चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर नियंत्रण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा कि सवाल ये है कि किस सुविधा को मुफ्तखोरी कहा जाए और किसे जनता का वाजिब हक माना जाए. कोर्ट ने कहा कि क्या मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं, मुफ्त पानी, बिजली को मुफ्तखोरी कहा जाए या ये वाजिब वादे हैं. दूसरी ओर क्या मुफ्त बिजली के सामान, दूसरी चीजों को बांटना जनकल्याण है? इस पर व्यापक विचार विमर्श की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सभी से सुझाव देने को कहा है.

कोर्ट में दायर याचिका

सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में मांग की गई है कि चुनाव में मुफ्त सुविधाओं का घोषणा करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द की जाए. कोर्ट के पिछले निर्देश के मुताबिक केंद्र सरकार, चुनाव आयोग, आम आदमी पार्टी, डीएमके, कपिल सिब्बल अपने सुझाव कोर्ट में रख चुके हैं.

चीफ जस्टिस की अहम टिप्पणी

आज सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा कि हमारे पास आए तमाम सुझावों में से एक सुझाव है कि राजनीतिक दलों को अपने मतदाताओं से वादा करने से नहीं रोका जाना चाहिए. अब कोर्ट के सवाल ये है कि किसे मुफ्तखोरी कहा जाए. क्या मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं, मुफ्त बिजली-पानी को मुफ्तखोरी कहा जा सकता है. मनरेगा जैसी योजनाएं भी है, जो वंचित तबके को सम्मानपूर्वक जीवन जीने में मददगार बनती हैं.

'पार्टियों को वादे करने से नहीं रोक सकते'

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम राजनीतिक दलों को चुनावी वादे करने से नहीं रोक सकते. मुझे नहीं लगता कि चुनाव के दौरान मुफ्त सुविधाओं के वादे किसी पार्टी के सत्ता में आने की गांरटी है. कई बार ऐसे वादे करने के बाद भी पार्टियां हार जाती हैं.

केंद्र सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. उन्होंने कहा कि जनता की भलाई, सिर्फ मुफ्तखोरी की योजनाओं के जरिए नहीं हो सकती. इससे पहले हुई सुनवाई में तुषार मेहता कह चुके हैं कि अगर मुफ्त योजनाओं के जरिए ही लोगो की भलाई के लिए सोचा गया, तो ये आर्थिक विनाश की वजह बनेगा. उन्होंने कहा था कि जब तक सरकार इसे रोकने के लिए कानून लाती है, तब तक कोर्ट दखल देकर दिशानिर्देश तय कर सकता है.

सरकार ने कमेटी का सुझाव दिया

केंद्र सरकार ने मुफ्तखोरी पर लगाम कसने के लिए कमेटी का गठन का सुझाव दिया था. इस कमेटी में रिटायर्ड CAG, केंद्रीय वित्त सचिव, राज्यों के वित्त सचिव, हर राजनीतिक दल के प्रतिनिधि, वित्त आयोग के चेयरमैन ,आरबीआई और चुनाव आयोग के प्रतिनिधि, नीति आयोग के CEO, FCCI या CII जैसे संगठन और मुफ्तखोरी के चलते आर्थिक संकट झेल रहे सेक्टर के प्रतिनिधि को शामिल करने का सुझाव दिया था.

आम आदमी पार्टी, डीएमके, कांग्रेस नेता का पक्ष

इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में आम आदमी पार्टी ने भी याचिका दाखिल की है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली, मुफ्त ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधाएं मुफ्तखोरी नहीं कही जा सकती, बल्कि ये एक समतामूलक समाज को बनाने के लिए एक सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. डीएमके की ओर से कहा गया है कि आर्थिक और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए जनकल्यानकारी योजनाए देश की जरूरत है. डीएमके ने याचिका में जनकल्यानकारी योजनाओं को मुफ्तखोरी करार दिए जाने पर सवाल उठाया है. वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश महिला कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने भी याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इस तरह की स्कीम लाना और सब्सिडी देना समाज के वंचित तबके के विकास के लिए एक सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है.