लोकसभा चुनाव की हार का स्वयंभू जिम्मा उठाते हुए मंत्री पद से त्यागपत्र देने वाले किरोड़ी लाल मीना ने जयपुर से दिल्ली तक राजस्थान की राजनीति में उथल- पुथल मचा दी है। दरअसल 5 विधानसभा सीटों के उप चुनाव सिर पर खड़े हैं, ऐसे में भाजपा को मीना का मंत्री पद छोड़ना चुनावी गणित पर असर डालता नजर आ रहा है। पांच में से दो सीट दौसा और देवली-उनियारा ऐसी हैं, जो मीना के प्रभाव क्षेत्र की मानी जाती हैं। नतीजतन बीते एक माह से मीना के त्यागपत्र पर खामोश भाजपा उनके मंत्री पद छोड़ने की घोषणा सार्वजनिक होने के तत्काल बाद सक्रिय हो गई।किरोड़ी ने शुक्रवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केन्द्रीय मंत्री जेपी नड्डा से दिल्ली में मुलाकात की। पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, चुनावी गणित को ध्यान में रखकर दिल्ली ने उन्हें अब दो विकल्प दिए हैं। पहला विकल्प, फिलहाल वह पद पर ही बने रहें। जल्द ही मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा, तब वह जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएं।दूसरा विकल्प, इसी माह कुछ राज्यपालों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। अतः उन्हें किसी राज्य में राज्यपाल की जिम्मेदारी दी जा सकती है। मीना के समर्थकों के अनुसार राज्यपाल बनने के लिए फिलहाल वह तैयार नहीं हैं। मीना अभी न्यूनतम 10 साल सक्रिय राजनीति का हिस्सा बने रहना चाहते हैं। ऐसे में फिलहाल किसी भी विकल्प पर बात नहीं बनी है।लोकसभा चुनाव में आरक्षण का मुद्दा गर्माने के बाद अब भाजपा जनजाति (एसटी) वर्ग को एक बार फिर जोड़ने की रणनीति बना रही है। इसके लिए एसटी वर्ग के नेताओं को बड़ी जिम्मेदारियां देने की तैयारी है। भाजपा किरोड़ी को राज्य में एसटी का बड़ा नेता मानती है। लिहाजा उन्हें राज्यपाल पद का प्रस्ताव दिया है। उन्हें एसटी वर्ग की बाहुल्यता वाले राज्य में यह मौका देने की चर्चा है।मंत्री पद छोड़ने की पहेली खत्म होने के बाद मीना का त्यागपत्र भी शुक्रवार को सामने आ गया। मुख्यमंत्री को लिखे 4 पेज के इस्तीफे में उन्होंने उन बातों का ही जिक्र किया, जो चुनाव में कही थीं। लिखा कि दौसा, टोंक-सवाईमाधोपुर और करौली- धौलपुर से सांसद रह चुका हूं। दौसा में पीएम नरेन्द्र मोदी का रोड शो भी हुआ लेकिन तीनों ही सीटें नहीं जीत सके। मैंने 15 सीटों पर प्रचार किया लेकिन जो मेरे प्रभाव क्षेत्र वाली सीटें थी, वहीं पार्टी हार गई। इसलिए अपराध बोध से मन अत्यंत व्यथित है।