मेरी कलम से.......
विश्व रक्तदाता दिवस!
कैसे मनाएं, बताइए ज़रा?
थोथली बातों से, दकियानूसी सोच से या फिर ढोंग रचने के लिए?
जी हां, हैरानी की बात नहीं है।
जितना इस देश में धर्म मज़हब और जात पात के साथ ऊंच नीच का गंदा खेल खेला जाता हैं, उससे कई गुना रक्तदान को महादान बता कर उसका मज़ाक बनाया जाता हैं।
यूंही कोई आपका अपना दम तोड़ रहा हो तो उस वक्त रक्त चाहिए होता न कि और कुछ ?
क्योंकि मनुष्य जानता हैं रक्त से किसी की जान बचाई जा सकती हैं।
फिर कौन हैं वो लोग जो सोशल मीडिया पर रक्तदान महादान का ढिंढोरा पीट कर महान साबित होना चाहते हैं ?
आखिर देश दुनियां में कहां रक्तपात न हो रहा?
कहां गरीबों का रक्त नहीं पिया जा रहा?
कहां रक्त के नाम पर काला बाजारी नहीं हो रही?
देश में विभिन्नताएं किताबों में थी आज हर दिल हर मन छिन्न भिन्न हो चुका हैं।
आप रक्त के दान की बात करते हैं?
आप ये चंद चार लाइन पढ़कर आग बबूला हो जाते हैं, अपने से अधिक किसी को देख नहीं पाते हैं, मानवीयता के सिद्धांतों को हर गली मोहल्ले चौराहे पर बैठकर खिल्लियां उड़ाते हैं।
आप सोचते हैं रक्तदान महादान हो गया?
अस्पतालों के बाहर एक बोतल खून के लिए नोटों के ढेर लगते हैं, ये रक्तदान के नाम पर कैंसर की तरह फैलता भ्रष्ट ता का व्यापार हैं।
इंसान होकर इंसान के काम नहीं आ पा रहे हैं, व्यक्ति के लाचार होते ही दो बूंद जिंदगी की टैग देकर महान बनना चाहते हैं?
ऐसी महानता तो ईश्वर में भी नहीं देखी, जिसने जीता जागता मनुष्य रक्त से संचालित भेजा।
उसने भी न कहा कि मैं रक्तदान का मसीहा !
लेकिन
इंसान महान हैं।
उसे जब तक महान होना न मिला तब तक वह रक्त के महत्व को नहीं समझ सकता और आखिर में किसका रक्त किसके काम आया ये कोई बता नहीं सकता।
खून हिंदू का था, मुस्लिम का ,किसी ईसाई, या बौद्ध पारसी का ?
खून तो केवल खून हैं,जो सब में बराबर हैं।
इसलिए झूठे आनंद के पुल न बांधो, रक्तदान महादान!!
ये बिना धड़ के गर्दन का अभिमान लिए भटकने जैसा हैं।