नॉन एल्कोहोलिक फैटी लीवर डिजीज (एनएएफएलडी) स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी स्थिति है, जो लीवर में फैट यानी वसा एकत्र होने से बनती है। इसे फैटी इनफिल्ट्रेशन कहा जाता है। यह लीवर की उन अनेक स्थितियों के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द है, जो कम या बिल्कुल एल्कोहल नहीं लेने वाले लोगों को प्रभावित करती हैं। एनएएफएलडी मौन महामारी कही जाती है, जो कई वर्षों के दौरान नॉन एल्कोहोलिक स्टेटोहेपटाइटिस (नैश) का कारण भी बन सकती है।
एनएएफएलडी के मूलत: दो प्रकार होते हैं - नॉन एल्कोहोलिक फैटी लीवर (एनएएफएल) आमतौर पर कम घातक स्थिति है, जिसमें फैटी इनफिल्ट्रेशन तो होता है, लेकिन इनफ्लेमेशन यानी सूजन नहीं होती। दूसरी ओर, नॉन एल्कोहोलिक स्टेटोहेपटाइटिस (नैश) की स्थिति में लीवर की सूजन के साथ फैट जमता है।
नॉन एल्कोहोलिक फैटी लीवर
नॉन एल्कोहोलिक फैटी लीवर (एनएएफएल) आमतौर पर कम घातक स्थिति होती है, लेकिन तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि वजन बढ़ना और मोटापा आम बात हो गई है। आज यह दुनियाभर में लीवर की परेशानियों का सबसे आम कारण है।
एनएएफएल में लीवर सामान्य रूप से काम करता है और उसमें कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। अक्सर, एनएएफएल का पता तब चलता है, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य कारण से पेट का इमेजिंग टेस्ट करवाता है (जैसे - पित्त की पथरी की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड)। वजन कम करने से लीवर में वसा की मात्रा कम की जा सकती है।
नॉन एल्कोहोलिक स्टेटोहेपटाइटिस
नॉन एल्कोहोलिक स्टेटोहेपटाइटिस (नैश) ऐसी स्थिति है, जिससे लीवर में सूजन आती है, फैट जमता है और निशान ऊत्तक (स्कार टिश्यूज) बनते हैं। हालांकि, एल्कोहल लेने वाले व्यक्तियों में भी ऐसी स्थिति दिखाई दे सकती है, लेकिन नैश कम या बिल्कुल एल्कोहल नहीं लेने वाले लोगों में होता है। नैश का सटीक कारणों का अभी भी पता नहीं लगाया जा सका है। हालांकि, यह डायबिटीज, मोटापा और इन्सुलिन प्रतिरोधकता जैसी परेशानियों वाले लोगों में अक्सर पाया जाता है।
नॉन एल्कोहोलिक स्टेटोहेपटाइटिस से संबंधित स्थितियां
हालांकि नैश का कारण नहीं पता, फिर भी ऐसा देखा गया है कि यह निम्नलिखित कुछ स्थितियों के शिकार लोगों में अधिक होता है :
- मोटापा
- डायबिटीज
- हाइपरलीपिडेमिया
- इन्सुलिन प्रतिरोधकता
- कुछ दवाइयां
लक्षण
नैश से पीड़ित अधिकतर लोगों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। कभी-कभार लोगों में (जांच के बाद) नैश पाया जाता है। थकान, बीमारी या पेट के ऊपरी हिस्से में गड़बड़ी महसूस होना इसके लक्षण हो सकते हैं, लेकिन यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता।
पहचान
