केंद्र सरकार अब सरकारी कंपनियों को निजी कंपनियों व उद्योगपतियों के हाथों बेचने (प्राइवेटाइजोशन) की बजाय उनकी मुनाफा सुधारने और उससे राजस्व कमाने पर जो दे सकती है। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक, केंद्र सरकार अब प्राइवेटाइजेशन प्रोग्राम को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी कर रही है। मोदी सरकार ने सरकारी कंपनियों के निजीकरण के लिए महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी। माना जा रहा था कि तीसरी बार सरकार बनने पर इसे तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन अब सरकार ने इस योजना से पीछे हटने का संकेत दिया है। रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि सरकार 200 से ज्यादा सरकारी कंपनियों का मुनाफा सुधारने की योजना पर काम कर रही है।सूत्रों के मुताबिक, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 23 जुलाई को पेश होने वाले आम बजट में नई योजना की घोषणा कर सकती है। इसमें कंपनियों के पास मौजूद बिना उपयोग वाली जमीन का एक बड़ा हिस्सा बेचना और अन्य एसेट्स का मॉनिटाइजेशन शामिल है। इसका मकसद चालू वित्तीय वर्ष 2024-24 में 24 अरब डॉलर यानी करीब २ लाख करोड़ रुपए जुटाना और इन्हें फिर से पीएसयू कंपनियों में निवेश करना है। नई योजना के तहत प्रत्येक सरकारी कंपनी के लिए अल्पकालिक लक्ष्यों के बजाय 5 साल का प्रदर्शन और उत्पादन लक्ष्य तय किया जा सकता है। एक अधिकारी ने कहा कि सरकार अंधाधुंध संपत्ति बिक्री से ध्यान हटाकर अब पीएसयू कंपनियों के आंतरिक मूल्य को बढ़ाने पर जोर दे रही है।साल 2021 में घोषित योजना के मुताबिक दो बैंकों, एक बीमा कंपनी और स्टील, ऊर्जा और दवा सेक्टर की सरकारी कंपनियों को बेचा जाना था। साथ ही घाटे में चल रही कंपनियों को बंद किया जाना था। लेकिन सरकार केवल कर्ज में डूबी एयर इंडिया को ही टाटा ग्रुप को बेचने में सफल रही। कुछ अन्य कंपनियों को बेचने की योजना को उसे वापस लेना पड़ा। एलआईसी में सरकार की केवल 3.5 प्रतिशत हिस्सेदारी बेची गई है। साथ ही कुछ अन्य कंपनियों में शेयर बेचे गए हैं। अब केंद्र सरकार अपनी मैज्योरिटी वाली कंपनियों में उत्तराधिकार योजना भी शुरू करना चाहती है। साथ ही इन कंपनियों में 2.30 लाख मैनजरों को सीनियर रोल्स के लिए तैयार करने के लिए ट्रेनिंग देने का भी प्रस्ताव है।

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