भक्तों के साथ विकास की राह जोहता बून्दी का ऐतिहासिक श्री गोपाल लाल जी मंदिर
1669 में औरंगजेब से बचा कर बून्दी लाया गया था मथुराधीश जी व गोपाल जी का विग्रह
बून्दी। बून्दी के ज्ञात अज्ञात मंदिरों में एक मंदिर ऐसा भी हैं, जहां विराजित विग्रह मुगज बादशाह औरंगजेब से बचा कर सुरक्षित रूप से मथुरा से बून्दी लाया गया और बून्दी राज्य में सुरक्षित आश्रय में नियमित सेवा प्राप्त की। वह मंदिर हैं गोपाल लाल जी मंदिर, जो बून्दी शहर के बालचन्द पाडा क्षेत्र में नवल सागर झील के किनारे पर स्थित हैं, जहां 800 वर्षो से नियमित पूजा अर्चना की जा रही है। गोपाल लाल जी मंदिर को अंतरराष्ट्रीय पुष्टिमार्ग बल्लभ संप्रदाय के प्रथम पीठ के रूप में जाना जाता है। बूंदी के राजाओं द्वारा उनकी सेवा की जाती थी. यह बूंदी के आराध्य देव के रूप में पूजे जाते आ रहे हैं। जानकारी के अनुसार भगवान गोपाल लाल जी महाराज की बूंदी जिले में 12 गांवो की जागिरी थी। उस समय लगान जब ली जाती थी तो उसका भोग सबसे पहले भगवान गोपाल लाल जी को ही लगता था। राज्याश्रित इस मंदिर की देखरेख वर्तमान में देवस्थान विभाग द्वारा की जा रही हैं।
मुगज बादशाह औरंगजेब के आदेशों से जब मथुरा-वृंदावन में मंदिरों को नष्ट भ्रष्ट किया जा रहा था, तब मंदिरों के महन्त और सेवादार उनमें विराजित विग्रहों की सुरक्षा के लिए इधर उधर सुरक्षित आश्रय के लिए दौड धूप कर रहे थे। ऐसे समय में गोस्वामी जी महाराज दो विग्रहों को छुपाकर सुरक्षित आश्रय की आस में बून्दी की ओर आएं। जहां हाड़ा चोहानों के सुरक्षित आश्रय में इन विग्रहों को 1669 में सुरक्षित रूप से स्थापित कर इनकी गुप्त रूप से सेवा पूजा की जाने लगी। यह दो विग्रह थें, मथुराधीश जी महाराज और गोपाल लाल जी महाराज। उस समय बून्दी पर राव राजा भाव सिंह का शासन था। राव राजा राव भाव सिंह (1658-81) दयालु, जनप्रिय, उदार व न्याय प्रिय शासक थे।
पुष्टिमार्ग बल्लभ संप्रदाय के प्रथम पीठ के रूप में पूजीत हैं गोपाल जी मंदिर
बादशाह औरंगजेब के अत्याचारों को बचाने के लिए बूंदी के तत्कालिक शासक राव राजा भाव सिंह के सुरक्षित आश्रय में 1669 में मथुराधीश जी महाराज और गोपाल लाल जी महाराज के विग्रहों को बून्दी लाया गया। जहां इनका विशाल मंदिर भी बनवाया गया। पुष्टिमार्ग बल्लभ संप्रदाय के प्रथम पीठ के रूप में पूजीत इस मंदिर में मथुराधीश जी महाराज और गोपाल लाल जी महाराज की सेवा वल्लभ कुल सम्प्रदाय के मतानुसार सेवा हो रही हैं। बाद में 1744 में मथुराधीश जी महाराज के विग्रह को कोटा राज्य के शासक महाराव दुर्जनशाल अपने साथ कोटा ले गए, जिनकी सेवा तब से कोटा के पाटनपोल में हो रही है।
मथुराधीश जी महाराज के कोटा जाने के साथ ही गोपाल लाल जी महाराज की के प्रभुत्व में भी कमी आने लगी। मथुराधीश जी महाराज के विग्रह के कोटा ले जाने के बाद गोपाल लाल जी महाराज के विग्रह को भी निज मंदिर से हटा कर समीप ही स्थित एक हवेली में स्थापित कर दिया गया, जो कबीरपंथियों का स्थल हुआ करता था। वर्तमान में गोपाल जी महाराज की सेवा यहीं पर की जा रही हैं। तब के मथुराधीश जी महाराज के मंदिर में कुछ वर्ष पूर्व तक विद्यालय का संचालन किया जाता रहा हैं, लेकिन विद्यालय के मर्ज होने के बाद अब यह मंदिर अपनी दुर्गति पर आंसू बहा रहा हैं।
मंदिर के विकास की मांग
1669 में इन विग्रहों के बून्दी आने के बाद जिस मंदिर का निर्माण करवाया गया, वह मथुराधीश जी महाराज के विग्रह के कोटा जाने के बाद से खाली पड़ा रहा। वहां से गोपाल जी महाराज के विग्रह के समीप ही अन्य स्थान पर स्थापित कर दिया गया। आजादी के बाद उस निज मंदिर में पात्तल दौना नाम से विद्यालय का संचालन किया गया, लेकिन वर्षों पूर्व विद्यालय के मर्ज होने के बाद से ही यह भवन खाली पड़ा हुआ अपनी दुर्गति पर आंसू बहा रहा हैं।
पुजारी मधुसूदन ने बताया कि मुगलों के डर से विग्रहों की सेवा गुप्त रूप से की जाती थी, इस कारण मंदिर में घंटियां नहीं लगाई गई। तब मंदिर का ज्यादा विकास नहीं हो पाया, लेकिन अब जबकि सरकार मंदिरों का विकास कार्य करवा रही है, तो बूंदी के गोपाल लाल मंदिर का भी विकास होना चाहिए। इस मंदिर को भी वहीं वैभव और पहचान मिलनी चाहिए, जो पुराने समय में थी।
श्रद्धालु रघुनंदन परिहार ने मंदिरों का विकास कार्य की आवश्यकता जताते हुए कहा कि वर्तमान में जब मथुराधीश जी का निज मंदिर खाली हो चुका हैं, जहां कभी गोपाल लाल जी महाराज विराजमान रहे हैं। उसी निज मंदिर में गोपाल लाल जी महाराज को पुनर्स्थापित कर सेवा शुरू होनी चाहिए। वह मंदिर वर्तमान मंदिर से काफी बड़ा और गोपाल लाल जी महाराज के वैभव के अनुरूप बना हुआ हैं।