प्रियंका गांधी का चुनावी राजनीति में उतरने का औपचारिक एलान हो ही गया। पिछले दस सालों से कांग्रेस के अंदर जिस बात के लिए सबसे अधिक इंतजार था,सोमवार को उसका औपचारिक एलान कांग्रेस के अंदर हो गया। लेकिन इसमें थोड़ा टि्वस्ट था। वह दक्षिण से चुनावी आगाज करेगी। दरअसल यह पार्टी की समझी रणनीति के तहत लिया गया फैसला माना जा रहा है। पार्टी के सीनियर नेता ने कहा कि जब राहुल गांधी ने रायबरेली से नामांकन किया था तभी तय हो गया था कि अगर राहुल गांधी दोनों सीट से जीतते हैं तो प्रियंका वायनाड से लड़ेगी। इसके पीछे दो अहम कारण हैं। राहुल गांधी अगर रायबरेली सीट छोड़ते तो अभी उस राज्य से बेहतर संदेश नहीं जाता जहां से पार्टी ने अभी तुरंत बेहतर प्रदर्शन किया। साथ ही पार्टी उस राज्य को नहीं छोड़ना चाहती थी जहां 2019 औा 2024 दोनों जगह पार्टी को लोगों का सपोर्ट मिला। पार्टी को लगता है कि वहां अगले दो साल में होने वाली विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। साथ ही दक्षिण हाल में कांग्रेस का मजबूत गढ़ साबित हुआ है। यही कारण है कि राहुल गांधी के सीट छोड़ने के बाद पार्टी के पास गांधी परिवार से ही कोई उम्मीदवार देना कहीं न कहीं राजनीतिक विकल्प ही राजनीतिक मजबूरी भी थी। पिछले कुछ सालों से कांग्रेस में महासचिव के रूप में काम कर रही प्रियंका गांधी पार्टी की स्टार प्रचारक बनी है। चुनावों में उनकी सभाओं की मांग राज्यों में तेजी से बढ़ने लगी है। तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में आक्रामक प्रचार का लाभ कांग्रेस को मिल। तभी से पार्टी ने माना कि न सिर्फ प्रियंका गांधी आम लोगों से कनेक्ट कर रही है बल्कि उनके प्रचार का लाभ यह होता है कि वह महिला वोटरों से बेहतर तरीके से संवाद कर लेती है। पार्टी को लगता है कि महिलाओं को लुभाने के लिए महिला के रूप में प्रियंका गांधी अधिक प्रभावी हो रही है। प्रियंका स्वाभाविक तौर पर बेहतर वक्ता हैं। साथ ही पिछले कुछ सालों में प्रियंका गांधी पार्ठी के अंदर क्राइसिस मैनेजमेंट को संभालने वाली भी बनी। कई मौकों पर उन्होंने हस्तक्षेप कर चीजों को ठीक किया। लेकिन इसके बावजूद उनका चुनावी राजनीति से दूर रहना कई सवाल उठाते थे।
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