भोपाल। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की रणनीति विफल हो गई, क्योंकि उन्हें 69 सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जिनमें से महज सात सीटें जीतने में ही पार्टी को कामयाबी मिली। बाकी की 62 सीटों पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी के पीछे दिग्विजय सिंह के 'पंगत में संगत' कार्यक्रम को अहम माना गया था।

'पंगत में संगत' कार्यक्रम के तहत दिग्विजय सिंह ने कार्यकर्ताओं से सीधे बात की थी और इसका असर भी दिखाई दिया। तभी तो 15 साल बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की वापसी हुई थी। वो बात अलग है कि 14 माह बाद सरकार गिर गई थी और शिवराज सिंह चौहान की फिर ताजपोशी हुई थी।

दिग्विजय की रणनीति हुई विफल

इस बार के चुनाव में दिग्विजय सिंह ने 69 सीटों की कमान संभाली और छह माह के भीतर एक-एक सीट का दौरा किया। कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की और आपसी मतभेद भुलाकर कार्यकर्ताओं को कांग्रेस की सरकार बनाने का संकल्प दिलाया, लेकिन उनकी रणनीति बुरी तरह पिट गई। 

कांग्रेस 69 सीटों में से महज दतिया, बालाघाट, ग्वालियर ग्रामीण, बीना, सेमरिया, टिमरनी और मंदसौर सीट ही जीत पाई। अन्य ऐसी सीटें भी हैं, जहां पार्टी अगर थोड़ा ज्यादा मेहनत करती तो जीत सकती थी, लेकिन कांग्रेस अति आत्मविश्वास से भरी पड़ी थी।

दिग्विजय सिंह के पास थी कठिन सीटों को जिताने की जिम्मेदारी

भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी कठिन मानी जाने वाली सीटों को चिह्नित किया। इसमें वे सीटें शामिल की गईं, जिनमें लगातार तीन चुनाव से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा था। इन्हें जिताने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह ने ली। पूर्व सांसद रामेश्वर नीखरा के साथ उन्होंने सभी सीटों पर पहुंचकर बूथ, सेक्टर और मंडलम स्तर की बैठक की।