कुछ चीजें ऐसी होती है, जिन पर हमारा काबू नहीं होता है, जैसे छींक, जम्हाई, हिचकी आदि। हम सभी अपने जीवन में कभी न कभी इन चीजों का अनुभव किया ही होगा। अक्सर ही लोग इन चीजों को आने से रोक लेते हैं। जबकि आयुर्वेद में जम्हाई, छींक, मल त्याग, पेशाब, आंसू और हिचकी जैसी चीजों को रोकने से मना किया जाता है। इन चीजों के आने पर कभी भी इन्हें कंट्रोल नहीं किया जाता है, क्योंकि इन्हें रोकने से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। तो आइए न्यूट्रिशनिस्ट और आयुर्वेदिक डॉक्टर सुगीता मुतरेजा से जानते हैं आयुर्वेद में इन चीजों को रोकने से सेहत पर क्या असर पड़ सकता है?
आयुर्वेद के अनुसार इन चीजों के आने पर कंट्रोल क्यों नहीं करना चाहिए?
जम्हाई
जम्हाई जिसे उबासी आना भी कहते हैं, अक्सर बहुत ज्यादा नींद आने के कारण या थकान होने के बाद आती है। लेकिन जम्हाई को दबाने से कान, आंख, नाक और गले से जुड़ी समस्याएं हो सकती है। बता दें कि जम्हाई लेने से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है और शरीर को आराम मिलता है। लेकिन इसे दबाने से यह प्रक्रिया बाधित हो सकती है, जिससे ईएनटी क्षेत्र में तनाव और असंतुलन बढ़ जाता है।
छींकना
छींक आना एक आम प्रक्रिया है, लेकिन कई बार लोग दूसरों के सामने छींकने से बचते हैं और अपनी छींक को रोक लेते हैं। छींक को दबाने से खांसी, हिचकी, भूख न लगना और सीने में दर्द हो सकता है। दरअसल, छींकने से नाक के मार्ग से जलन पैदा करने वाले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और इसे रोकने से नाक पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे सांस और पाचन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
मल त्याग
मल त्याग करने का जब भी मन हो तो कर लेना चाहिए, लेकिन इसे कंट्रोल नहीं करना चाहिए। मल त्याग करने की इच्छा को दबाने से सिर में दर्द, अपच और पेट में दर्द हो सकता है। मल को बार-बार रोकने से कब्ज की समस्या भी बढ़ सकती है।
पेशाब करना
पेशाब करने की इच्छा को दबाने से मूत्र मार्ग में संक्रमण की समस्या बढ़ सकती है और मूत्राशय में पथरी भी हो सकती है। दरअसल, पेशाब करने से शरीर से टॉक्सिक पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। वहीं पेशाब रोकने से बैक्टीरिया का विकास और मूत्र में ठहराव हो सकता है, जिससे संक्रमण और पथरी होने की समस्या बढ़ सकती है।
रोना (आंसू आना)
हम सभी अपने इमोशन्स को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं, और इस दौरान रोते समय आंखों से निकलने वाले आंसू को रोकते हैं। लेकिन आंसू रोकने से मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है और सीने में दर्द हो सकता है। रोने से भावनात्मक तनाव दूर होता है और दबी हुई भावनाएं बाहर निकलती हैं। इसलिए जब भी रोना आए तो आंसुओं पर कंट्रोल न करें इसे बहने दें।
आयुर्वेद प्राकृतिक इच्छाओं के महत्व और शरीर के कार्यों के संतुलन को बनाए रखने में उनकी भूमिका पर जोर देता है। इसलिए, इन इच्छाओं को दबाने से यह संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे कई शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। तो आगे से अपनी इन भावनाओं को रोकने से पहले इसके कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं को जरूर ध्यान में रखें।