नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता के बयान दर्ज करने के अपने आदेश का पालन नहीं करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई और कहा कि वह सिर्फ मनोरंजन के लिए आदेश पारित नहीं करता।जस्टिस सुधांशु धूलिया एवं जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाशकालीन पीठ यौन अपराधों से बच्चों को संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के एक मामले की सुनवाई कर रही थी। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गरिमा प्रसाद से जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, 'हमारा आदेश अनिवार्य था, इसका अक्षरश: पालन किया जाना था। हम सिर्फ मनोरंजन के लिए आदेश पारित नहीं कर रहे हैं।'
ओम धगाल - पूर्व प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भाजपा युवा मोर्चा
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पीठ ने कहा कि राज्य की वकील का रुख बेहद लापरवाह है
शीर्ष अदालत एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोपित की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। चिंतित पीठ ने कहा, 'हम दिन-प्रतिदिन ऐसा होते देख रहे हैं.. हर राज्य का वकील हमारे आदेशों को लापरवाह तरीके से ले रहा है। यदि यह एक सप्ताह में नहीं किया गया, तो हम आपके गृह सचिव को यहां बुलाएंगे। इन चीजों को होने देने के लिए हम दोषी हैं.. गलती हमारी ओर से है। संदेश (बाहर) जाना चाहिए।'
शुरुआत में प्रसाद ने यह कहते हुए स्थगन की मांग की कि पीड़िता के साक्ष्य दर्ज नहीं किए जा सके क्योंकि ट्रायल कोर्ट में शोकसभा थी। पीठ ने कहा कि राज्य की वकील का रुख बेहद लापरवाह है। चूंकि यह अनिवार्य आदेश था, लिहाजा अभियोजन को समय विस्तार के लिए याचिका दाखिल करनी चाहिए।