जरूरतमंदों के लिए रैनबसेरा का विज्ञापन सिर्फ कागजों पर रह जाने से लोग परेशान : आवारा कुत्तों के बीच रात गुजारने वालों की पीड़ा व्यवस्था की आवाज तंत्र तक नहीं पहुंचती।
रैनबुसेरा को हटाकर बनाई गई कैंटीन
कुछ समय पहले तक, जो रैनबसेरा था अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर के बगल में था, जहाँ मरीजों के परिजन आराम करते थे और रात को भी वहीं सोते थे। हालांकि, कमाई के लालच में व्यवस्था ने इस रेनबसेरा को हटाकर वहां कैंटीन लगा दी है. आज कैंटीन बनने के बाद लोग डिवाइडर और सड़कों पर सोने को मजबूर हैं। कुछ दुर्भाग्यपूर्ण मरीजों को इलाज कराने के बाद भी अस्पताल के बिस्तर के बजाय सड़क पर खुले में सोना पड़ता है।
माना की सिविल हॉस्पिटल भारत का सब से बड़ा हॉस्पिटल है पर क्या दर्दी और उनके परिजन के लिए तंत्र कोई व्यवस्था नहीं कर सकता क्या रेनबासेरा हटाकर केंटीन बनाना जरूरी था कमाई को अपना जरिया बनाने केलिए तंत्र इतनी हद तक गिर जायेगा ये तो कोई सोच भी नही सकता क्या इस समस्या का हल तंत्र निकलेगा या फिर यूही सिविल हॉस्पिटल में आए दर्दी और दर्दी के परिजन को इस समस्या की पीड़ा को हरवक्त सहन करना होगा.?