जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में करीब 40 साल बाद बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। कुछ साल पहले तक चुनाव को हरामबताकर बहिष्कार की राजनीति करने वाले लोग भी अब चुनाव प्रक्रिया में शामिल हो रहे हैं। पहले जमात-ए-इस्लामी के लोग चुनाव प्रक्रिया में शामिल हुए। अब अलगाववादी नेता सैयद सलीम गिलानी ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का दामन थाम लिया है। अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले, हिंसा, पत्थरबाजी और विरोध के नाम पर कश्मीर में खून-खराबा करने वाले नेता मुख्यधारा में शामिल होकर लोगों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए लोकतंत्र को सबसे अच्छा मंच मान रहे हैं। गिलानी ने पीडीपी में शामिल होने के बाद कहा कि कश्मीर मुद्दे का समाधान केवल राजनीतिक रूप से हो सकता है। बंदूक से कोई समाधान नहीं हो सकता। हिंसा में खत्म हो रही जिंदगियों को बचाने का यही एकमात्र तरीका है। सैयद सलीम गिलानी जेल में बंद अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह का करीबी सहयोगी रहा है। जमात-ए-इस्लामी ने भी चुनाव लड़ने की घोषणा की है। जमात की केंद्रीय समिति के सदस्य और पूर्व महासचिव गुलाम कादिर लोन ने कहा कि वह चुनाव लड़ रहे हैं, ताकि उनसे प्रतिबंध हटाया जा सके। गृह मंत्रालय ने जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा रखा है। जमात से सदस्य निर्विरोध चुनाव लड़ रहे हैं। लोन ने कहा कि हमने आवाज उठाने के लिए चुनाव लड़ने का फैसला किया। प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के पूर्व प्रमुख डॉ. तलत मजीद ने पुलवामा, सयार अहमद रेशी ने कुलगाम से नामांकन भरा है। जमात के पूर्व सदस्य नजीर अहमद देवसर से चुनाव लडऩे जा रहे हैं। अलगाववादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से जुड़े रहे अंजुमन शरी शियान के अध्यक्ष आगा सैयद हसन अल मूसवी के बेटे आगा सैयद मुंतजिर भी पीडीपी के टिकट पर बडगाम सीट से चुनाव मैदान में हैं। लोगों का कहना है कि इंजीनियर रशीद ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की, जिससे दूसरे अलगाववादी नेताओं का चुनाव लड़ने को लेकर मनोबल बढ़ा है। राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए 9 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है।