हर प्राणी की जन्म के साथ ही मृत्यु होना भी तय है। मनुष्य की मृत्यु बाद अपने अपने धर्म के अनुसार मृत शरीर के अन्तिम संस्कार का पृथक पृथक तरीका है। हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु उपरान्त दाँह संस्कार किया जाता है। सभी जगह दाँह संस्कार अग्नि को समर्पित कर किया जाता है। इस हेतु लकडी, गोबर के कण्डों की आवश्यकता होती है। बडे बडे शहरी मे विद्युत से दाँह संस्कार भी किया जा रहा है। यह सुविधा बडे शहरो के अलावा कही भी नही है। वर्तमान मे सामान्यतया लकडी के माध्यम से दाँह संस्कार हो रहा है।
समाचार पत्रों मे पढने को मिलता है कि दाँह संस्कार स्थल पर अतिक्रमण है, रास्ता नही है, छाया की व्यवस्था नही है, निर्धारित स्थान नही है, चबुतरा नही है, टीन शेड नही है, टीन शेड का स्ट्रँकचर तो है लेकिन चद्दर जल जाने से खराब हो गये है। दाँह संस्कार मे जाने वालो को बैठने का स्थान नही है। पानी पीने, नहाने की जल व्यवस्था नही है। बडे बडे कस्बों मे एक से ज्यादा अलग अलग जगह श्मसान स्थल है। एक जगह सामान्य व्यवस्था हे तो दुसरी जगह बिल्कुल व्यवस्था नही है।
जहां जहां श्मसान स्थल भी है चबुतरा भी है, टूटे चद्दरो वाला टीन शेड भी है लेकिन मुख्य सडक से वहां तक पैदल जाना कठिन है। जुलीफ्लोरा, झाड, कटिले पौधे रास्ते मे तथा चबुतरे के चारो तरफ उगे हुये है।
हिन्दू रिति रिवाज के अनुसार परिजन रथी के चारों तरफ तीन परिक्रमा करने के बाद अग्नि संस्कार करते है लेकिन कांटो मे पैदल परिक्रमा करना बहुत ही कठिन कार्य हो जाता है।
वर्षा काल में सडक से दाँह संस्कार स्थल पर कीचड, पानी से निकलना, खुले मे दाँह संस्कार करना, त्रिपाल लगाकर दाँह संस्कार करना, लकडियों का सुगम उपलब्ध नही होना ये सारी समस्याओं के स्थायी समाधान करवाने की शासन प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी तय होना चाहिए।
शहरों मे दाँह संस्कार के स्थलों पर सभी सुविधाएं उपलब्ध है। दाँह संस्कार हेतु चबुतरे, टीन शेड, बैठने के लिऐ बडे बडे हाँल, बैंचें, पीने व स्नान करने हेतु पानी, दाँह संस्कार हेतु लकडी सभी सुविधाएं उपलब्ध है लेकिन गांवों मे असुविधाओं के अलावा कुछ भी नही है । यदि कुछ सुविधाएं उपलब्ध भी हे तो वे पर्याप्त नही है।
मूलचंद शर्मा, समाजसेवी तलवास निवासी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री व मुख्यसचिव, जिला कलक्टर को पत्र भिजवा कर श्मसान स्थलों को सुविधा युक्त करवाने मे ग्राम स्तर पर सर्वाधिक प्राथमिकता तय करवाने की मांग की गयी है। गांवो मे सर्व प्रथम विकास कार्यो मे श्मसान स्थल का विकास एवं अनवरत रख रखाव की प्राथमिकता तय करने की आवश्यकता की मांग की है।
हर गांवो मे श्मसान भूमि चिन्हित हो, आंवन्टित हो। श्मसान स्थल तक पहुंच हेतु पक्की सडक, दाँह संस्कार स्थल पर चबुतरा, टीन शेड, चबुतरे के चारो तरफ पांच पांच फीट पक्की सडक या इन्टरलाँकिग बैठने हेतु प्रतीक्षालय, पीने व स्नान करने के लिऐ पानी, दाँह संस्कार हेतु लकडी उपलब्धता के लिए ग्राम विकास अधिकारी व सरपंच की जिम्मेदारी तय होना चाहिए। ऐसा एक भी गांव मजरा नही बचना चाहिए जहां पर ये सभी सुविधाएं उपलब्ध न हो। यदि किसी भी जगह से शिकायत मिलती है तो इसकी जिम्मेदारी प्रशासन की तय होना चाहिए।
राज्य सरकार को श्मसान स्थलों पर सभी सुविधाएं उपलब्धता हेतु बजट आवंटन किया जाना चाहिए। क्षैत्रीय विधायक व सांसद कोष से जहां जहां पर भी जिसकी भी कमी है उस हेतु सर्व प्रथम इन कार्यो हेतु अपने कोष से कार्य करवाऐ जाने की अभिशंषा करने के निर्देश होने चाहिए।
श्मसान स्थल पर सभी को जाना होता है। आज परिजनों को लेकर जा रहे है आगामी समय में हमें लेकर जाऐगे। दाँह संस्कार के पूर्ण्य कार्य मे सभी को सहयोग तथा प्राथमिकता तय कर विकास करवाऐ जाने की आवश्यकता है। सभी धर्मों के अनुसार अन्तिम संस्कार स्थल पर प्राथमिकता से सभी सुविधाओं के कार्य करने की आवश्यकता है। सभी जन प्रतिनिधियों व अधिकारियों, सरकार के मंत्रियों से मेरा विशेष अनुरोध है कि श्मसान स्थल ( स्वर्गलोक गमन द्वार ) पर सभी को पहुंचना है। किसी के भी परिजनों को परेशानी न हो इस हेतु ही सही इन स्थलों को विकसित करवाऐ जाने मे प्राथमिकता प्रदान करवाऐ जाने का अनुरोध है।
जब समाचार पत्रों मे पढने को मिलता है कि प्रशासन की देखरेख मे दाँह संस्कार हुआ, तरपाल लगाकर दाँह संस्कार करवाया, पानी व किचड से गुजरना पडा, बैठने को कोई जगह नही, पानी पीने का कोई साधन उपलब्ध नही तब गांव विकसित होने पर शर्म आती है। यदि स्वर्गलोक गमन स्थलों को विकसित नही करवा सके तो अन्य विकास भी अधुरा लगता है।
अन्तिम संस्कार स्थलों की सरकार द्वारा करवायी जावे निगरानी, ग्राम विकास अधिकारी व सरपंच की हो तय जिम्मेदारी
