गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर कहा जा रहा है कि यह बहुत तेजी से बदल रहा है और जिस तेजी से फैल रहा है अगर ऐसे ही पिघलता रहा तो कुछ ही सालों में नदी किनारे वाले तमाम शहर पानी में डूब जाएंगे... लेकिन गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर सच्चाई क्या है देखिए इस स्पेशल रिपोर्ट में.... हिमालय में 10,000 से ज्यादा ग्लेशियर हैं जिनसे कई नदियां निकलती हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए ग्लेशियर सबसे महत्वपूर्ण है... अगर ग्लेशियर ना हो तो जीवन की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती है. पिछले कुछ सालों में अलग-अलग विशेषज्ञों की ग्लेशियर को लेकर अलग-अलग रिपोर्ट सामने आई है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि उत्तराखंड में स्थित गंगोत्री ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहा है और अगर यही क्रम रहा तो आने वाले कुछ सालों में यह खत्म हो जाएगा.....
रिटायर्ड प्रोफेसर डीपी डोभाल से इस बारे में जानकारी ली
ऐसे में हमने देहरादून स्थित वाडिया भूगर्भ संस्थान के ग्लेशियोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी रहे रिटायर्ड प्रोफेसर डीपी डोभाल से इस बारे में जानकारी ली। डॉ डीपी डोभाल उत्तराखंड , जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के कई ग्लेशियर में कई साल स्टडी कर चुके हैं। गंगोत्री ग्लेशियर को लेकर जिस तरह की रिपोर्ट सामने आ रही है उस पर उन्होंने कई तरह की जानकारियां दीं ।
40 साल पहले भी 20 मीटर प्रति साल गंगोत्री ग्लेशियर पिघलने की दर थी
डॉ डीपी डोभाल ने कहा कि उन्होंने खुद ट्रैकिंग करके गंगोत्री ग्लेशियर में कई बार रिसर्च की है आज से 40 साल पहले भी 20 मीटर प्रति साल गंगोत्री ग्लेशियर पिघलने की दर थी जो अभी 20 से 25 मीटर ही चल रही है। डॉ डीपी डोभाल ने बताया कि गंगोत्री ग्लेशियर 30 किलोमीटर रेंज में फैला हुआ है इसलिए यह कहना बहुत जल्दबाजी है कि गंगोत्री ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहा है। ग्लेशियर की थिकनेस का पता रिमोट सेंसिंग के जरिए किया जाता है। लेकिन जी बी पंत पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिक डॉ क्रीत कुमार ने जीपीएस के जरिए गंगोत्री ग्लेशियर का मेजरमेंट किया था और उन्होंने 12 मीटर प्रति साल इसकी थिकनेस कम होने की जानकारी दी थी।