बरसात के दिनों में गांव में मौत होने पर अर्थी को कंधा देने वालों की जान आ जाती है सांसत में 

- अंतिम संस्कार के लिए ग्रामीणों को बहती नदी पार कर जाना पड़ता है शमशान घाट

- बहती नदी पार करते समय अर्थी हाथों में से छूटने तथा अर्थी को कंधा देने वालों के पानी में गिरने का खतरा सिर पर मंडराता रहता है

- बुनियादी सुविधा को तरसते आदिवासी बहुल चनार पंचायत के देवराजी फली गांव के वाशिन्दों की दर्दभरी दास्तान

आबूरोड (सिरोही)। आदिवासी बहुल आबूरोड तहसील की चनार पंचायत का एक गांव ऐसा है, जहां बारिश के दिनों में गांव में किसी की मौत हो जाती है तो अर्थी को कंधा देने वालों की जान सांसत में आ जाती है। दरअसल उन्हें अर्थी लेकर गांव के पास से बहती नदी में उतर कर दूसरे किनारे पर स्थित शमशान घाट जाना पड़ता है। कई बार पानी का बहाव तेज होने पर अर्थी हाथों में से छूटने तथा अर्थी को कंधा देने वालों के पानी में गिरने का खतरा सिर पर मंडराता रहता है। विड़म्बना तो इस बात की है कि आजादी के साढ़े सात दशक गुजर चुके होने के बावजूद दूर दराज के ग्रामीण इलाके विकास से कोसों दूर हैं। कई गांव बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं। कमोबेश ऐसा ही एक नजारा देखने को मिला चनार पंचायत के अधीनस्थ देवराजी फली गांव का जहां की एक तस्वीर ने विकास के दावों को ठेंगा दिखा दिया। 

राजनेताओं, जनप्रतिनिधियों व सरकारी अमले के अब तक ध्यान में क्यों नहीं आई यह समस्या

तरस तो उन राजनेताओं व जनप्रतिनिधियों पर आता है, जिन्होंने डेढ़ से दो दशक तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया होने के बावजूद ऐसी गंभीर समस्या उनके ध्यान में क्यों नहीं आई। जो बीडीओ, एसडीएम, सीईओ व जिला कलक्टर सरीखे आला अफसर अपने वातानुकूलित चैम्बर में बैठकर प्लानिंग करते है और हर माह लाख से दो-दो लाख तक की तनख्वाह उठाते हैं, उनके भी ध्यान में ऐसी समस्या क्यों नहीं आई। क्या उन्होंने कभी नहीं सोचा कि कमसे कम किसी व्यक्ति को मौत के बाद तो किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़े। जिन्दगी में भले ही सुख-सुविधा नहीं मिली हो, पर मौत के बाद अंतिम संस्कार तो कम से कम शांति से हो जाएं, ऐसी सुविधा तो मुहैया करवानी राज का उत्तरदायित्व होता है, तो फिर राज ऐसा उत्तरदायित्व निभाने में क्यों पीछे रह जाता है। 

बहती नदी पार कर अर्थी उस पार ले जाने की विवशता

गांव में एक महिला की मौत हो जाने पर कई पुरुष नदी के बीच से अर्थी उठाकर नदी के दूसरी तरफ स्थित शमशान घाट पर ले जाते नजर आ रहे हैं। चनार पंचायत क्षेत्र के देवराजी फली गांव में गरासिया समाज के शमशान घाट जाने के रास्ते में बारिश के बाद पानी भरने से लोगों को अपने मृतक परिजन के शव को पानी में से होकर ले जाने को बाध्य होना पड़ता है। इस सम्बंध में पंचायत प्रशासन को अवगत करवाने के बावजूद जिम्मेदार कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि देवराजी फली में शमशान घाट जाने के रास्ते के बीच पिछले दिनों हुई बारिश के बाद नदी का बहाव जारी है। यहां अंतिम संस्कार के लिए आने वाले लोगों को इस नदी से होकर ही गुजरना पड़ता है। तस्वीर में साफ़ नजर आ रहे है वे ग्रामीण जो अपनी जान को जोखिम में डालकर अर्थी को नदी के उस पार स्थित शमशान घाट ले जा रहे हैं। अर्थी उठाने वाले लोगों के सीने से ऊपर तक पानी नजर आ रहा है। 

स्कूली बच्चों को भी हो रही है परेशानी 

ग्रामीणों ने कहा की शमशान घाट जाने के साथ ही स्कूली बच्चों को भी परेशानी हो रही है। गांव के बच्चों को चनार में स्कूल जाने के लिए करीब 5 किलोमीटर लम्बा रास्ता तय करना पड़ता है जबकि अगर पुल बन जाए तो पुल से सीधा स्कूल जाया जा सकता है।

इन्होंने बताया...

पुलिया बनवाने के प्रयास करूंगा

जिला परिषद सदस्य हरीश चौधरी ने बताया कि यह मामला मेरे ध्यान में अभी लाया गया है। मैं जल्द ही मामले को जिला परिषद में उठाकर व जिला प्रशासन को बताकर नदी पर पुलिया का निर्माण करवाने का प्रयास करूंगा। ग्रामीण शांतिलाल ने बताया कि देवराजी फली में करीब पांच सौ परिवार बसते हैं, ऐसे में बारिश के दिनों में किसी की मृत्यु होने पर भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। रविवार को गांव की महिला वालीदेवी की मौत होने पर अर्थी के साथ बहती नदी पार कर शमशान घाट तक ले जाना पड़ा।

  • हरीश चौधरी, जिला परिषद सदस्य, आबू
  • रोड (सिरोही)।