नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का कहना है कि श्रीलंका के आर्थिक हालात की तुलना भारत से करना बेवकूफी है। ऐसी तुलना पर हंसी आती है। हालांकि, हमें भविष्य के वृहद आर्थिक प्रबंधन के लिए श्रीलंका संकट के अनुभव से सबक सीखना चाहिए। उन्होंने कहा, 1991 के भुगतान संतुलन के संकट के बाद देश की सरकारों ने संकुचित तरीके से वृहद अर्थव्यवस्था का प्रबंधन किया है।

भारत की जहां तक बात है तो राजकोषीय घाटे को हाथ से बाहर नहीं जाने दिया गया है। राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए विदेश से कर्ज नहीं लिया गया है। वहीं, श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। भारत बढ-चढ़कर पड़ोसी देश की मदद कर रहा है।

किए गए हैं कई उपाय

पनगढ़िया ने महंगाई पर कहा, इस पर लगाम लगाने के लिए मौद्रिक नीति में कदम उठाए गए हैं। चालू खाते के घाटे को काबू में रखने के लिए विनिमय दरों को नीचे आने दिया गया है। पूंजी प्रवाह को भी सोच-समझकर खोला गया है।

बेरोजगारी समस्या नहीं

उन्होंने कहा, भारत की समस्या बेरोजगारी न होकर कम रोजगार या कम उत्पादकता वाले रोजगार की समस्या है। हमें ऐसे रोजगार पैदा करने पर ध्यान देना चाहिए, जिनमें लोगों को अच्छी आय मिले। महामारी के साल यानी 2020-21 में भारत में बेरोजगारी दर 4.2% ही थी, जो 2017-18 के 6.1% से कम थी।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पनगढ़िया ने आधिकारिक आर्थिक आंकड़ों पर सवाल उठाने के मुद्दे पर कहा, देश की जीडीपी, श्रमबल सर्वे व संग्रहण के अन्य आंकड़े अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलना करने से बेहतर नजर आते हैं। गलत मंशा से हो रही कुछ आलोचनाओं को नजरअंदाज किया जाना चाहिए। हालांकि, कुछ आलोचनाएं सही हैं। इन्हें हल करने की जरूरत है।