शांतिकुंज सेवाकेंद्र की ओर से रविवार को पार्श्वनाथपुरम, कुन्हाड़ी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली गई। सेवाकेंद्र के भक्त मनहर दास ने बताया कि सुबह 6:30 बजे भगवान श्री जगन्नाथ, बहन श्री सुभद्रा जी व भ्राता श्री बलदेवजी को रथ में विराजमान किया गया। शहर के विभिन्न गणमान्य अतिथियों ने पौराणिक रीति की निभाते हुए भगवान की आरती की व उनके रथ के आगे-आगे बुहारी लगाई।इसके बाद भगवान अपने दिव्य नवनिर्मित नंदीघोष रथ पर बैठकर नगर भ्रमण को निकले। भक्तों ने जगन्नाथ प्रभु के जयकारों के साथ भगवान का रथ खींचा। जगह- जगह भक्तों ने रंगोलिया बनाकर, दीप जलाकर और भांति भांति के भोग अर्पण कर भगवान का स्वागत किया। मार्ग में कीर्तन में भक्त खूब झूमे। रथ यात्रा पार्श्वनाथपुरम कॉलोनी, कुन्हाड़ी की गलियों से होती हुई पार्श्वनाथ एनक्लेव कॉलोनी में गई। वहां भी कॉलोनी वासियों ने बहुत उत्साह के साथ भगवान का स्वागत किया।

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बाबा मनहर दास ने जगन्नाथ कथा का समापन करते हुए बताया कि रथ यात्रा वाले दिन भगवान अपनी मां रानी गुड़िचा से तो मिलने जाती ही हैं, लेकिन एक और मान्यता के अनुसार रथ यात्रा भगवान श्री कृष्ण का बृजवासियों से 100 साल की लंबी जुदाई के बाद का मिलन भी दर्शाती है। उन्होंने कहा कि भगवान ब्रज लीला करने के बाद द्वारिका जाकर बस जाते हैं। फिर 100 साल बाद जब बृजवासी कुरुक्षेत्र में भगवान से मिलने आते हैं तो श्री परम आराध्य राधा रानी जी भगवान को रथ पर बिठाकर उनको वृंदावन लेकर जाती हैं। इसलिए रथयात्रा के साथ भक्त और भगवान के कई भाव जुड़े हुए हैं। रथयात्रा को सनातन धर्म व पुरी धाम का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। भगवान जगन्नाथ ही कलियुग के ठाकुर हैं। और उनका धाम श्री जगन्नाथ धाम ही कलियुग का धाम है। भगवान ने सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना की, त्रेता युग में रामेश्वरम धाम की स्थापना की और द्वापर में द्वारिका धाम की स्थापना की। जबकि कलि युग में राजा इंद्रद्युम्न व रानी गुंडिचा के माध्यम से जगन्नाथ पुरी धाम की स्थापना की है। जगन्नाथ पुरी धाम के उत्सवों को यात्रा से संबोधित किया जाता ह। जिससे स्नान यात्रा, रथ यात्रा, झूलन यात्रा, चंदन यात्रा मनाए जाते हैं