नैश की पहचान करने का सबसे आम तरीका खून की जांच कराना है। इसके अलावा दूसरी जांचों से नैश की पुष्टि की जा सकती है और लीवर के किसी अन्य रोग की आशंका खत्म होती है। इमेजिंग टेस्ट्स (जैसे- अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन या एमआरआई) से लीवर में जमे हुए फैट का पता चल सकता है, लेकिन ये नैश को लीवर की अन्य बीमारियों से अलग नहीं कर सकते। उनमें भी इसी प्रकार के चित्र दिखाई देते हैं। अगर लीवर के अन्य रोगों को अलग नहीं किया जा सकता, तो लीवर बायोप्सी से नैश की पुष्टि की जा सकती है। फाइब्रोस्कैन बिना चीर-फाड़ की जाने वाली ऐसी जांच है, जिसमें लीवर का कड़ापन देखने के लिए अल्ट्रासाउंड का प्रयोग किया जाता है। लीवर में फाइबर तंतुओं (लीवर स्कारिंग) की पहचान करने के लिए फाइब्रोस्कैन लीवर बायोप्सी का ऑप्शन है।
उपचार
नैश का कोई इलाज नहीं है। इसका उपचार इस उद्देश्य के साथ किया जाता है कि नैश से संबंधित स्थितियों जैसे - मोटापा, डायबिटीज और हाइपरलीपिडेमिया को नियंत्रित किया जा सके। इन्सुलिन प्रतिरोधकता का इलाज करने वाली दवाइयों के साथ कुछ प्रायोगिक उपचारों का अध्ययन भी किया जा रहा है।
वजन में कमी: अपने शरीर के वजन का कम-से-कम 3 से 5 प्रतिशत तक कम करने से लीवर में वसा की मात्रा कम की जा सकती है, जबकि लीवर में सूजन और फाइब्रोसिस कम करने के लिए शरीर के वजन का 7 से 10 प्रतिशत तक कम करने की जरूरत पड़ सकती है। शारीरिक गतिविधियां भी लाभदायक होती हैं, भले ही उनसे वजन कम हो या नहीं। एनएएफएलडी में सुधार के लिए डॉक्टर्स धीरे-धीरे वजन कम करने की सलाह देते हैं।
इन्सुलिन प्रतिरोधकता का उपचार: इन्सुलिन प्रतिरोधकता वाले व्यक्तियों के लिए कुछ दवाइयां उपलब्ध हैं। इनका अध्ययन नैश के मरीजों में किया जा रहा है। हालांकि, उनकी भूमिका अभी तक सिद्ध नहीं हो सकी है।
विटामिन-ई: नैश की गंभीर अवस्था वाले ऐसे लोगों में, जिन्हें डायबिटीज या दिल के रोग नहीं हैं, एक्सपर्ट्स कभी-कभी विटामिन-ई सप्लीमेंट्स की सलाह भी देते हैं।
एल्कोहल से दूरी: नैश के मरीजों को एल्कोहल से दूर रहना चाहिए, क्योंकि इससे लीवर की बीमारी गंभीर हो सकती है।
रोग का निदान
नैश पारंपरिक रूप से स्थायी और जीवनभर का रोग है। किसी व्यक्ति में नैश के बढ़ने का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है। कुछ लोगों में, नैश समय के साथ गंभीर हो जाता है। यह दशकों तक बिना किसी लक्षण के रह सकता है। नैश की सर्वाधिक गंभीर जटिलता सिरोसिस है।
यह स्थिति तब आती है, जब लीवर में तंतुओं की संख्या बहुत अधिक हो जाती है। नैश के मरीजों में अक्सर चयापचयी लक्षण (मेटाबोलिक सिंड्रोम) होते हैं, जैसे - इन्सुलिन प्रतिरोधकता, मोटापा और हाइपरलीपिडेमिया)। इस स्थिति से दिल के रोगों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में, नैश के बढ़ने को लीवर स्कारिंग और लीवर कैंसर की अंतिम अवस्था तक पहुंचने से
रोकने के लिए जांच करानी आवश्यक हो जाती है। लीवर में तंतुओं के बनने की प्रक्रिया या लीवर सिरोसिस को नियंत्रित किए जाने पर भी लीवर के पुरानी स्थिति में वापस आने की गारंटी नहीं ली जा सकती। हालांकि, अच्छी बात यह है कि नैश के कई मरीजों में लीवर की गंभीर समस्याएं पैदा नहीं होतीं। नैश का उपचार (विशेष रूप से वजन में कमी) ऐसी कई अन्य
समस्याओं के इलाज में भी सहायक होता है, जो मेटोबोलिक सिंड्रोम का हिस्सा हैं।
डॉ. वाहिद अकबर (डीआरएनबी/ईएसईजीएच, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी) से बातचीत पर आधारित