नई दिल्ली। राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच करीब तीन साल से चल रहे सियासी झगड़े का हल निकालना कांग्रेस नेतृत्व की हाल के वर्षों में एक बड़ी संगठनात्मक कामयाबी है।
इस साल के अंत में सेमीफाइनल माने जा रहे पांच राज्यों के चुनाव और 2024 के महासंग्राम की दोहरी चुनौतियों के मद्देनजर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने गहलोत-पायलट के बीच हुई सुलह के इस कदम के जरिए पार्टी संगठन को स्थिरता देने का आधार तैयार कर दिया है।
कांग्रेस ने गुटबाजी का निकाला समाधान
राजस्थान के अलावा पिछले आठ महीनों में पार्टी की सियासत के लिए अहम कर्नाटक, तेलंगाना और छत्तीसगढ जैसे बड़े राज्यों में कांग्रेस की गुटबाजी का समाधान निकलना इस बात का भी संकेत है कि लंबे अर्से से रुग्ण कांग्रेस संगठन के ढांचे को दुरूस्त करने के लिहाज से खरगे ज्यादा प्रभावी साबित होते दिख रहे हैं।
राजस्थान कांग्रेस के जटिल झगड़े का सुलह बेशक अशोक गहलोत ओर सचिन पायलट दोनों के अपने-अपने रूख में लचीलापन लाने से निकला है, लेकिन इसमें भी संदेह नहीं कि इन दोनों दिग्गजों की लड़ाई अप्रैल-मई महीने में जिस कटु दौर में थी वहां से सुखद समाधान तक लाने में मल्लिकार्जुन खरगे की लगातार सक्रियता की खास भूमिका रही।
गहलोत-पायलट के बीच खरगे ने कराई सुलह
राहुल गांधी के अमेरिका दौरे पर रवाना होने से ठीक एक दिन पहले खरगे ने गहलोत-पायलट की लंबे अर्से बाद आमने-सामने की बैठक करायी। इस बैठक में खरगे-राहुल दोनों की पहल पर गहलोत-पायलट के बीच झगड़ा खत्म करने पर सैद्धांतिक सहमति बनी। इसके बाद बीते एक महीने के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और राज्य के प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा को लगातार राजस्थान में दोनों नेताओं से सुलह के फार्मूले पर बातचीत की। आखिरकार पांच जुलाई की खरगे की बुलाई बैठक में अंतिम समाधान निकल गया।
सचिन पायलट के लिए यह कामयाबी कम नहीं कि गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए पार्टी चुनाव में जाएगी मगर मुख्यमंत्री पार्टी उन्हें सीएम चेहरा घोषित करने से परहेज करेगी। कांग्रेस के शीर्ष संगठन से लेकर कई राज्यों में पार्टी संगठन के चल रहे घमासान के बीच मल्लिकार्जुन खरगे ने पिछले साल अक्टूबर में अध्यक्ष पद की बागडोर संभाली थी।
कर्नाटक में कांग्रेस ने दिखाई एकजुटता
इसके बाद सबसे पहला बड़ा झगड़ा उनके गृह राज्य कर्नाटक में ही था, जहां सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनने की जबरदस्त जंग थी। इन दोनों के साथ कर्नाटक के दूसरे प्रमुख नेताओं की गुटबाजी को थामे रखने के लिए सिद्धरमैया और शिवकुमार को बराबर तवज्जो देने का फार्मूला निकाला गया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की एकजुटता शायद उसके लिए भी अब नजीर बन गई है जहां इसकी वजह से पार्टी ने भारी बहुमत से चुनाव जीता।
बेशक खरगे की इस पहले में कर्नाटक के प्रभारी महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने खास भूमिका निभाई। तेलंगाना चुनाव में के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति सरकार को चुनौती देने के लिए कांग्रेस ने टीडीपी से आए रेवंत रेडडी को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त किया तो सूबे के लगभग तमाम दिग्गजों ने उनके खिलाफ खुला मोर्चा खोल दिया।
तेलंगाना में नेताओं के झगड़े को सुलझाया
सूबे में पार्टी का झगड़ा इतना गंभीर हो गया कि तेलंगाना में भाजपा को बीआरएस को टक्कर देने का दावेदार माना जाने लगा, लेकिन कर्नाटक चुनाव के तत्काल बाद खरगे ने तेलंगाना के नेताओं को बुलाकर कई दौर की बातचीत की और इसमें राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी अपनी सक्रिय भूमिकाएं निभाई। इससे तेलंगाना में पार्टी का झगड़ा तो थमा ही वर्तमान में केसीआर सरकार के खिलाफ कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर की धुरी बनती दिखाई दे रही है।
कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ की खींचतान को किया खत्म
छत्तीसगढ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच शीर्ष पद की दावेदारी को लेकर अंदरूनी रस्साकशी काफी समय से चल रही थी। इस दरम्यान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के कुछ संगठनात्मक फैसलों को लेकर असहज स्थितियां बनी। आखिरकार खरगे ने निर्णायक पहल करते हुए टीएस सिंह देव को डिप्टी सीएम के रूप में प्रोन्नत कर चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ की खींचतान को खत्म कर दिया।
वैसे हिमाचल प्रदेश में चुनाव बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला करने से पहले वरिष्ठ नेता प्रतिभा सिंह को राजी करने की पहल भी आसान नहीं थी मगर खरगे इसमें भी प्रभावी साबित हुए।