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सभी शक्तिपीठों में अम्बाजी सिरमौर के समान-यहां मूर्ति की जगह होती है विग्रह (श्री वीसा यंत्र) की पूजा
- रियासतकालीन दांता रियासत के समय से ही सिद्धपुर के ब्राह्मण करते हैं अम्बाजी माता की पूजा, पूजा के लिए भट्टजी करते हैं दीक्षित
- वर्ष-1985 से मंदिर के प्रशासन के लिए श्री आरासुरी अम्बाजी माता देवस्थान ट्रस्ट का किया गया है गठन
अम्बाजी (सूचना ब्यूरो, पालनपुर)/आबूरोड। इक्यावन शक्तिपीठों में से एक मंदिरों की नगरी अम्बाजी में स्थित है अम्बाजी शक्तिपीठ, जो अरावली पर्वत शृंखला की आरासुरी पहाड़ी पर स्थित है। दरअसल यह उत्तर गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित है, जिसका जिला मुख्यालय पालनपुर है। राजस्थान के सिरोही जिले के गुजरात सीमा पर स्थित आबूरोड कस्बे से मंदिरों की नगरी महज बाईस किलोमीटर के फासले पर स्थित है।
तंत्र चूड़ामणि में हैं 51 शक्तिपीठों का उल्लेख
तंत्र-चूड़ामणि में इन 51 शक्तिपीठों का उल्लेख हैं। इन सभी शक्तिपीठों में आरासुर के अम्बाजी स्थित शक्तिपीठ प्राचीन शक्तिपीठों में सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां मां सती का हृदय गिरा था।
मंदिर में मूर्ति की जगह पूजा जाता है श्रीवीसा यंत्र
अम्बाजी माता का मूल मंदिर सत्य घाट पर है। बड़े मंडप और गर्भगृह में माताजी का गवाक्ष (गोख) है। यहां मूर्ति की जगह श्री बीसा यंत्र की पूजा की जाती है। संगमरमर के स्लैब पर स्वर्ण जडि़त यंत्र को मुकुट और चुंदड़ी से सिंह, बाघ, हाथी, नंदी, गरुड़ जैसे विभिन्न वाहनों से सजाया गया है, ताकि यह माताजी की हूबहू मूर्ति प्रतीत हो और मूर्ति ही प्रतीत होती है।
आंखों पर पट्टी बांधकर की जाती है श्री वीसा यंत्र की पूजा
यह यंत्र सोने का है और कहा जाता है कि यह यंत्र इक्यावन अक्षरों वाला है। खास बात यह है कि श्री वीसा यंत्र की पूजा आंखों पर पट्टी बांधकर की जाती है, क्योंकि यंत्र स्थल की ओर देखने पर पाबंदी लगाई हुई है। प्रत्येक माह की अष्टमी को श्री वीसा यंत्र की पूजा की जाती है। इस यंत्र को कल्प वृक्ष माना जाता है। मंदिर के ठीक सामने विख्यात चाचर चौक स्थित है। अम्बाजी माता को 'चाचरना चौक वालीÓ माता के नाम से भी जाना जाता है। यहां चौक पर होम -हवन किया जाता है।
दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है मां अम्बा
मातेश्वरी सुबह एक बच्चे के रूप में, दोपहर को युवती के रूप में और शाम को एक वृद्धा के रूप में प्रकट होती है। माताजी की सातों दिन सवारी अलग-अलग होती है। रविवार को मां बाघ की सवारी, सोमवार को नंदी की सवारी, मंगलवार को शेर की सवारी, बुधवार को ऊंची सूंड वाले हाथी की सवारी, गुरुवार को गरुड़ की सवारी, शुक्रवार को हंस की सवारी और शनिवार को निचली सूंड वाले हाथी (ऐरावत) की सवारी करती नजर आती हैं।
आजादी से पूर्व मंदिर का प्रबंधन था दांता रियासत के पास
आजादी से पहले अम्बाजी मंदिर का प्रबंधन तत्कालीन दांता रियासत की ओर से किया जाता था। आजादी के बाद, जब दांता रियासत का गुजरात में विलय हो गया, तो 1985 से मंदिर के प्रशासन के लिए श्री आरासुरी अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट का गठन किया गया, जिसके अध्यक्ष बनासकांठा के जिला कलक्टर को नियुक्त किया गया। डिप्टी कलक्टर को प्रशासक नियुक्त किया जाता है।
सिद्धपुर के भट्टजी महाराज के परिवार को ही है पूजा का अधिकार
अम्बाजी मंदिर में जगत जननी जगदम्बे मां की आरती मंदिर के भट्टजी महाराज करते हंै। भट्टजी महाराज स्नान के बाद आरती करने पहुंचते हैं। शाम को मशालची की ओर से जगद्अम्बा को मशाल अर्पित करने के बाद ही आरती शुरू होती है। पूर्ववर्ती दांता राज्य के समय से ही सिद्धपुर के भूदेव भट्टजी परिवार को ही आरती एवं पूजा-विधि का अधिकार प्राप्त है। सुबह मंगला आरती, शाम को शयन आरती, दोपहर में मध्याह्न आरती होती है। आरती अक्षय तृतीया (आखातीज) से आषाढ़ी बीज तक दिन में तीन बार की जाती है।