठियातुली निवासी तथा दुर्गोत्सव आयोजक नंदकिशोर अग्रवाला और धर्मपत्नी विनिता अग्रवाला ने दी जानकारी के अनुसार कोठियातुली चारिआली में उक्त पुजा का शुभारंभ वर्ष १९०२में गोविंद ठेकेदार ने शुरु की थी।गोविंद ठेकेदार ने वर्ष १९०२से १९४१तक व्यक्तिगत तौर पर दुर्गोत्सव का आयोजन करते आने के पस्चात वर्ष १९४२से कोठियातुली निवासी तथा समाजसेवी मोहनलाल चांदमल अग्रवाला ने उक्त पुजा अपने हाथों में ले दुर्गोत्सव आयोजन करते आ रहे थे परंतु मोहनलाल चांदमल के देहांत के पस्चात उनके पुत्र तथा समाजसेवी नथमल अग्रवाला और पौत्र नंदकिशोर अग्रवाला द्वारा व्यक्तिगत तौर पर आज तक उक्त दुर्गोत्सव का आयोजन धूमधाम से श्रद्धापूर्वक करते आ रहे है।उक्त दुर्गोत्सव कोठियातुली क्षैत्र की प्रथम पुजा होने के साथ ही पुजा की एक विशेष विशेषता है की उक्त पुजा के लिए  मुर्तीकार द्वारा मातारानी सहित देवी देवताओं की प्रतिमा संलग्न कर पुजा पंडाल मेंं ही वर्षों से निर्माण करते आने के साथ ही उक्त पुजा की एक और विशेष विशेषता है की दुर्गोत्सव के अंतिम दिन दशमी को मातारानी की प्रतिमा वाहन में नही जाती है प्रतिमा को सैकड़ों श्रद्धालुओं द्वारा कंधे ले जाकर विसर्जन किया जाता है।