भारत में आज 1 जुलाई से राजस्थान समेत पूरे देश में नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं. आज से भारतीय दंड संहिता या आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, आपराधिक न्याय प्रक्रिया सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और इंडियन एविडेंस ऐक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो गए हैं.राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने नए कानूनों के लागू होने के मौके पर राज्य के आला प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के साथ एक वर्चुअल बैठक की. मुख्यमंत्री ने नए कानूनों के लागू होने का स्वागत करते हुए कहा कि ये उन कानूनों की जगह लाए गए हैं जिनका आज के परिदृश्य में उनका ज्यादा महत्व नहीं था और पुराने थे, और उस समय के हिसाब से बनाए गए थे. मुख्यमंत्री ने कहा कि लगभग आपराधिक कानून लगभग 150 साल पहले अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए बनाए थे. मुख्यमंत्री ने कहा,”जिन तीन आपराधिक कानूनों को निरस्त किया गया है वो डेढ़ सौ साल पुराने अंग्रेजों के शासन के समय थे. ये कानून विदेशी शासकों ने अपना शासन बनाए रखने के लिए बनाया था.”मुख्यमंत्री ने कहा कि पुराने कानूनों का मुख्य उद्देश्य आम जनों को न्याय दिलाने की जगह उन पर शासन करना था. उन्होंने कहा,”वो कोई न्याय देने के लिए नहीं, सिर्फ शासन करने के लिए बनाया गया था. इनमें न्याय की कल्पना नहीं थी, केवल सजा का प्रावधान था. न्याय नहीं मिलता था, उन्हें केवल हुकूमत करनी थी और उसके लिए ये कानून बनाए थे.”मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने ज़ोर देकर कहा कि पुराने कानून ‘गुलामी की मानसिकता वाले' कानून थे जबकि नए कानूनों में ‘भारतीयता की आत्मा को स्थापित किया गया है'. उन्होंने कहा,”तीनों नए कानूनों से भारतीयता और भारतीय संविधान की मूल भावना को भी बल मिलेगा.” मगर नए आपराधिक कानूनों को लेकर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी पर प्रहार किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि इन कानूनों के जरिए देश में पुलिसिया शासन चलाने की कोशिश की गई है और इनकी समीक्षा की जानी चाहिए.अशोक गहलोत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है- “IPC, CrPC एवं एविडेंस एक्ट की जगह पर 1 जुलाई से लागू हो रहे भारतीय न्याय संहिता को व्यापक रिव्यू की आवश्यकता है. इस संहिता में बनाए गए कानून देश को एक पुलिसिया राज्य (पुलिस स्टेट) बनाने जैसे हैं.” अशोक गहलोत ने कहा कि नए कानूनों को नए सांसदों की बनने वाली समिति के पास भेजा जाना चाहिए और इनकी समीक्षा कर सभी हितधारकों की राय ली जानी चाहिए.