कालापुरा: भूतिया गाँव का रहस्य

गाँव का रहस्य

रात का अंधेरा घना हो चुका था। चाँद बादलों में छिपा हुआ था और चारों ओर सन्नाटा पसरा था। विशाल और उसके तीन दोस्त, रोहित, अमन और कविता, शहर से दूर एक रहस्यमयी गाँव के बारे में सुनकर वहाँ जाने का फैसला कर चुके थे। यह गाँव, जिसका नाम "कालापुरा" था, सालों से वीरान पड़ा था। कहा जाता था कि वहाँ जो भी गया, कभी लौटकर नहीं आया।

चारों दोस्तों ने अपनी गाड़ी गाँव के बाहर रोकी और पैदल अंदर जाने लगे। गाँव की गलियाँ संकरी और टूटी-फूटी थीं। जगह-जगह घास उगी हुई थी, और पेड़ों की टहनियाँ अजीबोगरीब तरीके से हिल रही थीं, मानो कोई उन पर बैठा हो। हवा में एक अजीब-सी गंध थी, जैसे किसी चीज़ के सड़ने की।

"यार, ये जगह कुछ अजीब लग रही है," रोहित ने डरते हुए कहा।

"अरे, कुछ नहीं होगा। बस गाँव के अंदर चलकर देखते हैं और वापस लौट आते हैं," विशाल ने हिम्मत बंधाई।

जैसे ही वे गाँव के अंदर गए, उन्हें एक पुराना कुआँ दिखा। कुएँ का पानी काला था, और उसमें से हल्की-हल्की भाप उठ रही थी। अमन ने उत्सुकतावश उसमें झाँकने की कोशिश की, तभी किसी ने पीछे से उसका हाथ पकड़ लिया।

"कौन?!" अमन चीख पड़ा।

सबने पीछे देखा, मगर वहाँ कोई नहीं था।

"शायद हवा होगी," कविता ने कहा, मगर उसकी आवाज़ भी काँप रही थी।

वे गाँव के अंदर और आगे बढ़े। अचानक उन्हें एक टूटा-फूटा हवेली जैसा घर दिखा। घर के दरवाज़े पर पुराने ज़माने की जंजीर लटकी हुई थी, और दरवाज़ा थोड़ा-थोड़ा हिल रहा था। अंदर से धीमी-धीमी सरसराहट की आवाज़ें आ रही थीं।

"हमें अंदर नहीं जाना चाहिए," रोहित ने पीछे हटते हुए कहा।

"बस एक बार देख लेते हैं," विशाल ने कहा और दरवाज़ा धकेल दिया।

दरवाज़ा चरमराते हुए खुल गया। अंदर धूल जमी हुई थी, और दीवारों पर अजीब-अजीब आकृतियाँ बनी थीं। तभी, अचानक एक ज़ोरदार ठहाका गूँजा।

"हा... हा... हा... तुम यहाँ क्यों आए हो?"

चारों के रोंगटे खड़े हो गए।

"यहाँ कोई मज़ाक कर रहा है," अमन ने खुद को समझाने की कोशिश की।

तभी, एक खिड़की अपने आप खुल गई, और एक सफेद साया उनकी ओर बढ़ता दिखा। उसकी आँखें लाल थीं, और उसके मुँह से खून टपक रहा था।

"ब... ब... भागो!" विशाल चीख पड़ा।

चारों जान बचाकर भागने लगे, मगर जैसे ही वे दरवाज़े तक पहुँचे, दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया। घर के अंदर गूँजती आवाज़ आई – "अब कोई नहीं जा सकता!"

कविता ज़मीन पर गिर पड़ी और रोने लगी। तभी, रोहित ने अपनी जेब से भगवान का लॉकेट निकाला और ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगा। अचानक हवेली हिलने लगी, और एक ज़ोरदार चीख के साथ वह साया गायब हो गया।

दरवाज़ा खुल चुका था। चारों किसी तरह भागकर गाँव के बाहर पहुँचे और बिना पीछे देखे गाड़ी में बैठकर वहाँ से भाग निकले।

जब वे शहर पहुँचे, तो देखा कि उनकी गाड़ी पर खून के निशान थे, और पीछे से किसी के हँसने की धीमी आवाज़ आ रही थी...

"हा... हा... हा... फिर मिलेंगे!"

उसके बाद, किसी ने भी कालापुरा गाँव की ओर जाने की हिम्मत नहीं की।

मैंने आपकी कहानी का शीर्षक "कालापुरा: भूतिया गाँव का रहस्य" जोड़ दिया है। अब यह और भी प्र

भावी और डरावनी लगेगी। कोई और बदलाव चाहिए तो बताइए!