International Yoga Day: इंद्रा देवी नाम पढ़ के आपने इन्हें भारतीय ही माना होगा लेकिन मैं आपको बता दूं कि आप गलत हैं। आपको यह जानकार हैरानी हो सकती है कि इंद्रा देवी भारतीय नहीं बल्कि एक विदेशी थीं।

हम लोगों के लिए भेले ही यूजीन पीटरसन का नाम नया और अनसुना हो, लेकिन, योगा के चाहने वालों के यह नाम कोई नया नहीं है। यह वो नाम है जिसमें जिसने शरीर को स्‍वस्‍‍थ रखने की योग पद्धति को पूरी दुनिया में पहचान दिलाने में मदद की।

कौन थी योग की पहली महिला गुरु इंद्रा देवी 

12 मई 1899 को लातविया की राजधानी रीगा में जन्मी इंद्रा देवी का असली नाम यूजिनी पीटरसन था। इंद्रा की मां एक कुलीन घराने की रूसी थीं तो पिता एक स्वीडिश बैंकर थे। 15 साल की उम्र में इंद्रा ने योग पर लिखी एक किताब को पढ़कर भारत के प्रति इस कदर मुग्ध हुईं कि भारत आने से वह खुद को रोक नहीं पाईं। यहीं से उन्‍हें वर्षों पुरानी भारतीय योग पद्धति के बारे में भी पता चला। उनके लिए यह जुड़ाव इतना गहरा हो गया कि महज पंद्रह वर्ष की आयु में ही उन्‍होंने भारत आने का मन बना लिया था। इसका मकसद था भारत जाकर योग सीखना और सिखाना।

जब रूस में गृह युद्ध जैसी हालात पैदा हो गए तो इंद्रा मां के साथ 1917 में वहां से भागकर लातविया चली गईं। फिर पोलैंड, जहां उन्होंने एक एक्ट्रैस और डांसर के तौर पर नाम कमाना शुरू किया। 1926 में उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की एक मीटिंग में जिद्दू कृष्णामूर्ति को मंत्रोच्चार करते सुना। संस्कृत मंत्रों का उनके ऊपर ऐसा असर हुआ कि उन्हें कोई ताकत अपने पास बुला रही है। बस उसी दिन से उनका जीवन बदल गया। वो भारत के प्रति मंत्रमुग्ध होती चल गईं।

इंद्रा देवी ने भारत में की शादी 

1927 में जब एक धनी जर्मन बैंकर हेर्मन बोल्म ने इंद्रा के सामने विवाह-प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने हां कह दिया लेकिन, इस शर्त पर कि पहले वह उनकी भारत-यात्रा का ख़र्च उठाएगा। बोल्म की दी हुई सगाई की अंगूठी पहन कर इंद्रा भारत गईं। तीन महीने बाद भारत से लौटते ही उन्होंने बैंकर को अंगूठी लौटा दी। कहा, ‘क्षमा करना, मेरी जगह तो भारत में है।’ इंद्रा ने अपने सारे गहने-ज़ेवर बेचे और एक बार फिर चल पड़ीं भारत की ओर। इंद्रा भले ही भारतीय नहीं थीं, लेकिन भारतीयता उनके मन में बसती थी।

भारत पहुंचते ही उन्होंने अपना एक नया नाम रख लिया- इंद्रा देवी। वे बंबई के फ़िल्म जगत में नर्तकी और अभिनेत्री का काम करने लगीं। वहीं, उनका चेकोस्लोवाक वाणिज्य दूतावास के एक अताशी यान स्त्राकाती से परिचय हुआ। 1930 में दोनों ने शादी भी कर ली। अपने पति के माध्यम से ही इंद्रा देवी मैसूर के महाराजा कृष्णराजेंद्र वड़ेयार से मिलीं।

योगगुरु तिरुमलाई कृष्णमाचार्य से ली योग की दीक्षा

योगगुरु तिरुमलाई कृष्णमाचार्य उनके राजमहल में ही योगशिक्षा दिया करते थे। इंद्रा देवी ने जब उनसे कहा कि वे भी उनसे योगसाधना सीखना चाहती हैं, तो कृष्णमाचार्य ने यह कह कर मना कर दिया कि वे एक विदेशी और महिला हैं। मैसूर के महाराजा कृष्णराजेंद्र वड़ेयार के अनुरोध करने पर ही मशहूर योग गुरू कृष्णमाचार्य ने उन्हें छात्रा के रूप में स्वीकार किया। मैसूर पैलेस की योगशाला में योग सीखने वाली वो पहली विदेशी महिला थीं।

योग सीखने के बाद 1938 में पति के साथ वो शंघाई चली गईं। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त होने तक वे शंघाई में ही रहीं। इस दौरान वे चीन के राष्ट्रवादी नेता च्यांग काइ-शेक की पत्नी के घर में योगशिक्षा का स्कूल चलाने लगीं। चीन में यह पहला योग स्कूल था। युद्ध के अंत के बाद वे एक बार फिर भारत लौटीं।

  • 1939 में उन्होंने चीन में पहला योग स्कूल शंघाई में खोला।
  • यह स्कूल राष्ट्रवादी नेता च्यांग काई शेक की पत्नी के घर पर खोला गया था।
  • कैलिफोर्निया में भी उन्होंने योगा स्टूडियो खोला।
  • इंद्रा देवी साड़ी पहनती थीं और खास तरीके से योगा सिखाती थीं।
  • हॉलीवुड के कई सेलिब्रिटी को उन्होंने योगा सिखाया जिसमें ग्रेटा गार्बो, इवा गेबोर और ग्लोरिया स्वेंसन जैसी हस्तियां शामिल हैं।
  • हॉलीवुड सेलिब्रिटी उनके पास योगा सीखने आने लगीं. इंद्रा देवी फेमस होने लगीं. वो हठ योग से लेकर प्राणायाम तक सिखाती थीं।
  • इंद्रा देवी पांच भाषाएं धाराप्रवाह तरीके से बोलती थीं– मातृभाषा रूसी के अलावा अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच और स्पेनिश।
  • 1960 में उन्होंने मॉस्को जाकर तत्कालीन सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार से अनुरोध की थी कि वह भी सोवियत जनता को योग सीखने-करने की अनुमति प्रदान करे।
  • वर्ष 2002 में योग शिक्षिका इंद्रा देवी का निधन हो गया।

इंद्रा देवी एक प्रेरक शिक्षक और योग के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थीं। उनके काम ने योग के अभ्यास को दुनिया भर में फैलाने और इसे सभी के लिए सुलभ बनाने में मदद की। वह एक सच्ची शिक्षिका थीं और उन सभी के लिए प्रेरणा थीं जो उन्हें जानते थे। उनकी विरासत उनके छात्रों और उन लोगों के माध्यम से जीवित रहेगी जो आज भी योग का अभ्यास कर रहे हैं।