भारत यूरोप में ईंधन का प्रमुख सप्लायर बनता जा रहा है। कोरोना महामारी के दौरान यूरोप की ऑयल रिफाइनरी के बंद होने और उसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत को यूरोप में ईंधन सप्लाई का मौका मिला। रूस से सस्ते दाम पर कच्चे तेल की खरीदारी और फिर उसे विभिन्न वाहनों के लिए उपयुक्त ईंधन में बदल कर भारत पेट्रोलियम उत्पाद का एक निर्यातक बन गया है। यही वजह है कि वस्तुओं के निर्यात में पेट्रोलियम उत्पादों की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत से अधिक हो गई है।वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत से नीदरलैंड होने वाले निर्यात में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी पेट्रोलियम उत्पादों की है। नीदरलैंड भारत के पहले पांच निर्यात बाजार में शामिल हो गया है। वैसे ही ब्रिटेन होने वाले कुल निर्यात में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी पेट्रोलियम उत्पादों की है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल-जुलाई में ऑटोमोटिव डीजल फ्यूल का फ्रांस होने वाले निर्यात में 883 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

 

ऑटोमोटिव डीजल फ्यूल के साथ हवाई जहाज व मोटर वाहन में इस्तेमाल होने वाले ईंधन, हाई स्पीड डीजल, केरोसिन प्रमुख रूप से शामिल हैं।वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने यूरोप में 5.9 अरब डॉलर के पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया था जो पिछले वित्त वर्ष 20 अरब डॉलर को पार कर गया। विभिन्न वैश्विक एजेंसियों के मुताबिक यूरोप में होने वाले कुल पेट्रोलियम आयात में भारत की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत है। अमेरिका और सऊदी अरब की हिस्सेदारी क्रमश: 21 और 17 प्रतिशत है।

नीदरलैंड, ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे जैसे देश खरीदारी कर रहे

पांच साल पहले यह हिस्सेदारी 12 प्रतिशत के पास थी। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के अप्रैल-सितंबर में भारत का वस्तु निर्यात 213 अरब डॉलर का रहा और इनमें 36.5 अरब डॉलर का निर्यात पेट्रोलियम पदार्थों का रहा। पिछले तीन सालों में नीदरलैंड, ब्रिटेन, फ्रांस, नार्वे जैसे देश प्रमुख रूप से पेट्रोलियम उत्पादों की खरीदारी कर रहे हैं।पेट्रोलियम पदार्थों की वजह से ही यूरोप के कई देशों में भारत के निर्यात में बढ़ोतरी दिख रही है। यूरोप के देशों के साथ भारत सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, यूएई, आस्ट्रेलिया जैसे देशों को भी पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात कर रहा है।